फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मतदान अपने दूसरे चरण में पहुंच चुका है, लेकिन अभी भी कुछ राजनीतिक दलों में चुनावी रणनीति को लेकर असमंजस बरक़रार है. ये दल कोई छोटे या महत्त्वहीन नहीं, बल्कि ऐसे दल हैं जो एक न एक प्रदेशों में सत्ता में हैं.
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बहु-प्रचारित गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश में एक दर्जन स्थानों पर दोनों दलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं और किसी भी पक्ष के प्रत्याशी मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. ये मामले तीसरे और उसके बाद के चरण से संबंधित हैं. भले ही कांग्रेस ने इनमे से चार को अपना नामांकन वापस लेने की सलाह दी है, लेकिन इन चारों ने अभी ऐसे संकेत नहीं दिए हैं कि वे ऐसा करेंगे. इनमे एक प्रत्याशी लखनऊ (मध्य) से मारूफ खान हैं जिनके खिलाफ सपा ने अपने मंत्री रविदास मेहरोत्रा को प्रत्याशी बनाया है.
ऐसे ही मामले में प्रदेश में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति अमेठी में और मनोज पाण्डेय ऊंचाहार (रायबरेली) में अभी मैदान में डटे हुए हैं, जबकि उनके खिलाफ कांग्रेस के प्रत्याशी भी पीछे हटने को तैयार नहीं. अमेठी में मामला ज्यादा विकट है क्योंकि वहां भूतपूर्व मंत्री संजय सिंह की (दूसरी) पत्नी अमिता सिंह प्रजापति के खिलाफ मैदान में हैं. कानपुर और बाराबंकी में भी दोनों दलों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं. इनके चलते ही दोनों दलों के शीर्ष नेताओं का प्रदेश में संयुक्त प्रचार करने का कार्यक्रम गड़बड़ाया हुआ है. यह भी चर्चा में है कि प्रियंका गांधी वाड्रा भी इन्हीं मामलों के चलते उत्तर प्रदेश में कहीं भी प्रचार करने से बच रही हैं.
गठबंधन के इन दो साथियों के आपसी गतिरोध के अलावा जनता दल (यूनाइटेड) भी किसी गठबंधन में न रहते हुए भी अपने असमंजस से बाहर नहीं निकल पा रहा है. बिहार में सत्तारूढ़ जद (यू) के नेता सुरेश निरंजन ने लखनऊ में एक प्रेस वार्ता कर उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान कर डाला, जबकि पिछले महीने ही पटना में हुए एक सम्मेलन में जद (यू) ने किसी को समर्थन देने या किसी गठबंधन में होने से इनकार किया था.
पार्टी के संयोजक डॉ प्रमोद गंगवार ने भी कहा कि पार्टी की उत्तर प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है और नयी कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया चल रही है, और ऐसे में पिछली कार्यकारिणी के किसी सदस्य के बयान को अधिकारिक नहीं माना जाए. इसके समर्थन में पटना से जद (यू) के राष्ट्रीय नेता के.सी. त्यागी ने भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में किसी के साथ न तो गठबंधन में है और न ही किसी को समर्थन दे रही है. कुछ महीनों पहले तक जद (यू) के सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने की खबरें आईं थीं, और इसमें राष्ट्रीय लोक दल के भी शामिल होने की भी संभावना थी, लेकिन यह मुहिम आगे नहीं बढ़ पाई थी.
ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव एक ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना है जिसका हिस्सा हर राजनीतिक दल बनना चाहता हो. यह चर्चा आम है कि पिछले साल तक बिहार के ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में हिस्सा लेने की प्रबल सम्भावना थी, लेकिन इस दल के मुखिया लालू प्रसाद ने ऐसा होने को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया था.
वर्ष 2012 के विधान सभा चुनाव में तो बंगाल की तृणमूल कांग्रेस ने भी कई स्थानों से प्रत्याशी उतारे थे और लखनऊ में बाकायदा एक बड़ा पार्टी कार्यालय भी खोल दिया था. उस चुनाव में इस पार्टी के श्याम सुंदर शर्मा को मथुरा जिले की माठ सीट से जीत भी मिली थी, लेकिन शर्मा पिछले साल बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए और इसी के साथ तृणमूल कांग्रेस का उत्तर प्रदेश कार्यालय भी बंद हो गया था. इस बार यह पार्टी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है.
इसी प्रकार, वाम दल भी इस चुनाव प्रक्रिया में कई जगह से अपना समर्थन तलाश रहे हैं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सीताराम येचुरी ने कुछ दिनों पहले लखनऊ में कहा था कि छह वाम दल (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया, आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक, और रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी) मिल कर एक वाम मोर्चा बना रहे हैं और प्रदेश की 105 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में हर प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक विचारधाराओं की जगह हमेशा रही है. किसी न किसी समय में यहां वाम दलों और अन्य छोटे दलों को भी जन समर्थन मिलता रहा है. इसी के आधार पर आज भी कई दल अपने को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं. इस मोर्चे को कितनी चुनावी सफलता मिलेगी यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन यह तो तय ही है कि करोड़ों मतदाताओं के इस उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में मिले वोटों की संख्या इन दलों के कहीं न कहीं काम जरूर आएगी.
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बहु-प्रचारित गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश में एक दर्जन स्थानों पर दोनों दलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं और किसी भी पक्ष के प्रत्याशी मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. ये मामले तीसरे और उसके बाद के चरण से संबंधित हैं. भले ही कांग्रेस ने इनमे से चार को अपना नामांकन वापस लेने की सलाह दी है, लेकिन इन चारों ने अभी ऐसे संकेत नहीं दिए हैं कि वे ऐसा करेंगे. इनमे एक प्रत्याशी लखनऊ (मध्य) से मारूफ खान हैं जिनके खिलाफ सपा ने अपने मंत्री रविदास मेहरोत्रा को प्रत्याशी बनाया है.
ऐसे ही मामले में प्रदेश में मंत्री रहे गायत्री प्रजापति अमेठी में और मनोज पाण्डेय ऊंचाहार (रायबरेली) में अभी मैदान में डटे हुए हैं, जबकि उनके खिलाफ कांग्रेस के प्रत्याशी भी पीछे हटने को तैयार नहीं. अमेठी में मामला ज्यादा विकट है क्योंकि वहां भूतपूर्व मंत्री संजय सिंह की (दूसरी) पत्नी अमिता सिंह प्रजापति के खिलाफ मैदान में हैं. कानपुर और बाराबंकी में भी दोनों दलों के उम्मीदवार आमने-सामने हैं. इनके चलते ही दोनों दलों के शीर्ष नेताओं का प्रदेश में संयुक्त प्रचार करने का कार्यक्रम गड़बड़ाया हुआ है. यह भी चर्चा में है कि प्रियंका गांधी वाड्रा भी इन्हीं मामलों के चलते उत्तर प्रदेश में कहीं भी प्रचार करने से बच रही हैं.
गठबंधन के इन दो साथियों के आपसी गतिरोध के अलावा जनता दल (यूनाइटेड) भी किसी गठबंधन में न रहते हुए भी अपने असमंजस से बाहर नहीं निकल पा रहा है. बिहार में सत्तारूढ़ जद (यू) के नेता सुरेश निरंजन ने लखनऊ में एक प्रेस वार्ता कर उत्तर प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान कर डाला, जबकि पिछले महीने ही पटना में हुए एक सम्मेलन में जद (यू) ने किसी को समर्थन देने या किसी गठबंधन में होने से इनकार किया था.
पार्टी के संयोजक डॉ प्रमोद गंगवार ने भी कहा कि पार्टी की उत्तर प्रदेश कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है और नयी कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया चल रही है, और ऐसे में पिछली कार्यकारिणी के किसी सदस्य के बयान को अधिकारिक नहीं माना जाए. इसके समर्थन में पटना से जद (यू) के राष्ट्रीय नेता के.सी. त्यागी ने भी स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में किसी के साथ न तो गठबंधन में है और न ही किसी को समर्थन दे रही है. कुछ महीनों पहले तक जद (यू) के सपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने की खबरें आईं थीं, और इसमें राष्ट्रीय लोक दल के भी शामिल होने की भी संभावना थी, लेकिन यह मुहिम आगे नहीं बढ़ पाई थी.
ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव एक ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना है जिसका हिस्सा हर राजनीतिक दल बनना चाहता हो. यह चर्चा आम है कि पिछले साल तक बिहार के ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में हिस्सा लेने की प्रबल सम्भावना थी, लेकिन इस दल के मुखिया लालू प्रसाद ने ऐसा होने को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया था.
वर्ष 2012 के विधान सभा चुनाव में तो बंगाल की तृणमूल कांग्रेस ने भी कई स्थानों से प्रत्याशी उतारे थे और लखनऊ में बाकायदा एक बड़ा पार्टी कार्यालय भी खोल दिया था. उस चुनाव में इस पार्टी के श्याम सुंदर शर्मा को मथुरा जिले की माठ सीट से जीत भी मिली थी, लेकिन शर्मा पिछले साल बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए और इसी के साथ तृणमूल कांग्रेस का उत्तर प्रदेश कार्यालय भी बंद हो गया था. इस बार यह पार्टी चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है.
इसी प्रकार, वाम दल भी इस चुनाव प्रक्रिया में कई जगह से अपना समर्थन तलाश रहे हैं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सीताराम येचुरी ने कुछ दिनों पहले लखनऊ में कहा था कि छह वाम दल (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया, आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक, और रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी) मिल कर एक वाम मोर्चा बना रहे हैं और प्रदेश की 105 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में हर प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक विचारधाराओं की जगह हमेशा रही है. किसी न किसी समय में यहां वाम दलों और अन्य छोटे दलों को भी जन समर्थन मिलता रहा है. इसी के आधार पर आज भी कई दल अपने को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं. इस मोर्चे को कितनी चुनावी सफलता मिलेगी यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन यह तो तय ही है कि करोड़ों मतदाताओं के इस उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में मिले वोटों की संख्या इन दलों के कहीं न कहीं काम जरूर आएगी.
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
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