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This Article is From Dec 28, 2016

यूपी चुनाव 2017 : चेहरा अखिलेश का, समाजवादी पार्टी 'पुराने दिनों' की ओर

Ratan Mani Lal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    December 28, 2016 17:50 IST
    • Published On December 28, 2016 17:50 IST
    • Last Updated On December 28, 2016 17:50 IST
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में चल रहा 'युद्ध' अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचता नज़र आ रहा है. महीनों पहले शुरू हुए इस पारिवारिक जंग का अंत भले ही अभी न हुआ हो, लेकिन यह जरूर स्पष्ट है कि आने वाले समय में पार्टी का स्वरूप और नेता कौन होगा.

कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह निर्णय पार्टी प्रमुख और यादव परिवार के पुरोधा मुलायम सिंह यादव ने ही लिया है और एक बार फिर उन्होंने पार्टी/परिवार में प्रचलित इस 'नियम' का ही उपयोग किया है कि पार्टी में फिलहाल उनसे ऊपर कोई नहीं है और वे जो कहेंगे, वह सबको मान्य होगा. बुधवार 28 दिसम्बर को लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक बड़े समूह को संबोधित करने के तुरंत बाद उन्होंने पार्टी के 325 प्रत्याशियों की सूची घोषित की.

गौरतलब है कि इस सूची में 176 वर्तमान विधायकों के नाम हैं और बाकी 149 सीटों पर पार्टी के विधायक वर्तमान में नहीं हैं. शेष 78 प्रत्याशियों की घोषणा बाद में की जाएगी. सूची में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नाम नहीं है, लेकिन अखिलेश अभी विधान परिषद के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल 2018 तक है. यदि चुनाव बाद सपा की सरकार बनती है तो अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी और वे बाद में कभी भी कोई उप चुनाव जीत सकते हैं.

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मुलायम की घोषणा अखिलेश द्वारा विधानसभा की सभी 403 सीटों के लिए प्रत्याशियों की सूची सौंपने के दो दिन बाद की गई. इसके पहले प्रदेश पार्टी अध्यक्ष शिवपाल यादव ने 175 प्रत्याशियों की सूची जारी की थी. सभी सीटों पर नाम तय करने से यह तो स्पष्ट हो चुका था कि अब अखिलेश किसी भी तरह के चुनाव-पूर्व गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं और मुलायम भी किसी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावना को नकार चुके हैं, लेकिन 78 नामों की घोषणा न होने से अभी भी उम्मीद लगाई जा रही है कि किसी तरह के समझौते की गुंजाइश शायद अब भी हो.

(पढ़ें : उत्‍तर प्रदेश में गठबंधन की लुका-छिपी का खेल)

सूची पर नजर डालने से स्पष्ट है कि 30 वर्तमान मंत्री और 8 पूर्व मंत्रियों को टिकट मिला है. वहीं तीन मंत्रियों (अरविंद सिंह गोप, पवन पाण्डेय और राम गोविंद चौधरी) को टिकट नहीं मिला है. बाराबंकी जिले के रामनगर से वर्तमान मंत्री अरविंद सिंह गोप के स्थान पर वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है. यह भी स्पष्ट है कि 53 वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं दिया गया है. अखिलेश द्वारा बर्खास्त किए गए जिन मंत्रियों को टिकट मिला है, उनमें ओम प्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा मुख्य हैं.

तमाम चर्चा और विरोध के बावजूद आपराधिक छवि के अतीक अहमद का नाम लिस्ट में है और वे कानपुर कैंटोनमेंट से सपा के प्रत्याशी होंगे. ऐसी ही छवि के सिबगतुल्ला अंसारी (मुख़्तार अंसारी के भाई) को गाजीपुर से प्रत्याशी बनाया गया है. सीतापुर जिले के विधायक रामपाल यादव, जिनकी गैरकानूनी इमारत को अखिलेश सरकार ने ध्वस्त किया था और उन्हें पार्टी से भी बाहर कर दिया था, उन्हें भी टिकट दिया गया है. रामपाल यादव को अभी कुछ दिन पहले ही पार्टी में वापस लिया गया है. लखनऊ से केवल दो नाम घोषित हुए हैं और उनमें एक मुलायम के छोटे बेटे प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव (लखनऊ कैंटोनमेंट) और दूसरा श्वेता सिंह (लखनऊ पूर्व) हैं.

यह भी गौरतलब है कि कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम ने ऐसे संकेत दिए कि चुनाव फरवरी में ही शुरू हो सकते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चार हजार से भी ज्यादा कार्यकर्ताओं ने चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन अंतिम चयन कई सर्वेक्षणों और आतंरिक बैठकों के बाद ही लिया गया. मुलायम का साफ कहना है कि केवल उन्हीं को टिकट दिया गया है, जिनके चुनाव जीतने की संभावना मजबूत है. इससे पहले कि टिकट पाने में असफल रहे लोगों का असंतोष बाहर आए, मुलायम ने स्पष्ट किया कि जिन्हें टिकट नहीं मिला, उनका वे चुनाव के बाद सरकार मिलने पर 'सम्मान' करेंगे.

सूची की घोषणा करते समय मुलायम के साथ अखिलेश नहीं थे, बल्कि झांसी में एक कार्यक्रम में थे. वहां अखिलेश ने कहा है कि वे उन सभी लोगों से मिलेंगे जिनका टिकट कटा है, और देखेंगे कि क्या उनके लिए कुछ किया जा सकता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि अगर बुंदेलखंड के लोग चाहेंगे तो वे इस क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं. इसके पहले यह संकेत मिले थे अखिलेश झांसी के निकट बबीना से चुनाव लड़ सकते हैं.

समाजवादी पार्टी की इस घोषणा के बाद यह तो स्पष्ट है कि मुलायम ने 325 नाम तभी घोषित किए जब उनके पास अखिलेश द्वारा तैयार की गई सूची आ गई थी. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि -
• समाजवादी पार्टी को अभी भी अपराधिक छवि के लोगों को अपना प्रत्याशी बनाने में कोई गुरेज नहीं है
• जिन लोगों के प्रति अखिलेश की नापसंद बिल्कुल स्पष्ट थी, उन्हें सूची में जगह मिली है. इनमें अतीक अहमद, अंसारी और रामपाल यादव प्रमुख हैं.
• जिन मंत्रियों को अखिलेश ने अपने मंत्रिमंडल से निकला था, उनमे अधिकतर को टिकट दिया गया है. इनमें शिवपाल, नारद राय, ओपी सिंह, शादाब फातिमा, अम्बिका चौधरी, महेंद्र अरिदमन सिंह, शिव कुमार बेरिया, योगेश सिंह, राज किशोर सिंह शामिल हैं.
• अखिलेश के करीबियों का या तो टिकट काटा गया है, या उनकी सीटों पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है.

(पढ़ें : सत्ता की सियासत वाया ब्रांड मुलायम बनाम ब्रांड अखिलेश)

इसके बावजूद चुनाव तो अखिलेश को ही चेहरा बनाकर लड़ा जाएगा, इसमें भी संदेह नहीं है. अगर यह अखिलेश यादव के युग के पहले की समाजवादी पार्टी के वर्चस्व का संकेत है, तो ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अखिलेश उन प्रत्याशियों के क्षेत्र मे चुनाव प्रचार करने जाएगे, जिन्हें उन्होंने मंत्री पद से हटाया था या उन्हें टिकट देने का विरोध किया था.

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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