ग्वालियर से अब भरतपुर की ओर जा रहा हूं, हम ट्रेन या कार से दूसरे शहर जल्दी पहुंच जाते हैं लेकिन यादें शायद उतनी तेज नहीं होती हैं. अब तक जितना सोचा और जाना है यही पाया कि ग्वालियर और सिंधिया राजघराना आपस में इतने गुंथे हैं कि इन्हें अलग-अलग नजरिए से देखना मुश्किल है. मैंने पांच दिन रुककर यहां यही देखा और समझा है. जब-जब ग्वालियर ने सिंधिया राजघराने से पीछा छुड़ाने की कोशिश की तब-तब और शिद्दत के साथ वो दोबारा जुड़ा. रविवार शाम को ग्वालियर के सिटी सेंटर पर मैं कुछ लोगों के साथ खड़ा था. वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली ने बताया कि ग्वालियर के लिए जो कुछ किया माधवराव सिंधिया ने किया. उनके टाइम का डेवलेपमेंट है. वो उस वक्त की सरकार में राज्य मंत्री थे लेकिन उनका रुतबा कैबिनेट मंत्री से भी ज्यादा था. ग्वालियर जय विलास पैलेस के इतिहास से निकल बस स्टैंड पर बने डीबी मॉल की चकाचौंध से कदमताल तो करने लगा है लेकिन इस शहर को अभी लंबा सफर तय करना है. ये सोचते हुए मैं भी अपने अगले सफर के लिए रवाना हो रहा हूं.
तनाव की फिजा...
प्रचार खत्म होने को है. रविवार शाम करीब सात बजे राजनाथ सिंह की सभा के लिए मैं और मेरे दोस्त आदेश रावल ग्वालियर के हजीरा चौराहे पर पहुंचे. पुलिस के भारी अमले से लगा कि गृह मंत्री की सभा होने वाली है. हमारा टैक्सी का ड्राइवर हंसकर बोला, साहब जयभान पवैय्या को लोग फैशन मंत्री भी कहते है क्योंकि इनके कपड़े और बाल को कभी आप अस्त व्यस्त हालत में देखी नहीं सकते. मैं भी बुंदेली में हंसते हुए हौ बोलकर उतर पड़ा. कार के अंदर से ही बोला मतदान तक होशियार रहना साहब यहां गोली भी चलहै बूथ पै. मैं सभा स्थल की ओर चल पड़ा. स्टेज सज रहा था. कुछ लोग आकर कुर्सी पर शांति से बैठे थे. मैं भी मीडिया गैलरी में खड़ा हो गया. बगल के मीडिया कर्मी ने बताया कि सभा अब नौ बजे तक होगी. सभा स्थल पर लाल कुर्सियों की मीनार खड़ी थी, सैकड़ों कुर्सियां पड़ी थी जो भरी नहीं थी. इसी बीच हजीरा पार्क के बाहर सैकड़ों की तादाद में मोटरसाइकिल पर सवार युवक कांग्रेस के जिंदाबाद के नारे लगाते वहां पहुंच गए. उन्हें नारे लगाते देख बीजेपी के वर्कर भी नारेबाजी करने लगे. मैं बाहर की ओर भाग कर आया तो पुलिस बाइक सवार युवकों को हटा रही थी. कुछ समय के लिए माहौल तनाव पूर्ण हो गया लेकिन पुलिस की सख्ती के बाद विवाद की स्थिति फिर से सामान्य माहौल में बदल गई. मैं भी चहलकदमी करते कांच गोदाम की ओर बढ़ गया. वहां दो आदमी बात कर रहे थे. इस बार चुनाव में झगड़ा होए है. महाराज, मुझे टैक्सी ड्राइवर की बात याद आई. शाम की ठंड में शरीर सिहरन से भर उठा.
(रवीश रंजन शुक्ला एनडटीवी इंडिया में रिपोर्टर हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Nov 26, 2018
अलविदा ग्वालियर...
Ravish Ranjan Shukla
- ब्लॉग,
-
Updated:नवंबर 26, 2018 17:08 pm IST
-
Published On नवंबर 26, 2018 17:08 pm IST
-
Last Updated On नवंबर 26, 2018 17:08 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं