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This Article is From Apr 23, 2019

फर्रुखाबाद की ढहती विरासत और सियासी समीकरण का हाल

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 25, 2019 10:34 am IST
    • Published On अप्रैल 23, 2019 15:32 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 25, 2019 10:34 am IST

फर्रुखाबाद की सियासी गणित पर चर्चा करने से पहले इसके इतिहास के बारे में बात करते हैं. इटावा से फर्रुखाबाद पहुंचने पर ये शहर पहली नजर में मुझे प्रभावित नहीं कर सका था. लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सलमान खुर्शीद के घर कायम गंज जाते हुए रास्ते में कई मकबरे दिखे तो शहर के इतिहास की जानकारी लेने की उत्सुकता बढ़ी. फर्रुखाबाद में गुरुगांव मंदिर के ठीक पीछे नवाब मोहम्मद खां बंगश का मकबरा नजर आया. एक पतली संकरी सड़क से होते हुए जब हम मकबरे पर पहुंचे तो यहां पुरातत्व विभाग का एक नुमाइशी बोर्ड लगा मिला जिससे पता चला कि ये संरक्षित स्मारक है. लेकिन अंदर एक कोने में नशेड़ियों का अड्डा और नवाब बंगश के कब्र पर कुछ बच्चे खेलते मिले. ये उसी नवाब बंगश का मकबरा है दिसने 1714 में मुगलिया तख्त के कमजोर हो चुके शासक फर्रुखशियर के नाम पर इसे बसाया था.

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1715 में मोहम्मद बंगश ने अपने को फर्रुखाबाद का नवाब घोषित किया. नवाब बंगश के मकबरे के एक हिस्से का गुंबद गिर चुका है. मकबरे के मुख्य गुंबद को फिर से ठीक करने की कोशिश ASI की तरफ से की गई लेकिन काफी दिनों से इसका काम बंद होने से इसमें दरार पड़ने लगी है. माना जा रहा है मोहम्मद खां बंगश आज के पाकिस्तान में खैबर पख्तूनख्वाह के बंगश कबायली से आते थे. 1857 की क्रांति में नवाब मोहम्मद खां बंगश  के उत्तराधिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लेने की कोशिश की जिसमें पांच भाईयों को मौत के घाट उतार दिया गया. 

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आजादी के बाद नवाब मोहम्मद खां बंगश के कुछ उत्तराधिकारी पाकिस्तान चले गए. अब नवाब के वारिस काजिम खां बंगश फर्रुखाबाद में ही रहते हैं लेकिन हमारे सहयोगी पत्रकार शिव कुमार के मुताबिक खासे मुफलिसी के दौर से गुजर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पबले इनका पुश्तैनी महल बिक गया और अब काशी राम कालोनी में कबीं रहते हैं. हमने इनकी खोजखबर लेने की कोशिश की लेकिन वक्त की कमी से संभव नहीं हो पाया. नवाब बंगश खान के मकबरे से जब हम शहर की ओर लौटने लगे तो रास्ते में कुछ और मकबरे दिखाई पड़े कुछ को मस्जिद की शक्ल दे दी गई कुछ की जमीन कब्जा करने के लिए लोग इन प्राचीन अवशेषों के जमींदोज होने का इंतजार कर रहे हैं. गंगा नदीं के किनारे बसे इस शहर के बारे खासी मान्यताएं हैं कि यहां पाडवों ने काफी वक्त बिताया है. गुरुगांव मंदिर के बारे में बताया जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने यहां मूर्ति की स्थापना की थी. इतिहास से निकलकर अब कुछ बातें फर्रुखाबाद की सियासत पर...

(रवीश रंजन शुक्ला एनडटीवी इंडिया में रिपोर्टर हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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