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    यह बीजेपी की हार से बढ़कर हेमंत सोरेन की जीत है

    हेमंत सोरेन पहले ऐसे नेता बनकर उभरे हैं जिसकी स्वीकार्यता पूरे राज्य में है. झारखंड के सभी प्रमुख जनजातियों में अब जेएमएम की पकड़ हो गयी है. एक समय में मुंडा, उरांव और पहाड़िया जनजातियों का वोट बीजेपी को मिलता रहा था लेकिन हेमंत गेमचेंजर साबित हुए हैं.

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    स्मृति शेष : औद्योगीकरण के मुद्दे पर भारतीय लेफ्ट को 'राइट' करना चाहते थे बुद्धदेव भट्टाचार्य

    बुद्धदेव भट्टाचार्य पर लिखने वाले उन्हें नंदीग्राम और सिंगूर की असफलता तक ही छोड़ देते हैं, लेकिन बंगाल में उनके दौर में हुए कार्यो की अच्छी व्याख्या नहीं होती है. अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वामपंथी नेताओं के परंपरागत सोच से हटकर काम करने की कोशिश उन्होंने की थी.

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    JMM के 50 साल : आंदोलन से निकली पार्टी, टूटती-बिखरती रही... पर कैसे बढ़ा कारवां

    जेएमएम की स्थापना के समय एके रॉय बिहार विधानसभा के सदस्य थे और उनके संरक्षण में शिबू सोरेन टुंडी के जंगलों में महाजनों, अर्थात शोषकों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे. इस लड़ाई के दौरान कई बार हिंसक झड़प भी होती थी. जिस कारण शिबू सोरेन पर कई मुकदमें दर्ज हो गए थे.

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    जयंती विशेष: भौगोलिक दुनिया के ही नहीं विचारों की दुनिया के भी यायावर थे त्रिपिटकाचार्य राहुल सांकृत्यायन

    केदार पांडेय को जब हम राहुल सांकृत्यायन के नाम से संबोधित करते हैं तो उन्हें महापंडित कहने से बेहतर त्रिपिटकाचार्य कहना शायद उचित होगा. राहुल नाम उनका बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद रखा गया था. महापंडित तो वो काशी से ही थे. इसके बाद राहुल बनने की लंबी यात्रा रही भौगोलिक भी और वैचारिक भी.

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    4 सीट हारकर भी 5 साल की राजनीति जीत गए नीतीश कुमार

    BJP के लिए केंद्र की राजनीति बेहद महत्वपूर्ण है. केंद्र सरकार की मजबूती के लिए नीतीश कुमार के 12 सांसद बेहद महत्वपूर्ण हैं तो अब भाजपा को इसके बदले में बिहार में अपने मुख्यमंत्री की इच्छा को कुर्बानी देनी होगी...

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    राम मंदिर के लिए संघर्ष से लेकर भारत रत्न मिलने तक....आसान नहीं है भारतीय राजनीति में लालकृष्ण आडवाणी होना

    लालकृष्ण आडवाणी की राजनीति में एक सबसे बड़ी बात वो देखने को मिलती है कि उन्होंने आइडियोलॉजी+इम्प्लीमेंट की नीति को अपनाया. उन्होंने अपने विचार की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए अपना पूरा जीवन झोंक दिया.

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    प्रदूषण, हीटवेव, चक्रवात, क्लाइमेट रिफ्यूजी जैसी समस्याएं, भारत में कब बनेंगे चुनावी मुद्दे?

    पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दों पर राजनीतिक दलों की चुप्पी हैरत करने वाली नहीं मानी जा सकती है. संसदीय राजनीति में कोई भी दल उसी मुद्दे को उठाता है जिसकी मांग जनता की तरफ से होती है. आम लोग इस समस्या को झेल रहे हैं. लेकिन उनके बीच जागरुकता की बेहद कमी है.

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    कोल इंडिया में आउटसोर्सिंग 'आंतरिक उपनिवेश' में शोषण की एक और नई शुरुआत

    निजी मालिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए काम के घंटों को असीमित कर देंगे. पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की अपने स्तर पर व्याख्या कर दी जाएगी. एक बड़ी कंपनी अपने उत्पादन लक्ष्य को बढ़ाने के लिए कई छोटी-छोटी कंपनियों को काम का ठेका दे देगी ये छोटी कंपनी पुराने खान मालिकों के गैंग्स ऑफ वासेपुर के पात्र शाहिद खान जैसे पहलवानों की तरह होंगे, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ उत्पादन को बढ़ाना रह जाएगा.

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