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This Article is From May 18, 2019

यूपी में कागज पर गठबंधन और जमीन पर बीजेपी क्यों मजबूत है?

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 20, 2019 00:47 am IST
    • Published On मई 18, 2019 21:18 pm IST
    • Last Updated On मई 20, 2019 00:47 am IST

ये लोकसभा चुनाव खासा असमंजस से भरा है. लोकसभा चुनाव के दौरान मैंने बीजेपी या गठबंधन के कोर वोटरों से बात करने के बजाए नॉन यादव ओबीसी और नॉन जाटव दलितों से ज्यादा बात करने की कोशिश की है. इसमें पाया कि नॉन यादव ओबीसी का बड़ा वर्ग बीजेपी और खासतौर से मोदी से प्रभावित है. जबकि नॉन जाटव दलित बीजेपी और गठबंधन के बीच बंटे हैं. लेकिन दलितों के ज्यादा वोट गठबंधन की ओर जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश के करीब 15 जिलों में सैकड़ों लोगों से बात करने के बाद मेरा आंकलन बिंदुवार है.

पहले गठबंधन की ताकत और उसकी कमियां...
1- हर जगह गठबंधन और बीजेपी के बीच बहुत कांटे की टक्कर है.
2- कागजों में गठबंधन के पास 17 फीसदी मुस्लिम, करीब 9 फीसदी यादव और 20 फीसदी दलित वोट के साथ करीब 46 फीसदी के आसपास वोट दिख रहा है.
3- 2014 में मोदी लहर के वक्त सपा को 22.35 फीसदी और बसपा को 19.77 फीसदी वोट मिले थे.
4- इन्हें मिलाने पर 2019 में कागजों पर 42.11 फीसदी वोट गठबंधन को मिलता दिखाई देता है.
5- लेकिन गठबंधन के पक्ष में कागजों में दिख रहे सारे वोट जमीन पर ट्रांसफर होते नहीं दिख रहे हैं.
6- हिन्दू- मुसलमान ध्रुवीकरण के चलते गठबंधन के 5-10 फीसदी कोर वोटर के बिखराव की आशंका है.
7- राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय पार्टियों की कम भूमिका और मोदी को मजबूत नेता मानने वाले वोटर इसमें शामिल हैं.

बीजेपी की ताकत और उसकी कमी...
1- यूपी में 2014 की तरह इस बार मोदी की लहर नहीं है लेकिन मोदी के खिलाफ भी मौहाल नहीं है. केंद्र और राज्य में सत्ता होने से प्रशासनिक और संसाधनों से बीजेपी मजबूत.
2- 2014 में मोदी लहर के समय बीजेपी को कुल 42.63 फीसदी वोट मिले थे जो गठबंधन के कुल वोटों से करीब 4 लाख 15 हजार ज्यादा थे.
3- बीजेपी 2014 में सबसे बेहतर परफार्मेंस कर चुकी है इस बार उसे 5 से 10 फीसदी वोट कम पड़ने की उम्मीद है.
4- कांटे के इस मुकाबले में फ्लोटिंग वोटरों के खिसकने से बीजेपी को करारा झटका भी लग सकता है और उसकी तीस से चालीस सीटें जा भी सकती हैं.
5- लेकिन बीजेपी के लिए राहत की बात है जमीन पर नोटबंदी, जीएसटी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे गायब हैं और राष्ट्रवाद और पाकिस्तान की बात चर्चा में है.
6- किसानों के खातों में सीधे रकम, शौचालय निर्माण के नाम पर 12 हजार रुपए और उज्जवला योजना में गैस देकर मोदी सरकार ने उन किसानों की नाराजगी कम करने की कोशिश की जो अवारा पशु की वजह से थी..
7- लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी उम्मीद यूपी के 45 लाख युवा वोटर हैं जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा मोदी की विदेश नीति और ताकतवर छवि के कायल हैं.

कांग्रेस और छोटी पार्टियां किसके लिए सिरदर्दी...
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना सबसे खराब परफार्मेंस दिया यानी उसे केवल 60.6 लाख वोट यानी केवल 7.53 फीसदी वोट ले पाई थी जबकि राष्ट्रीय लोकदल को केवल .86 फीसदी वोट मिला था जो अब गठबंधन के साथ है. वहीं निर्दलीय को भी 1.76 फीसदी वोट मिले थे.

1- इस बार कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के लिए ज्यादा उतारे हैं.
2- लेकिन कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां कांग्रेस गठबंधन को भी नुकसान पहुंचा रही है.
3- यूपी में गठबंधन और बीजेपी के बीच हो रही कांटे की इस लड़ाई में कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जिस पार्टी के 20 से 50 हजार कोर वोटर्स में सेंध लगाई तो नतीजे चमत्कारी आ सकते हैं.
4- कांग्रेस के संगठन की जमीन पर गैर मौजूदगी से प्रत्याशी रायबरेली और अमेठी के साथ चार या पांच संसदीय क्षेत्र छोड़कर कहीं लड़ाई में नहीं हैं.
5- यूपी के स्थानीय क्षत्रप जैसे चौधरी अजित सिंह, ओमप्रकाश राजभर, राजा भैय्या और संजय निषाद और उनकी पार्टी लोगों पर ज्यादा असर डालती नहीं दिख रही हैं क्योंकि ये जिस जाति के नेता हैं उनके लिए स्थानीय मुद्दे कोई खास मायने नहीं रखते हैं.

यूपी में किसको कितनी सीट मिलने की संभावना...
बीजेपी और अन्य सहयोगी पार्टियों की 40-45 सीटें (5 सीटें कम या ज्यादा) हो सकती हैं. गठबंधन को 35 से 40 सीटें (5 सीटें कम या ज्यादा) हो सकती हैं. कांग्रेस 2 से 3 सीटें जीत सकती है. मेरे इस पुर्वानुमान के गलत होने पर दो बातें हो सकती हैं. बीजेपी को 50 से ऊपर सीटें आ सकती हैं और न्यूनतम 30 से कम सीटें या गठबंधन को अधिकतम 50 से ऊपर सीटें और न्यूनतम 25 से कम. बाकी 23 मई को ईवीएम के बक्से खुलने के साथ ही पता चल सकता है. चुनाव में जनता जनार्दन कई बार राजनीति के धुरंधर जानकारों को भी मात दे चुकी है. जनता की समझदारी के सामने मैं भी कभी कभी अपने को बौना समझता हूं.

(रवीश रंजन शुक्ला एनडटीवी इंडिया में रिपोर्टर हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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