इटावा रेलवे स्टेशन के बाहर निकलते ही घोड़ा चाय नाम से एक मशहूर चाय की दुकान है. चाय की कीमत 11 रुपए है. इसके मालिक 65 साल के अनिल कुमार गुप्ता हैं. उनकी चाय और तेवर दोनों इटावा में मशहूर हैं. दुकान का नाम घोड़ा चाय वाला क्यों है ये पूछने पर हंसकर कहते हैं कि 1994 में जब चाय बनाना शुरु किया तो उन्होंने सोचा था कि जैसे गधे और घोड़े में अंतर होता है. उसी तरह उनकी चाय घोड़ा बनकर इटावा में नाम कमाने की दौड़ में आगे रहेगी नतीजा आपके सामने हैं. पतीले में खौलते दूध की तरफ इशारा करके बताते हैं कि लोग 40 रुपये लीटर दूध खरीदते हैं मैं 55 रुपए में दूध लेता हूं. फिर कहते है कि कौन शख्स है जिसने हमारी घोड़ा छाप चाय न पी हो.
मैंने भी कुल्हड़ में चाय की चुस्की लेते पूछा कि जिस चाय की दुकान पर इतनी भीड़ होती हो वहां चुनावी चर्चा न होती हो ये कैसे मुमकिन है. अनिल कुमार गुप्ता बोले कि वो खुद लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और भारत में नकली चुनाव के नाम से एक किताब भी लिख चुके हैं. उन्होंने इटावा में चाय पिलाने में ही क्रांति नहीं की है बल्कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान सरकार से जब बगावत की तो 33 धाराऐं लगाकर इनको जेल में भी डाला गया. अब अनिल कुमार गुप्ता लोकतंत्र सेनानी के तौर पर जाने जाते हैं और चाय की केतली धीमी आंच पर रखते हुए वो गर्व से बताते हैं कि सपा सरकार की शुरू की गई सेनानी पेंशन के बीस हजार रुपये भी हर महीने मिलती है.
मैंने पूछा कि कैसे वो बोला...भाई साहब बात समझो, मुलायम सिंह का खानदान यहां से राजनीति करता है. इटावा का हर चौथा आदमी किसी न किसी तरह से इस परिवार से जुड़ा है. कोई उनके चाचा से कोई, उनके भाई के लड़के से, किसी न किसी तरह उनके परिवार से लोग जुड़े हैं और मदद लेते रहते हैं. इसलिए गठबंधन को हरवा कर मुलायम की नाक नहीं कटवा सकते हैं. गठबंधन और बीजेपी की चर्चा तीखी हो रही है. लेकिन इस कड़ी चर्चा में बीजेपी के सांसद रहे अशोक दोहरे कांग्रेस के टिकट पर और शिवपाल की प्रगतिशील सपा के उम्मीदवार गायब हैं. चाय पी रहे लोगों ने बताया कि बीजेपी और गठबंधन के उम्मीदवारों की जीत और हार का अंतर कम रहेगा ऐसे में कांग्रेस और शिवपाल यादव के उम्मीदवार किस पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं इस पर भी जीत हार का दारोमदार टिका है. मेरी चाय खत्म हो गई थी लेकिन चुनावी चर्चा यहां तब तक चलती रहती है, जब तक घोड़ा चाय की दुकान बंद नहीं हो जाती है. इटावा से मुझे फर्रुखाबाद जाना था... लिहाजा चुनावी बातचीत छोड़कर मैं आगे बढ़ चला...