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    कोविड से बचाव के लिए सभी पत्रकारों का वैक्सीनेशन क्यों नहीं?

    पिछले साल 22 मार्च को प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि 'पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों की तरह मीडिया की भी इस महामारी से लड़ने में अहम भूमिका होगी.' कोरोना काल में ज्यादातर पत्रकारों ने काम के दौरान अपने जान की बाजी लगा दी...अस्पताल से लेकर श्मशान तक और सड़क से लेकर खलिहान तक की रिपोर्टिंग की. आम लोगों की समस्या को सरकार के सामने लाए, लेकिन वैक्सीन आने के बाद पुलिस और स्वास्थ्य कर्मी तो फ्रंटलाइन वर्कर माने गए लेकिन पत्रकारों को इस वैक्सीनेशन की प्रक्रिया में सरकारी बाबुओं ने दूध में मक्खी की तरह बाहर कर दिया. जबकि इस दौरान देशभर में 50 से ज्यादा पत्रकारों की कोरोना से मौत हुई, सैकड़ों बीमार हुए...हजारों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा...लेकिन मरने के बाद करीब 40 पत्रकारों को 5 लाख की आर्थिक मदद देकर सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया.

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    कोरोना काल में गुपचुप तरीके से किराया बढ़ा रही है रेलवे

    13 फरवरी को दिल्ली से करीब 1200 किमी दूर रांची रेलवे स्टेशन पर जब एक शख्स ने प्लेटफार्म टिकट खरीदा तो 15 रुपए का टिकट उसे 30 रुपए में दिया गया. उसने जब काउंटर पर पूछा कि ये टिकट तो पहले 15 रुपए का था तो जवाब मिला है कल यानि 12 फरवरी से ये 30 रुपए का हो गया है.

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    टीवी मीडिया के गटर से निकला जमूरा पत्रकारिता का जिन्न

    पुलिस बेरीकेटिंग के नजदीक हम लोग लाइव की तैयारी कर रहे थे..सुबह के आठ बजने वाले थे...नर्म धूप धीरे-धीरे तीखी हो रही थी लेकिन हवा में अब भी  हल्की ठंड मौजूद थी. गांव जाने वाले रास्ते को पुलिस बेरीकेट से बंद कर दिया गया था और एक इंस्पेक्टर जीप के बोनट पर ड्यूटी बदलने का चार्ट बना रहा था. रात भर की ड्यूटी से हलकान पुलिस और PAC वालों के चेहरे तो मास्क में छिपे थे लेकिन कोई बेरीकेट तो कोई दीवार के सहारे टिका शरीर को थोड़ा आराम देने की कोशिश कर रहा था. असहाय सी दिखने वाली सबकी आंखें बस बिना उम्मीद मीडिया के कैमरे और रिपोर्टर पर टिकी थी. गोरिल्ला युद्ध की तरह अचानक लस्त पस्त पड़ी पुलिस फोर्स को देखकर एक महिला एंकर बेरीकेट खींचकर अंदर दाखिल हुई और लाइव में चीखते हुए.. ये देखिए किस तरह हमें रोकने की कोशिश हो रही है लेकिन हम इंसाफ दिलाकर रहेंगे...

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    दिल्ली हिंसा : GTB अस्पताल में वो 5 दिन....

    इमरजेंसी के बाहर खड़े होकर लाइव करने के दौरान ऐंबुलेंस और पुलिस जिप्सी की आवाजाही बढ़ती जा रही थी. कोई अपनों को स्कूटी पर ला रहा था तो कोई ई रिक्शा से. कुछ लोगों को ऐंबुलेंस तो कुछ को पुलिस जिप्सी में ला रही थी. जिस दंगे को कुछ देर पहले मैं रुटीन बवाल मान रहा था अब दिल दहलाने वाली घटना में तेजी से बदलती जा रहा था.

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    आखिर कौन हैं दिल्ली के कातिलाना प्रदूषण के गुनहगार?

    प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार, लोगों की लानत- मलानत, ऑड-इवेन स्कूलों को बंद करने और हमारे-आपके जैसे पत्रकारों की प्रदूषण पर थोक खबरों के बावजूद प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है. 

