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    यूपी चुनाव नतीजे : गैर भाजपा दलों के लिए यह आत्‍ममंथन का समय

    बीजेपी के घोर समर्थक भी पार्टी के 200 के करीब का आंकड़ा पाने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन जिस तरह से संप्रदाय, जाति या क्षेत्र के सीमाएं तोड़ते हुए कुल वोट का 40 प्रतिशत से भी ज्यादा पाकर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल की है, उससे प्रदेश के लोगों और राजनीतिक माहौल के बारे में नई परिभाषाएं गढ़ने के जरूरत महसूस हो रही है.

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    क्या इस बार नेताओं को गलतफहमी का शिकार बना रहे हैं मतदाता...?

    जहां राजनेता समझ रहे हैं कि चुनाव प्रचार के दिनों में वे जनता को बहका रहे हैं, वहीं लोग वास्तव में मतदान के दिन और उसके बाद सरकार बनने की पूरी अवधि के दौरान में नेताओं को इस ग़लतफ़हमी में रखते हैं कि वे उन राजनेताओं से बहुत खुश हैं...?

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    UP elections 2017: कुछ कह गए वो, सुन कर हम भी चल दिए

    ऐसा कुछ है हमारे देश के चुनावों में कि अच्छे भले नेता भी कुछ ऐसा कहने को मजबूर हो जाते हैं जिससे उनके बारे में लोगों की राय बदल जाए.

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    यूपी चुनाव : हर छोटे-बड़े दल ने पाल रखी हैं उम्मीदें

    उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मतदान अपने दूसरे चरण में पहुंच चुका है, लेकिन अभी भी कुछ राजनीतिक दलों में चुनावी रणनीति को लेकर असमंजस बरक़रार है. ये दल कोई छोटे या महत्त्वहीन नहीं, बल्कि ऐसे दल हैं जो एक न एक प्रदेशों में सत्ता में हैं.

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    यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन से किसे क्या मिलेगा?

    यह प्रदेश में एक दशक से भी अधिक समय के बाद किन्हीं दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच चुनावी गठबंधन है और ख़ास बात यह है कि इसकी घोषणा होने से पहले कांग्रेस ने प्रदेश की सपा सरकार को ही लपेटते हुए आक्रामक तौर पर अपना जनसंपर्क और सभा कार्यक्रम शुरू कर दिया था.

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    अखिलेश यादव-राहुल गांधी की नई दोस्ती से उठते नए सवाल

    कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावपूर्व समझौता हाल के दशकों में सबसे आश्चर्यजनक और महत्‍वपूर्ण राजनीतिक गठबंधनों में एक है.

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    काल्पनिक डर और हमारे अंदर के 'रावण'

    भारत में, और विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों में चुनावी प्रचार एक तरह से फ्री-स्टाइल कुश्ती की तर्ज पर होता है जिसमें कोई भी नियम या बंदिश नहीं होती. भले ही भारत का चुनाव आयोग अपने तमाम आदेशों से चुनाव प्रचार के वक्तव्यों, टिप्पणियों और भाषणों के लिए दिशा निर्देश निर्धारित करता रहा हो, लेकिन नेता हैं कि मानते ही नहीं. उनके लिए प्रचार का एक-एक मौका अपनी बात को अतिरंजित कर कहने के लिए इस्तेमाल किया जाता है भले ही इससे किसी की संवेदनाओं पर चोट क्यों न पहुंचती हो.

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    क्या उम्मीदों को पूरा करेगा आने वाला आम बजट 2017...?

    यह भी रोचक है कि बजट पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद आ रहा है, और ऐसे संकेत दिए गए हैं कि इन पांच राज्यों से संबंधित कोई विशिष्ट घोषणाएं नहीं की जाएंगी. लेकिन फिर भी, कुल मिलाकर इस बजट से देश के हर व्यक्ति को बड़ी उम्मीदें हैं, क्योंकि विमुद्रीकरण के बाद घरों के और व्यापार के बजट में आए भूचाल के बाद अब देश के बजट से ही स्थिति संभलने की उम्मीद है.

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    अखिलेश को मिली सपा की विरासत, क्या होगा मुलायम सिंह का भविष्य...

    क्या ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिर से चुनावी रेस में आगे आ सकते हैं? क्या उनके ऊपर अपने पिता मुलायम सिंह यादव की पार्टी और उनके चुनाव चिन्ह पर कब्जा कर लेने का आरोप उन्हें नुकसान पहुंचाएगा? और क्या अब अखिलेश एक भावनात्मक अपील करते हुए अपने पिता से यह कहेंगे कि पार्टी तो मुलायम की ही है, और तीन महीने बाद – फिर से सत्ता हासिल करके – वे (मुलायम) ही फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे?

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    उत्तर प्रदेश में कोई हल नजदीक ही है, गठबंधन के बढ़ते आसार

    क्या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर कुछ तय हो चुका है? क्या इसी का नतीजा है कि पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के अब तक के रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है?

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    जहां थे, वहीं हैं समाजवादी पार्टी के 'प्रथम परिवार' के सभी नेता...

