क्या ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फिर से चुनावी रेस में आगे आ सकते हैं? क्या उनके ऊपर अपने पिता मुलायम सिंह यादव की पार्टी और उनके चुनाव चिन्ह पर कब्जा कर लेने का आरोप उन्हें नुकसान पहुंचाएगा? और क्या अब अखिलेश एक भावनात्मक अपील करते हुए अपने पिता से यह कहेंगे कि पार्टी तो मुलायम की ही है, और तीन महीने बाद – फिर से सत्ता हासिल करके – वे (मुलायम) ही फिर से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे?
सोमवार (17 जनवरी) को देर शाम जब दिल्ली में चुनाव आयोग ने 42 पृष्ठों के आदेश में यह निर्णय सुनाया कि आयोग द्वारा सारे तथ्यों और दस्तावेजों पर विचार करने के बाद यह पाया गया कि जिस पक्ष का नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे हैं वही समाजवादी पार्टी है और इसलिए उसी गुट को ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह इस्तेमाल करने का अधिकार है, तो यह निर्णय उस व्यापक धारणा के विपरीत था कि इस विवाद के कारण ‘साइकिल’ चुनाव चिन्ह किसी गुट को न मिलेगा और दोनों ही पक्षों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना पड़ेगा. लेकिन चुनाव आयोग ने अपने सर्व-सम्मत निर्णय में पुराने मामलों, सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों और अन्य साक्ष्यों के आधार पर यह माना है कि अखिलेश के नेतृत्व वाला गुट ही समाजवादी पार्टी है.
स्पष्ट है कि जिस पक्ष के साथ पार्टी के प्रतिनिधियों और विधायकों का बहुमत है, उसी को आयोग ने वास्तविक पार्टी माना है. भले ही मुलायम सिंह यादव पार्टी के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों न रहे हों, लेकिन वे विधायकों और पार्टी के पदाधिकारियों की बड़ी संख्या अपने पक्ष में लाने में असफल रहे, और इसी तथ्य की वजह से पार्टी और उसका चुनाव चिन्ह उनके हाथ से निकल गए. लेकिन क्या मुलायम वास्तव में लड़ाई हार गए हैं? एक राजनीतिक नेता के तौर पर भले ही उनकी बनाई पार्टी में अब उनकी कोई जगह नहीं है, लेकिन क्या यह परिवर्तन एक पिता के तौर पर उनके लिए स्वाभाविक नहीं है? क्या किसी भी सामान्य पिता की तरह मुलायम अपना बनाया सब कुछ अपने बड़े बेटे को ही नहीं देना चाहते होंगे? और यदि वे ऐसा ही चाहते थे, तो क्या उनकी हार दिखने वाला यह निर्णय उनकी वास्तविक जीत ही नहीं है?
गौरतलब है कि इस निर्णय की घोषणा होने के समय अखिलेश अपने पिता मुलायम के घर पर ही थे और सूत्रों के अनुसार अखिलेश की पत्नी, शिवपाल यादव, तथा पार्टी के कोषाध्यक्ष भी वहीं थे. और देखते-देखते जहां एक ओर मुख्यमंत्री के अधिकारिक निवास के बाहर समर्थकों का जमावड़ा लग गया और जश्न का माहौल बन गया, वहीं मुलायम के घर के बाहर सन्नाटा छा गया.
सोमवार दोपहर को ही मुलायम ने अपने समर्थकों से बात करते हुए अखिलेश की आलोचना की थी और यहां तक कहा था कि अखिलेश मुस्लिम समुदाय के हितैषी नहीं हैं. यही नहीं, मुलायम ने ऐसे संकेत भी दिए थे कि वे जरूरी समझेंगे तो अखिलेश के विरुद्ध चुनाव भी लड़ेंगे. तो ऐसे में, शाम को सुनाए गए निर्णय के बाद प्रदेश के मुस्लिम वर्ग के लोगों के सामने क्या रास्ता है? क्या वे पिछले पांच साल तक सत्ता चलाने के तरीके का समर्थन करते हुए अखिलेश के साथ जाएंगे, या मुलायम के दावे का समर्थन करते हुए मुलायम के दल का साथ देंगे?
एक तरह से देखा जाए तो यह निर्णय केवल मुस्लिम वर्ग को ही नहीं लेना है. उन सभी पुराने समाजवादियों और मुलायम समर्थकों के सामने भी यह कठिन निर्णय लेने का समय आ गया है. निर्णय सुनाए जाने के तुरंत बाद मुलायम के कई साथियों ने स्पष्ट कहा कि वे हमेशा से मुलायम के साथ ही रहे हैं और अब भी रहेंगे.
