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This Article is From Jan 23, 2017

यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन से किसे क्या मिलेगा?

Ratan Mani Lal
  • पोल ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 07, 2017 14:21 pm IST
    • Published On जनवरी 23, 2017 17:44 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 07, 2017 14:21 pm IST
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनाव-पूर्व गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती अपनी पार्टी में संभावित असंतोष को संभालना है. भले ही समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर चुनाव लड़ने की वजह से मजबूत महसूस कर रही हो, लेकिन जिन 268 प्रत्याशियों का नाम पार्टी अभी तक घोषित कर चुकी है, उनके लिए यह अनिश्चितता का दौर है. वह भी जब प्रथम चरण के मतदान के लिए नामांकन की अंतिम तारीख एक दिन बाद (यानी 24 जनवरी) है.

यह प्रदेश में एक दशक से भी अधिक समय के बाद किन्हीं दो बड़े राजनीतिक दलों के बीच चुनावी गठबंधन है और ख़ास बात यह है कि इसकी घोषणा होने से पहले कांग्रेस ने प्रदेश की सपा सरकार को ही लपेटते हुए आक्रामक तौर पर अपना जनसंपर्क और सभा कार्यक्रम शुरू कर दिया था. राहुल गांधी द्वारा शुरू किए इस कार्यक्रम को '27 साल यू.पी. बेहाल' का नारा दिया गया था और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को यूपी का मुख्यमंत्री का चेहरा भी घोषित कर दिया गया था. लेकिन कांग्रेस को अब उम्मीद है कि लोगों की याददाश्त लम्बी नहीं होती और इस गठबंधन के बाद लोग किसी न किसी तरह से यह समझ ही जायेंगे कि जिन 27 सालों की बात उनके नारे में की गई थी, उनमें समाजवादी पार्टी के शासनकाल के पांच साल सम्मिलित नहीं थे.

कुछ दिन पहले अपनी ओर से 191 प्रत्याशियों की सूची जारी करके समाजवादी पार्टी इस गठबंधन को टूटने के कगार पर ले गई थी, और उसके बाद ही कोशिश शुरू हुई कि किसी तरह से कोई सम्मानजनक समझौता हो जाए. कहा जाता है कि चुनाव आयोग द्वारा पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न मिल जाने से उत्साहित अखिलेश यादव कांग्रेस को 100 सीटों से भी कम पर राज़ी करवाना चाहते थे, और यदि प्रियंका द्वारा ऐन मौके पर दखल न दिया गया होता तो समझौता लगभग टूट ही चुका था.

अब स्थिति यह है कि समझौते के मुताबिक कांग्रेस को 105 सीटें दी तो गई हैं लेकिन ये कौन सी सीटें होगी, इस पर अभी संशय बरकरार है. इस बीच सपा ने जिन 268 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं, उनमें से कुछ सीटें ऐसी हो सकती हैं जो अंततः कांग्रेस के खाते में जाएं. यानी, जिन सपा प्रत्याशियों का नाम सूची में घोषित भी हो चुका है, हो सकता है उनके नाम कट भी जाएं और उनकी मेहनत और खर्च बेकार हो जाए. सूत्रों के अनुसार अभी तक जारी हुए नामों में लगभग 40 बदले जा सकते हैं.

यही है वह अगली चुनौती जो अखिलेश को तुरंत, यानी अगले कुछ दिनों में ही संभालनी है. एक ओर तो वो सपा प्रत्याशी हैं, जिनका नाम अखिलेश द्वारा घोषित किया गया, और दूसरी ओर वे सपा प्रत्याशी हैं जिन्हें मुलायम खेमे का होने के बावजूद टिकट दिया गया था. ये दोनों प्रकार के प्रत्याशी अब अपने टिकट कट जाने की आशंका में सशंकित होकर अन्य दलों से संपर्क में हैं. दो दिन पहले ही वरिष्ठ पार्टी नेता और पूर्व मंत्री अम्बिका चौधरी ने सपा छोड़ बहुजन समाज पार्टी का सहारा ले लिया और उन्हें मायावती ने तुरंत ही उनके पसंद के क्षेत्र से बसपा प्रत्याशी घोषित भी कर दिया. उसी दिन तीन अन्य सपा विधायक - रामपाल यादव (बिसवां, सीतापुर), आशीष यादव (एटा) और रामवीर सिंह (जसराना, फिरोजाबाद) ने भी सपा छोड़ दी, और अब लोक दल से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

यही नहीं, वरिष्ठ नेता और कुछ दिन पहले तक मुलायम के प्रबल समर्थक रहे और अखिलेश के पक्षधर राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल के अचानक सपा छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जाने की खबरें आईं. हालांकि नरेश अग्रवाल ने मीडिया से मुखातिब होकर कहा कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है. यह बात ध्यान देने वाली है कि नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को हरदोई से टिकट मिला है.

दूसरी ओर कांग्रेस में भी बेचैनी कम नहीं है. पार्टी का गढ़ समझे जाने वाले क्षेत्रों में कई पर सपा अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी है, जैसे अमेठी और राय बरेली. समझौते से कांग्रेस के कई बड़े नेता और कार्यकर्ता मायूस हैं और प्रचार के दौरान अपनी भूमिका को लेकर चिंतित हैं. कांग्रेस के अधिकतर कार्यकर्ताओं ने पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश सरकार के खिलाफ ही संघर्ष करके अपनी ज़मीन मजबूत की है, और अब जब उनसे अपेक्षा है कि वे सपा के समर्थन में प्रचार करें तो वे मायूस हैं. उनमें से अधिकतर यह याद करते हैं कि कुछ महीने पहले प्रशांत किशोर की रणनीति के चलते प्रदेश में कई जगह गर्मी और बरसात के बावजूद खाट सभाओं में भी लोग जुटे थे, लेकिन अब उसकी उपयोगता नहीं दिख रही.

क्या यह संयोग कहा जाएगा कि रविवार सवेरे एक भव्य आयोजन में अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव ने सपा के चुनावी घोषणा पत्र को जारी किया, और शाम को गठबंधन की घोषणा हुई? स्पष्ट है कि चुनाव के बाद यदि सपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनती है तो सपा का ही घोषणा पत्र मायने रखेगा, और कांग्रेस के अपने चुनावी वादों के लिए कोई जगह नहीं होगी. यही नहीं, गठबंधन की घोषणा के तुरंत बाद ही सपा ने अपने 77 प्रत्याशियों की एक और सूची जारी कर दी, जबकि कांग्रेस में अभी यह प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई है.

जहां एक ओर सपा का यह मानना है कि यदि गठबंधन की जीत होती है तो वह अखिलेश यादव की छवि के बल पर ही होगी, वहीं कांग्रेस में कई नेता यह महसूस करते हैं कि यदि ऐसा हुआ तो आगे लम्बे समय तक प्रदेश कांग्रेस का कोई नेतृत्व पनप ही नहीं पायेगा. लेकिन सत्ता में भागीदारी के संभावित सुख के आगे बाकी सब मायने नहीं रखता.

देखना यह है कि क्या अल्पसंख्यक और समाज के अन्य वर्गों को अपनी ओर खींचने की यह कवायद बसपा को नुकसान पंहुचा पायेगी, और क्या इस प्रकार संभावित ध्रुवीकरण से भाजपा को लाभ तो नहीं मिलेगा?

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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