प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की डांट फटकार, लोगों की लानत- मलानत, ऑड-इवेन स्कूलों को बंद करने और हमारे-आपके जैसे पत्रकारों की प्रदूषण पर थोक खबरों के बावजूद प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा है. सरकारें प्रदूषण रोकने के बारहमासी ठोस कदम उठाने के बजाए उसका जोर प्रदूषण से बचाव पर अब तक ज्यादा रहा है. मसलन, करोड़ों रुपए का मास्क बांटकर वाहवाही बटोर लेना, हाथों में पौधा लेकर फोटो खिंचा लेना, टैंकर लगाकर रोजाना सौ-दो सौ पेड़ों को धो डालना और जब हड़बड़ाना तो दर्जनभर प्रेस कांन्फ्रेस करके ऑड इवेन लागू कर देना. उससे भी बात न बनी तो ट्विटर पर स्कूल बंद करके ठंड में जल्दी उठने वाले माता पिता को फौरी राहत दे देना. इन सबका परिणाम हर साल सिफर आता है और हम हर साल इन्ही केला छाप कुंजी के नकल भरोसे प्रदूषण रोकने की ऑल इंडिया परीक्षा में बैठ जाते हैं. ऐसे सैकड़ों साल तक प्रदूषण नहीं रुक सकता.
प्रदूषण पर सरकारी काम कैसे होता है ?
एक मोटे आंकड़े के मुताबिक दिल्ली और उसके आसपास कोयले और फर्निश आयल से करीब सात सौ छोटी बड़ी फैक्ट्रियां चलती हैं. सुप्रीम कोर्ट की फटकार और भूरेलाल की रोजाना डपट के बाद छापेमार टीम का गठन होता है. एक दिन मैं भी टीम का हिस्सा रहा. मैं खुशनसीब था कि SDM साहब सक्रिय शख्स थे. सुबह से प्लान तैयार हुआ कि इन जहरीली फैक्ट्रियों पर छापा मार कर इन्हे सील किया जाए. एक बड़ी दिक्कत अधिकारी महसूस करते हैं लेकिन उनकी परेशान कोई सुनने को तैयार नहीं है. जहरीली फैक्ट्री को बंद कराने के लिए DPCC यानि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति
SDM या तहसीलदार, MCD, BSES और Delhi Police जैसे विभागों को इकट्ठा करना. खैर किसी तरह दोपहर 12 बजे तक सभी विभागों के लोग इकट्ठा हुए. इनका इकट्ठा होना भी एक बिरले घटना समझी जाती है. मैं इस मामले में खुशनसीब था. मंडोली के इलाके में टीम पहुंची.
संकरी गलियों में बसी घनी आबादी के बीच गुपचुप तरीके से ये जहरीली फैक्ट्री चलती है. खासतौर पर इनका काम रात के अंधेरे में शुरु होता है जब हम और आप सो रहे होते हैं. हम आगे बढ़े एक दो फैक्ट्री पर छापा पड़ा तो समझ आया कि MCD इन फैक्ट्री पर छह हजार तक जुर्माना लगा सकती है लेकिन फैक्ट्री सील करने का अधिकार SDM के पास है. प्रदूषण का NOC रद्द करने का अधिकार DPCC के पास है. सील फैक्ट्री के बिजली काटने का अधिकार BSES के पास है और इन सबको सुरक्षा अगर पुलिस न दे तो कई टीम दिन दिन भर थाने में इंतजार करके चली जाती है. कॉपर और ब्रास की बड़ी फैक्ट्रियां दिल्ली से सटे गाजियाबाद और फरीदाबाद में होने के चलते बिजली के तार को पिघलाकर कॉपर और ब्रास निकालने की जहरीली फैक्ट्री भी इसी आसपास गुपचुप तरीके से चलती है. ये तो रही फैक्ट्री और उस पर कार्रवाई की अड़चनें. लेकिन 70 साल में हम पर्यायवरण बचाने की सिर्फ एक ही तरकीब समझ पाए हैं वो है केवल पौधा लगाने की फोटो अखबार में छपवाना..हम समझ ही नहीं पाए हैं कि बात अब इससे बहुत आगे निकल चुकी है.
(रवीश रंजन शुक्ला एनडीटीवी इंडिया में रिपोर्टर हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.