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    दिल्ली में BJP की हार से चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर पर उठने लगे हैं सवाल

    दिल्ली के चुनाव नतीजे आने के बाद से ही अब तक न तो वो प्रदेश दफ्तर में दिखाई दिए और न ही इस करारी हार पर उनका कोई ट्वीट मिला. एक निजी टीवी इंटरव्यू में उन्होंने हार की ठीकरा कांग्रेस के गिरते वोट पर फोड़ा. हां, बीजेपी की हार का एक बड़ा कारण कांग्रेस का वोट बैंक 5 फीसदी से नीचे आना भी रहा. चुनाव त्रिकोणीय होने के बजाए बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच हुआ, जिसमें वोट परसेंटेज बढ़ने के बजाए बीजेपी को करारी हार मिली.

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    क्या आज भी मौजूद हैं नमक के दरोगा?

    मित्रों मुंशी प्रेमचंद की कहानी नमक का दरोगा का ये अंश है. इस कहानी को दोबारा सालों बाद इसलिए पढ़ी कि शनिवार को मैं किसी पैरामिलिट्री के अफसर के पास बैठा था उन्होंने मुझे बताया कि ISS यानी इंडियन साल्ट सर्विसेज यानी भारतीय नमक सेवा अब भी देश में मौजूद है. देशभर में करीब दर्जनभर अधिकारी हैं जो नमक की गुणवत्ता और उसकी सप्लाई पर नजर रखते हैं.

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    यूपी में कागज पर गठबंधन और जमीन पर बीजेपी क्यों मजबूत है?

    ये लोकसभा चुनाव खासा असमंजस से भरा है. लोकसभा चुनाव के दौरान मैंने बीजेपी या गठबंधन के कोर वोटरों से बात करने के बजाए नॉन यादव ओबीसी और नॉन जाटव दलितों से ज्यादा बात करने की कोशिश की है. इसमें पाया कि नॉन यादव ओबीसी का बड़ा वर्ग बीजेपी और खासतौर से मोदी से प्रभावित है.

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    फर्रुखाबाद की ढहती विरासत और सियासी समीकरण का हाल

    लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सलमान खुर्शीद के घर कायम गंज जाते हुए रास्ते में कई मकबरे दिखे तो शहर के इतिहास की जानकारी लेने की उत्सुकता बढ़ी. फर्रुखाबाद में गुरुगांव मंदिर के ठीक पीछे नवाब मोहम्मद खां बंगश का मकबरा नजर आया.

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    फिरोजाबाद में चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अक्षय यादव के सियासी मैदान का हाल

    चूड़ियों की नगरी फिरोजाबाद में सबसे बड़े राजनीतिक परिवार का मनमुटाव यहां सियासी जंग में तब्दील हो चुका है. हर गली हर नुक्कड़ पर चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अक्षय यादव की ही चर्चा चल रही है.

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    फर्रुखाबाद की सियासत पर आलू और मोदी

    उनसे जब सियासी हाल जानने की कोशिश की तो मुस्कुरा दिए बोले हम लोगों को खेती किसानी से फुरसत कहा लेकिन जब मैंने कहा कि लड़ाई किसमें है तो हंसते बोले बीजेपी और गठबंधन में... हमने कहा आप लोगों का वोट किसे जा रहा है...

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    इटावा की 'घोड़ा चाय' की दुकान और सियासी चर्चा

    मैंने भी कुल्हड़ में चाय की चुस्की लेते पूछा कि जिस चाय की दुकान पर इतनी भीड़ होती हो वहां चुनावी चर्चा न होती हो ये कैसे मुमकिन है. अनिल कुमार गुप्ता बोले कि वो खुद लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और भारत में नकली चुनाव के नाम से एक किताब भी लिख चुके हैं. उन्होंने इटावा में चाय पिलाने में ही क्रांति नहीं की है बल्कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान सरकार से जब बगावत की तो 33 धाराऐं लगाकर इनको जेल में भी डाला गया. अब अनिल कुमार गुप्ता लोकतंत्र सेनानी के तौर पर जाने जाते हैं और चाय की केतली धीमी आंच पर रखते हुए वो गर्व से बताते हैं कि सपा सरकार की शुरू की गई सेनानी पेंशन के बीस हजार रुपये भी हर महीने मिलती है.