    उत्तर प्रदेश में परिवार और पार्टी में चल रहे लम्बे सोप ऑपेरा का एक और एपिसोड समाप्त हुआ. कुछ समय के ब्रेक के बाद नया एपिसोड शुरू होगा, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन चाहे इस ड्रामे की स्क्रिप्ट पहले से लिखी गई हो, या दैनिक ज़रूरत के आधार पर लिखी जाती हो, या बिना स्क्रिप्ट के सभी चरित्रों को अपनी भूमिका निभाने की आज़ादी दी गई हो, यह बात तो स्पष्ट है कि ऐसे मोड़ और झटके बिना पहले से तय किए गए संभव नहीं हैं.

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    यूपी चुनाव 2017 : चेहरा अखिलेश का, समाजवादी पार्टी 'पुराने दिनों' की ओर

    उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में चल रहा 'युद्ध' अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचता नज़र आ रहा है. महीनों पहले शुरू हुए इस पारिवारिक जंग का अंत भले ही अभी न हुआ हो, लेकिन यह जरूर स्पष्ट है कि आने वाले समय में पार्टी का स्वरूप और नेता कौन होगा.

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    उत्तर प्रदेश : विकास गाथा पर भारी जातीय संतुलन की राजनीति

    चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों और नेताओं को क्या-क्या नहीं करना पड़ता है. ऐसे वादे करना जो पूरे न किए जा सकते हों, ऐसे आरोप जो साबित न किए जा सकते हों, ऐसी मांग करना जो वाजिब न हों, यह अब आम बात हो चुकी है. और कुछ इसी तरह अपनी छवि गढ़ी जाती है, जिसे बनाए रखने के लिए न जाने क्या-क्या नाटक करने पड़ते हैं.

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    उत्‍तर प्रदेश में गठबंधन की लुका-छिपी का खेल

    क्या कोई भी राजनीतिक दल अपने को किसी से कम समझता है? क्या कोई दल कभी यह स्वीकार करता है कि उसे किसी दूसरे दल की सहायता की जरूरत है? हर दल किसी भी प्रदेश में आने वाले चुनाव में भारी बहुमत का ही दावा करता है.

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    यूपी चुनाव : प्रशांत किशोर और कांग्रेस पर उठते सवाल...

    यह कहना आसान नहीं है कि अब अपनी रणनीति को बदलकर कांग्रेस फिर लोगों की सोच में जगह बना सकती है, लेकिन मज़े की बात यह है कि इस हाल के लिए प्रशांत किशोर को ही ज़िम्मेदार बताते हुए प्रदेश कांग्रेस के अधिकतर नेता बिलकुल चिंतित नज़र नहीं आ रहे.

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    मोदी विरोध में ममता को अखिलेश का साथ

    अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी विरोध में राष्ट्रीय स्तर पर कौन नेता उभरेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं. इस स्थान के लिए नीतीश कुमार उतने ही मजबूत दावेदार हो सकते हैं, जितनी ममता बनर्जी. लेकिन चूंकि नीतीश विमुद्रीकरण के मुद्दे पर मोदी के साथ हैं, ऐसे में ममता के लिए यह बड़ा मौका है और फिर अखिलेश का साथ भी मिल गया तो कहना ही क्या.

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    नोटबंदी से निकल रहे नए राजनीतिक संकेत

    नोटबंदी को लेकर मचे देशव्यापी घमासान के बीच कुछ प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की प्रतिक्रिया से लगता है कि वे और उनकी पार्टियां इस मुद्दे के दम पर अपने को अपने प्रदेशों के बाहर मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.

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    नोटबंदी के माहौल में एकता के अनोखे रंग...

    पूरे देश में एकता की बयार चल रही है. लोग नोट बदलने के लिए एक हो रहे हैं, लाइन लगने के लिए एक हो रहे हैं, नोट बंदी का समर्थन करने के लिए एक हो रहे हैं, नोट बंदी और विशेष तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए एक हो रहे हैं.

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    'मोदी विरोध' के मुद्दे पर ममता बनर्जी और मायावती के बीच होड़

    मायावती की आक्रामकता केवल प्रेस वार्ता में अपना बयान पढने, और संसद के बाहर बयान देने तक ही सीमित रहती है. अपनी राजनीतिक यात्रा में ममता किसी भी मुद्दे को आक्रामक तौर पर सड़क पर ले जाकर लोगों को लामबंद करती आई हैं, और इस बार भी उन्होंने मायावती को पीछे छोड़ दिया है.

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    यूपी चुनाव : सियासी पैतरों और यात्राओं का एक नया दौर...

    उत्तर प्रदेश में मौसम बदलने के साथ ही चुनावी बादल छाने लगे हैं और आने वाले कुछ हफ़्तों में चुनाव की घोषणा होने से पहले प्रदेश में नए चित्र आकार लेने लगे हैं. सत्ता में बने रहने के लिए आतुर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछले दो महीनों के घटनाक्रम को भुला देने के लिए अलग राह पकड़ ली है, जिससे पार्टी के संगठन में हलचल है.

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