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This Article is From Jan 10, 2017

उत्तर प्रदेश में कोई हल नजदीक ही है, गठबंधन के बढ़ते आसार

Ratan Mani Lal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 10, 2017 17:15 pm IST
    • Published On जनवरी 10, 2017 17:15 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 10, 2017 17:15 pm IST
क्या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर कुछ तय हो चुका है? क्या इसी का नतीजा है कि पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के अब तक के रुख में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है?

अभी तक मुलायम यही कहते आ रहे थे कि पार्टी की जीत की स्थिति में अगले मुख्यमंत्री का चुनाव पार्टी के निर्वाचित विधायक ही करेंगे, क्योंकि उनकी पार्टी में पहले से मुख्यमंत्री नामित करने की परंपरा नहीं है. यह बात अलग है कि समाजवादी पार्टी में 2012 से पहले तक मुलायम के अलावा किसी और के मुख्यमंत्री बनने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था. लेकिन पार्टी के नेताओं और उनके परिवार के सदस्यों के बीच पिछले कुछ महीनो से चले आ रहे विवाद के कारण पार्टी में विभाजन तक की खबरें आने लगीं थीं, और इसकी वजह से पार्टी के दोबारा सत्ता में आने पर भी संशय पैदा हो रहा था. एक धारणा के अनुसार अखिलेश कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में थे, और अभी भी हैं. लेकिन दूसरी ओर मुलायम और उनके भाई शिवपाल ऐसे गठबंधन का समर्थन नहीं कर रहे थे. पिछले दिनों के घटनाक्रम में जब अखिलेश ने यह प्रदर्शित कर दिया कि पार्टी के वर्तमान विधायकों में अधिकतर उनके साथ हैं, उसके बाद मुलायम और शिवपाल समर्थकों को भी शायद यह लग रहा है कि अपने दम पर और बिना गठबंधन के शायद दोबारा पार्टी की सरकार न बन पाए. दूसरी ओर, अखिलेश-रामगोपाल पक्ष भी इस बात के प्रति बहुत आश्वस्त नहीं है कि मुलायम-शिवपाल के मजबूत समर्थन के बिना उनके गुट को सरकार बनाने के लायक संख्या मिल पाएगी.

ऐसा मानने का यह भी कारण है कि मतदान शुरू होने में एक महीने का समय बचा है और जहां अन्य दल अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर रहे हैं, प्रचार की रणनीति बनाने में जुट गए हैं, वहीं सपा में अभी तक प्रत्याशियों की अंतिम सूची को तो छोड़िए, चुनाव चिन्ह का अता पता तक नहीं है. यदि यह स्थिति एक हफ्ते और भी बनी रही तो सपा के दोनों गुट प्रभावी रूप से चुनावी दौड़ से बाहर हो सकते हैं.

कांग्रेस के उपाध्यक्ष के विदेश में होने की वजह से अखिलेश पक्ष द्वारा कांग्रेस से गठबंधन पर अंतिम मोहर लगाने में देर हुई है, लेकिन अब चूंकि राहुल भारत आ गए हैं, इसलिए अगले कुछ दिनों में यह तय किया जा सकता है. इसी के साथ, सूत्र बताते हैं कि जनता दल (यूनाइटेड) के सभी प्रमुख नेता भी इस गठबंधन से जुड़ने के लिए तैयार हैं और उन्हें भी राहुल के वापस आने का इंतजार है. पटना स्थित सूत्रों की मानें तो सपा-कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सहमत हैं. राष्ट्रीय लोकदल की ओर से अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी भी गठबंधन के पक्ष में बताए जाते हैं और यदि सब ठीक रहा तो इस बात की सम्भावना है कि सपा-कांग्रेस-जदयू-रालोद गठबंधन जल्द ही अस्तित्व में आ सकता है.
ऐसे गठबंधन में सपा को सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार उतारने की जरूरत नहीं होगी, और सपा के दोनों पक्षों से ही कुछ नाम कम किए जाने होंगे. दोनों ही धड़ों से केवल वे ही उम्मीदवार चुने का सकते हैं जिनके जीतने के असार सबसे ज्यादा हों. यदि गठबंधन को जीत मिली तो सपा की ओर से अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे इसमें कोई संशय नहीं है.

इस पूरे संभावित घटनाक्रम में मुलायम, शिवपाल, राम गोपाल और अखिलेश की सहमति बताई जाती है. ऐसा भी संभव है कि शिवपाल और राम गोपाल चुनाव प्रक्रिया से अपने को अलग रखें. इस बीच दोनों ही पक्ष चुनाव योग से “साइकिल” चुनाव चिन्ह पर अपना दावा वापस भी ले सकते हैं, और यदि ऐसा नहीं भी हुआ तो दोनों पक्ष अलग-अलग चिन्हों पर गठबंधन का हिस्सा बने रह सकते हैं.

संकेत मिल रहे हैं कि मुलायम ने अखिलेश से तथाकथित तौर पर कहा है कि वे सपा की जीत की दशा में अखिलेश को ही अगला मुख्यमंत्री बनाएंगे और इसलिए दोनों ही चुनाव आयोग में दाखिल “साइकिल’ चुनाव चिन्ह पर अपना दावा वापस ले लें, और मुलायम को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहने दें.

हालांकि लम्बे समय से उत्तर प्रदेश में चले आ रहे राजनीतिक कथानक में कोई भी मोड़ नया नहीं कहा जा सकता. जो कुछ भी आज कहा गया है, अगले दिन उसके उलट कुछ और भी कहा जा सकता है. लेकिन मुलायम का दो दिन तक लगातार यह कहना कि वे (मुलायम) स्वयं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अखिलेश प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं यह जरूर इंगित करता है कि इसके पीछे भी कोई निर्धारित प्रयोजन है.

मुलायम सिंह यादव जिस तरह राजनीति के अनुभवी और चतुर खिलाड़ी हैं, उससे यह तो स्पष्ट है ही कि उनका कोई भी बयान या निर्णय दूरगामी परिणामों को समझे बिना नहीं आता है. ऐसे में पार्टी का विभाजन की कगार तक आना, फिर अचानक एक होने का संकेत देना यह तो इंगित करता ही है कि इस पुरोधा के मन में कोई न कोई नई योजना आई है जिसे लागू करने के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं बचा है. चूंकि ऐसी खबर है कि चुनाव आयोग 13 जनवरी तक “साइकिल” चुनाव चिन्ह पर कोई फैसला ले सकता है, इसलिए इस दिन तक पार्टी भी अपनी चुनावी रणनीति के जुड़ा कोई बड़ा फैसला ले सकती है.

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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