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    महाप्रबंधक के दौरे के एक दिन बाद ही ट्रेन हादसा, उत्तर मध्य रेलवे जोन सवालों के घेरे में 

    रेलवे दुर्घटनाओं के लिहाज से संवेदनशील उत्तर मध्य रेलवे जोन के महाप्रबंधक राजीव चौधरी 18 तारीख को कानपुर टुंडला मार्ग का रात को निरीक्षण करते हैं और बीस तारीख को पूर्वा एक्सप्रेस इस रुट पर डिरेल हो जाती है. एनडीटीवी को मिले दस्तावेज बताते हैं कि 18 अप्रैल रात 11.55 पर इलाहाबाद से महाप्रबंधक जी दौरे पर आते हैं और 48 घंटे के अंदर हादसा हो जाता है.

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    क्यों रुला रहा है प्याज अब राजस्थान के किसानों को...

    राजस्थान में प्याज की खेती के लिए अलवर और भरतपुर मशहूर है. पिछले साल अलवर की मंडी में दाम 15 से 18 रुपये किलो था, जो इस साल गिरकर मात्र तीन से चार रुपये किलो रह गया है. अपनी फसल की सही रकम नहीं मिलने से यहां किसान परेशान हैं. सुबह मैं अलवर की प्याज मंडी पहुंच गया....किसान पप्पू भाई का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. दस बजे किसानों के प्याज की बोली लगेगी. पप्पू भाई आए और आते ही अजीब आवाज में बोले...ऐ...कालीचरण कहां रहता है तू....वो हंसते हुए दुबक गया...अब किसानों के 8 महीने की खून पसीने से उगाई प्याज की कीमत पप्पू भाई सैकड़ों में तय कर रहे हैं...अलवर की प्याज मंडी में इस प्याज की कीमत तय हुई है...दो सौ रुपये में 60 किलो यानि तीन साढ़े तीन रुपये किलो...

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    राजस्थान में हिन्दुत्व की प्रयोगशाला का क्या है हाल?

    26 नवंबर को ग्वालियर से चला, रात को भरतपुर में रुका. 27 को सुबह सात बजे रामगढ़ के लिए रवाना हो गया. चार महीना पहले यहीं रकबर को कथित तौर पर पीटा गया था, बाद में उसकी मौत हो गई थी. टैक्सी ड्राइवर से बात बढ़ाई तो बोलने लगा साहब यहां मेव अच्छी तादाद में हैं. पहले बहुत गाय बूचड़खाने जाती थी अब गौरक्षकों की बहुत निगरानी रहती है. मैंने पूछा ये बूचड़खाने किसके हैं, वो बोला अब ये का पता मुझे. मैं कौन सा आपकी तरह रिपोर्टर हूं. मैंने कहा फिर ये कैसे पता है कि सब गाय बूचड़खाने ही जा रही होंगी. वो बोला अरे साहब आप क्या जानते हैं अभी वीडियो दिखाता हूं कैसे कटती हैं. मैं कहा नहीं ये व्हाट्सअप वीडियो मत दिखाओ गाड़ी ध्यान से चलाओ. मैं सोचने लगा मोबाइल जाति और धर्म के ध्रुवीकरण के केंद्र में है. लोगों में डर और धारणाएं बहुत तेजी से बनाता है. इस बात का अंदाजा हुआ जब रामगढ़ के रास्ते में कई जगह बड़ी बड़ी गौशालाएं और गौरक्षकों के होर्डिंग्स लगे देखे.

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    ऐसे 200 मंदिर जो नेताओं को वोट और नोट नहीं देते...इसीलिए गिर रहे हैं..

