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    Bihar Diwas: गौरवशाली इतिहास से परे, बिहार की ओर निहारे जाने की वजहें और भी हैं

    बिहार में पूर्ण शराबबंदी योजना के पीछे भी मूल रूप से महिलाओं के हित की भावना काम कर रही है. शराबबंदी की मांग सबसे पहले महिलाओं की ओर से ही उठी थी.

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    International Day of Happiness: पॉजिटिव थिंकिंग से किस तरह बढ़ती है हमारी खुशी?

    यह बात ठीक है कि जीवन-यापन के लिए कुछ बुनियादी चीजों की जरूरत सबको होती है, लेकिन जहां तक बात खुश रहने की है, यह एक मानसिक स्थिति ही कही जाएगी. हर हाल में सकारात्मक सोच की आदत डालकर हर कोई अपनी खुशियों में इजाफा कर सकता है.

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    अब 'आइडेंटिटी क्राइसिस' से क्यों जूझने लगा है ऋतुराज वसंत?

    अबकी तो चुनावी सीजन के चक्कर में भी ऋतुओं के राजा की आइडेंटिटी गुम हो रही है. कहीं लहर चल रही, कहीं-कहीं अंडर-करंट. कुछ कोयलों की मीठी कूक पार्टी-प्रचार के शोर में दब जा रही है. कुछ कोयलें आचार संहिता देखकर ज्यादा गाने से परहेज कर रही हैं...

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    क्या तीन भाषा वाले फॉर्मूले के विरोध का कोई तर्कसंगत आधार है?

    तीन-भाषा वाले फॉर्मूले को लाए जाने का मकसद देशभर में भारतीय भाषाओं की पढ़ाई को प्रोत्साहन देना है. NEP, 2020 में साफ तौर पर निर्देश दिए गए हैं कि सीखी जाने वाली भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और निश्चित तौर पर छात्रों की अपनी पसंद की होंगी. शर्त बस इतनी-सी है कि तीन में से दो भारत की मूल भाषाएं हों.

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    क्रिकेट के मैदान से सीख सकते हैं तनावमुक्त जीवनशैली के गुर

    क्रिकेट के मैदान पर हर रोज साहस और धैर्य के सहारे बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल होते देखे जा सकते हैं. अपेक्षाकृत कमजोर समझी जाने वाली टीमों ने भी कई बार दिग्गज टीमों के जबड़े से जीत छीनी है.

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    अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : अपनी मातृभाषा से जुड़े रहना हर किसी के लिए क्यों जरूरी है?

    हमारे संविधान में हर वर्ग को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 में साफ कहा गया है कि जहां तक संभव हो, बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए.

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    महाकुंभ की खातिर लोगों की इतनी विशाल भीड़ क्या बताती है?

    महाकुंभ में उमड़ती भीड़ यह बताती है कि आज के भौतिकतावादी दौर में भी धर्म और अध्यात्म हमारे लिए संजीवनी शक्ति की तरह हैं. केवल भौतिक संसाधनों से समृद्ध होना एक बात है, जबकि विचारों, मान्यताओं और भावनाओं से भी उन्नत होना दूसरी बात.

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    कॉम्पिटीशन के दौर में काम के घंटे को लेकर सार्थक बहस होनी ही चाहिए

    यह भी देखना होगा कि अगर काम के घंटे एक सीमा से आगे बढ़ते चले जाएंगे, तो निजी जीवन के कई सवाल उलझे ही रह जाएंगे. इसका असर कामकाज पर भी पड़ना तय है.

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    क्रिकेट और राजनीति में अटकलबाजियों की वैल्यू कभी कम मत आंकिए!

    चाहे राजनीति हो या क्रिकेट, यहां हर बात का कुछ न कुछ मतलब जरूर है. हर शिगूफे का कोई न कोई निशाना है. हर इकरार या इनकार का कोई आसान शिकार है.

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    विश्व हिंदी दिवस : हिंदी का फैलाव बढ़ाने के लिए इसे टेक्नोलॉजी से जोड़ना जरूरी

    हिंदी भाषा के साहित्य का भंडार बहुत ही विशाल है. इसमें नामचीन साहित्यकारों से लेकर नई पीढ़ी के कलम के सिपाहियों तक का भरपूर योगदान है. इस विपुल साहित्य तक अन्य भाषा बोलने-पढ़ने वालों की पहुंच आसान हो सके, इसका इंतजाम करना होगा.

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    टेक्नोलॉजी के इस दौर में 'डिजिटल डिटॉक्स' पर बात करना क्यों जरूरी है?