वास्तव में अब परीक्षा की घड़ी तो शिवपाल यादव की शुरू हो रही है. पार्टी में विवाद के चरम पर होने के समय जहां अखिलेश के पक्ष में बड़ी संख्या में विधायक पहुंच गए थे और उन्होंने अपने समर्थन का हलफनामा भी दे दिया था, वहीं शिवपाल अपने (या मुलायम) के पक्ष में बड़ी संख्या में समर्थक नहीं जुटा पाए थे. यदि एक तरह से देखा जाए तो मुलायम ने तो शिवपाल की बात रखते हुए उन्हें मौका दिया था कि वे (शिवपाल) अपने गुट की ताकत का प्रदर्शन कर लें, और इस प्रदर्शन में मुलायम भी उनके पक्ष में खड़े रहे. लेकिन पार्टी के संस्थापक मुलायम जैसे वरिष्ठ नेता की उपस्थिति के बावजूद शिवपाल अपनी ओर बड़ी संख्या में पार्टी प्रतिनिधि या विधायक नहीं ला पाए. शिवपाल की विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों पर पकड़ देखने के बाद मुलायम कब तक शिवपाल का साथ देंगे? अब यह भी तय है कि मुलायम और शिवपाल अपने गुट के लिए नए चुनाव चिन्ह की मांग करेंगे, या अभी भी विद्यमान लोक दल के झंडे और चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे? वैसे भी, इस लोक दल के अध्यक्ष ने मुलायम को इस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का न्योता दे ही दिया है.
शिवपाल के लिए अगली, और शायद उनके राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन चुनौती होगी आने वाले विधानसभा चुनाव में अपने और मुलायम के नेतृत्व वाले दल का अच्छा प्रदर्शन करना. जहां अखिलेश के पास पार्टी है, पार्टी के स्त्रोत हैं, झंडा और चुनाव चिन्ह है, समर्थक, विधायक व मंत्री हैं और सरकार तो है ही, वहीं शिवपाल के पास अपनी व्यक्तिगत छवि और जमीनी पकड़ के अलावा कुछ नहीं है. फिर भी उन्होंने अपने पक्ष की ओर से उम्मीदवारों की कई सूचियां जारी कर दी हैं. उनकी और अखिलेश की ओर से जारी की गई सूचियों में कई नाम दोनों में हैं. शिवपाल के पास अब गठबंधन का विकल्प सीमित है और देखना होगा कि क्या वे प्रदेश की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े भी करेंगे या नहीं.
अखिलेश की ओर से कांग्रेस और अन्य दलों के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन पर भी इस निर्णय का असर पड़ना स्वाभाविक है और अखिलेश की मजबूती की वजह से अब गठबंधन के सदस्य दलों को पहले दी गई सीटों की संख्या में भी बदलाव किया जा सकता है. अब तक समाजवादी पार्टी के दोनों गुटों द्वारा अलग चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की उम्मीद बनाए अन्य दलों के लिए अब सतर्क होने का समय है. निश्चित तौर पर इस निर्णय से अखिलेश की स्थिति और मजबूत होगी और बहुजन समाज पार्टी व भारतीय जनता पार्टी को अपनी रणनीति में बदलाव करने होंगे.
यदि मुलायम अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे को सौंपना चाहते थे, तो शुरुआती घटनाक्रम से यह स्थापित करने की कोशिश की गई कि अखिलेश एक मजबूत नेता और मुख्यमंत्री हैं, फिर उनके पक्ष में बड़ी संख्या में समर्थक विधायक दिखाई दिए, और अब चुनाव आयोग ने भी मान लिया कि अखिलेश ही समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, और चुनाव चिन्ह भी उन्हीं का है.
अंततः सवाल एक ही है – जरा सोचिए, यदि विवाद न होता, तो क्या ऐसी घोषणा मुलायम अपने बेटे के लिए इतनी आसानी से कर सकते थे?
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Jan 16, 2017
अखिलेश को मिली सपा की विरासत, क्या होगा मुलायम सिंह का भविष्य...
Ratan Mani Lal
- ब्लॉग,
-
Updated:जनवरी 16, 2017 21:48 pm IST
-
Published On जनवरी 16, 2017 21:43 pm IST
-
Last Updated On जनवरी 16, 2017 21:48 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, मुलायम सिंह, यूपी विधानसभा चुनाव 2017, चुनाव चिन्ह साइकिल, समाजवादी पार्टी, शिवपाल यादव, ब्लॉग, रतन मणि लाल, UP, Akhilesh Yadav, Mulayam Singh, UP Assembly Elections 2017, Samajwadi Party, Khabar Assembly Polls 2017, Blog, Ratan Mani Lal