    टैक्सी ड्राइवर बोला इस इलाके में अवैध पत्थर निकालने का काम पूरी दमदारी से चलता है. रात को आने का मतलब है अपराध और अपराधियों के बीच फंसना. फिर बोला बीस साल से गाड़ी चला रहा हूं सिर्फ एक बार शनिचरा मंदिर आया हूं... पहले पता होता तो गाड़ी ही नहीं लाता... मुझे और तनाव हो गया कि बड़ी जोखिम इस यात्रा में मोल ले ली... खैर तीन-चार छोटे गांव से गुजरते हुए मैं बटेश्वर मंदिर पहुंचा. दस फिट से लेकर चालीस पचास फीट तक बने सैकड़ों प्राचीन मंदिरों को देखकर मेरे भीतर खून का संचार बढ़ गया...एक ऐसा अद्भुत नजारा जो कल्पना से परे था. गुप्तकालीन बने मंदिरों की छतें सपाट थी फिर कुछ मंदिरों के ऊपर गुंबद दिखे... इस मंदिर के बीच एक सरोवर है जो बताता है किसी समय ये जगह शैव संप्रदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण रही होगी. सैकड़ों मंदिर और उसके अंदर रखे शिवलिंग अलग-अलग आकार के थे. जो गुप्त काल से प्रतिहार काल तक के मंदिरों के स्थापत्य कला के क्रमिक विकास को शानदार तरीके से दर्शा रहे थे. तमाम प्राचीन मूर्तियां अच्छी हालत में इधर-उधर बिखरी पड़ी थी.

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    अलविदा ग्वालियर...

    ग्वालियर से अब भरतपुर की ओर जा रहा हूं, हम ट्रेन या कार से दूसरे शहर जल्दी पहुंच जाते हैं लेकिन यादें शायद उतनी तेज नहीं होती हैं. अब तक जितना सोचा और जाना है यही पाया कि ग्वालियर और सिंधिया राजघराना आपस में इतने गुंथे हैं कि इन्हें अलग-अलग नजरिए से देखना मुश्किल है.

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    मध्य प्रदेश: शिवपुरी की कोठी नंबर 17

    शनिवार को ग्वालियर से करीब 110 किमी की दूरी तय करके शिवपुरी पहुंचा. रोड बहुत अच्छी बनी है लेकिन जैसे ही आप शिवपुरी शहर में दाखिल होंगे आपको पता लगेगा कि धूल की चादर में लिपटा शिवपुरी का विकास उस तरीके का नहीं हुआ जिसका ये हकदार था. सिंधिया घराने की छाप ग्वालियर की तरह यहां भी हर जगह दिखती है. सिंधिया राजपरिवार ने इसे अपनी रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया था. इस शहर को विकसित करने में माधवराव सिंघिया प्रथम का बहुत योगदान था. दूसरा अंग्रेजों की बड़ी छावनी होने के नाते 1900 वी शताब्दी में इसे बड़े तरीके से बसाया गया था. यहां के पुराने बाशिंदे और हमारे स्थानीय रिपोर्टर अतुल गौड़ बताते हैं कि प्रसिद्ध इंजीनियर विश्वशरैया ने इस शहर के आधुनिकीकरण की नींव रखी थी.

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    दिल्ली से ग्वालियर की इस दुकान पर बूंदी के लड्डू खाने आते थे अटल जी

    अटल जी से कुछ काम करवाना हो या उनका बिगड़ा मूड ठीक करना हो तो बहादुरा के बूंदी के लड्डू ये काम आसान कर देते थे.

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    मैं ट्रोल हूं

    मेहरौली में अतिक्रमण हटाने की खबर के दौरान अचानक पीछे से अवाज आई रवीश जी क्या हाल है?  मैं घूमा तो तीन लड़के खड़े थे उन्हीं में से एक ने पुकारा था. मैंने सोचा कि एनडीटीवी के दर्शक होंगे इसलिए मुझे पहचान गए हैं, लेकिन चश्मा लगा रखे एक दरम्याने कद के लड़के ने आगे बढ़कर मेरी ओर हाथ बढ़ाते कहा आपने मुझे पहचाना? मैंने कहा नहीं. वो बोला मैं आपका ट्रोल हूं.

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