    नए साल में या आने वाले दौर में ज्यों-ज्यों डिजिटल उपकरणों पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जाएगी, त्यों-त्यों डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत में भी इजाफा होता चला जाएगा.

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    नए साल पर लिए जाने वाले संकल्प अक्सर 'फ्लॉप' क्यों हो जाते हैं?

    न्यू ईयर रेजॉल्यूशन की सक्सेस-रेट क्या होती है, इसको लेकर देश-दुनिया में पहले ही काफी शोध हो चुके हैं.

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     मैच ड्रॉ करवा पाने की काबिलियत को हल्के में मत लीजिए!

    भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच ब्रिसबेन के गाबा में खेला गया गावस्कर-बॉर्डर ट्राफी का तीसरा टेस्ट मैच बारिश की वजह से ड्रा हो गया था. हालांकि खिलाड़ियों का कहना है कि इससे टीम का आत्मविश्वास बढ़ा है. अमरेश सौरभ बता रहे हैं कि कैसे ड्रा कराया जाता है कोई मैच.

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    महाकुंभ 2025 का हिस्सा बनने से पहले कुछ संकल्प लेना बेहद ज़रूरी

    महाकुंभ विशाल उत्सव जैसा है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है. प्रयागराज महाकुंभ के दौरान देश-दुनिया की नजर इस ओर बराबर बनी रहेगी. बड़ी तादाद में विदेशी श्रद्धालु और सैलानी भी मौजूद रहेंगे. यह एक बड़ा मौका होगा, जब हम अपनी गौरवशाली परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर की अद्भुत झलक सबके सामने पेश कर सकेंगे. ऐसे में सबको अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझनी और संभालनी चाहिए.

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    बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल करने पर बैन लगाना कितना कारगर...?

    ऑस्ट्रेलिया की संसद ने एक बिल पास किया है. इसके मुताबिक, 16 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक बच्चों की पहुंच रोकने की जिम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों पर डाली गई है. अगर कंपनियां नाकाम रहीं, तो उन पर भारी-भरकम जुर्माना लग सकता है. ऐसा कानून लाने वाला ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला देश है.

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    बस आने ही वाला है बोर्ड एग्जाम का सीजन, कैसी हो अभिभावकों और स्टूडेंट की रणनीति?

    बोर्ड परीक्षा और इसके नंबर को लेकर अभी से ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है. हां, इसका मतलब यह भी नहीं कि इन परीक्षाओं को एकदम हल्के में लिया जाए. परीक्षा की तैयारी पूरी मेहनत और उचित रणनीति बनाकर की जानी चाहिए.

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    हिन्दी में तेज़ी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना ज़रूरी है...!

    यहां हिंदी बोलने और लिखने में अंग्रेजी या दूसरी भाषाओं के शब्दों के बढ़ते इस्तेमाल की बात नहीं हो रही है. दूसरी भाषाओं के शब्दों को अपने में अच्छी तरह समा लेना तो अच्छी बात है. इससे तो हिंदी समृद्ध ही हो रही है.

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    लोकगीतों को संजोने के लिए कितना संवेदनशील है हमारा समाज?

    लोकगीतों पर चर्चा के बीच भाषा और बोलियों की चर्चा अकारण नहीं है. देखिए कैसे. छठ हो या कोई अन्य तीज-त्योहार, जन्मदिन-छठी हो या शादी-विवाह, शारदा सिन्हा के गाए गीत हमें केवल इसलिए नहीं भाते हैं कि वे कर्णप्रिय हैं. वे गीत इसलिए भी हमारे जेहन में हमेशा के लिए घर कर जाते हैं, क्योंकि वे ज्यादातर उन बोलियों में रचे गए हैं, जिनसे किसी न किसी रूप में हमारा गहरा वास्ता रहा है.

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    हर हाथ में फोन, पर इंटरनेट की बुनियादी जानकारी न होना खतरनाक!

    NSS के व्यापक सालाना मॉड्यूलर सर्वे (2022-23) के मुताबिक, देश में 15 साल से ऊपर के सिर्फ 60 फीसदी लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना जानते हैं. शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 74 फीसदी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 54 फीसदी.

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    सिर्फ बाहर उजाला करने से क्या होगा, रोशनी की सबसे ज्यादा जरूरत तो भीतर है!

    प्रकाश के पर्व को जबरन कुछ गैरजरूरी चीजों से जोड़कर हम न केवल अपनी धरती और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि सेहत को भी खतरे में डालते हैं.

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