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This Article is From Apr 20, 2019

महाप्रबंधक के दौरे के एक दिन बाद ही ट्रेन हादसा, उत्तर मध्य रेलवे जोन सवालों के घेरे में 

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 20, 2019 14:06 pm IST
    • Published On अप्रैल 20, 2019 14:06 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 20, 2019 14:06 pm IST

रेलवे दुर्घटनाओं के लिहाज से संवेदनशील उत्तर मध्य रेलवे जोन के महाप्रबंधक राजीव चौधरी 18 तारीख को कानपुर टुंडला मार्ग का रात को निरीक्षण करते हैं और बीस तारीख को पूर्वा एक्सप्रेस इस रुट पर डिरेल हो जाती है. एनडीटीवी को मिले दस्तावेज बताते हैं कि 18 अप्रैल रात 11.55 पर इलाहाबाद से महाप्रबंधक जी दौरे पर आते हैं और 48 घंटे के अंदर हादसा हो जाता है. अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये दौरे नुमाइशी होते हैं? 2016 में कानपुर के पुखरांया में जंग खा रही 16 बोगियां आज भी भीषण हादसे की गवाही दे रही है. 150 लोगों की मौत होने के बावजूद भी रेलवे ट्रैक की सुरक्षा सुनिश्चित कराने वाले अधिकारी इसे भूल गए लिहाजा कानपुर या यूं कहें कि उत्तरी मध्य रेलवे जोन के इलाहाबाद मंडल के आसपास में बीते पांच सालों में एक के बाद एक छोटे बड़े कई हादसे होते रहते हैं.

शनिवार सुबह फिर कानपुर रेलवे स्टेशन के बाहर पूर्वा एक्सप्रेस डिरेल हो गई. इलाहाबाद के अपने एसी कमरों में बैठने सीनियर डिविजनल इंजीनियर ये समझने को तैयार नहीं है कि पटरियों की सुरक्षा एसी में बैठकर नहीं बल्कि दूर दराज के इलाकों में 24 घंटे निगरानी करने से सुनिश्चित होगी. नियम ये है कि 24 में एक पाथ वे इंस्पेक्टर पटरियों को देखे लेकिन इंजीनियरिंग के जब बड़े साहब इलाहाबाद में खुद आराम करेंगे तो खाक नीचे के कर्मचारी इस धूप में पटरियों की देखभाल करेंगे. पुखरायां हादसे के बाद रेलवे मंत्रालय ने बाकायदा पत्र लिखकर सीनियर डिवीजनल इंजीनियर को इलाहाबाद के अलावा खुर्जा, टुंडला जैसे सेक्शन पर बैठने को कहा था लेकिन दो साल में मंत्री से लॉबिइंग करके इस आदेश को ही रद्दी की टोकरी में फेंकवाकर फिर इलाहाबाद के एसी कमरों में अपनी तैनाती करवा ली. नतीजा छोटे बड़े हादसों की खबरें आए दिन आती रहती है. यही नहीं इलाहाबाद मंडल की ट्रेन पंक्चुअलिटी महज 28 से 30 फीसदी है. इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि उत्तरी मध्य रेल जोन की कार्यप्रणाली गंभीरतौर पर सवालों के घेरे में है.  

पहले रेल दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी ISI पर मढ़ी

कानपुर के आसपास जब रेल दुर्घटनाएं बढ़ी तो पहले उसका ठीकरा ISI पर मढ़ कर पटरियों की सेफ्टी की जिम्मेदारी से ये इंजीनियर्स बच गए,  लेकिन दो साल तक चली NIA जांच में जब कुछ नहीं निकला तो एक बार फिर उत्तरी रेलवे जोन के कामकाज पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये भी है कि आखिर उत्तरी मध्य रेलवे मंडल में एक के बाद एक हादसे क्यों हो रहे हैं. पुखरायां रेलवे हादसे को तीन साल बीत गए लेकिन इस हादसे में मरने वाले 150 लोगों के परिवार वालों को अब तक नही पता चल पाया है कि आखिर उनके अपनों की मौत का जिम्मेदार रेलवे विभाग में छिपी कौन सी काली भेड़ें हैं. हादसे के तीन साल बीतने के बाद भी CRS चीफ आफ रेलवे सेफ्टी अभी तक अपनी फायनल रिपोर्ट नहीं दे पाए. रेलवे के लापरवाह अधिकारियों के कारनामों की वजह से हर रोज रेल से चलने वाले 11 लाख लोगों की जानें दांव पर लगी हैं. 

(रवीश रंजन शुक्ला एनडटीवी इंडिया में रिपोर्टर हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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