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This Article is From Nov 30, 2016

मोदी विरोध में ममता को अखिलेश का साथ

Ratan Mani Lal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    November 30, 2016 13:06 IST
    • Published On November 30, 2016 13:06 IST
    • Last Updated On November 30, 2016 13:06 IST
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य में बहुत मजबूती से न केवल सत्ता में हैं, बल्कि उनके सामने अब वहां दूर दूर तक कोई चुनौती नजर नहीं आती. ऐसे में या तो वे अपने प्रदेश के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री ज्योति बसु की तरह पूरा जीवन बंगाल की राजनीति में आराम से बिता सकती हैं या राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर अपनी किस्मत आजमा सकती हैं. जाहिर तौर पर बड़े नोटों के विमुद्रीकरण के निर्णय ने उन्हें एक भव्य मौका दिया है कि वे इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी के विरोध में राष्ट्रव्यापी विपक्ष के आंदोलन की अगुवाई कर सकें और अपने को गैर-भाजपा नेता के तौर पर स्थापित कर सकें.

(पढ़ें- नोटबंदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष, मकसद भी जुदा)

और इसी मौके के पहले कदम के तौर पर उन्होंने लखनऊ में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. कहने को तो यह उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन था, लेकिन शहर में उनकी पार्टी की ओर से लगाए गए पोस्टर और होर्डिंग पर केवल उनकी तस्वीर और एक लाइन छपी थी – 'नोटबंदी वापस लो.' और उनका चित्र भी उनके गंभीर चेहरे और आगे बढ़े हाथ की एक अंगुली को कुछ वैसे ही दर्शा रहा था, जैसा बाबासाहेब आंबेडकर की मूर्तियों में अक्सर देखने को मिल जाता है.

उनके लखनऊ आगमन पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एयरपोर्ट जाकर उनका स्वागत किया और ममता ने भी मातृत्त्व वाले लहजे में उनको आशीर्वाद दिया. बाद में बताया गया कि ममता के विरोध प्रदर्शन में समाजवादी पार्टी साथ रहेगी और अखिलेश भी ममता के साथ मंच साझा करेंगे. विरोध सभा के लिए जो स्थान चुना गया वह लखनऊ शहर के व्यस्ततम चौराहों में एक है. इस चौराहे को महिला हेल्पलाइन (1090) चौराहे के नाम से जाना जाता है, जो कि अखिलेश सरकार की शुरुआती योजनाओं में एक है. यहां पर चारों ओर अखिलेश सरकार की उपलब्धियां गिनाती तमाम होर्डिंग लगीं हैं और एक एलईडी स्क्रीन भी लगी है, जिस पर दिन रात सरकार की उपलब्धियों की फिल्म चलती रहती है. यहां से शहर के दूसरे बड़े हिस्से को जोडने वाले गोमती नदी के ऊपर दो पुल बिलकुल करीब हैं और दिन-रात यहां यातायात का दबाव बना रहता है. थोड़ी देर के लिए भी किसी व्यवधान से यहां मिनटों में वाहनों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है. ऐसे में सभा के लिए मंच बनने और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंध करने में ही भीड़ लगने लगी... और संकेत गया कि कोई बड़ा आयोजन होने वाला है. ऐसा माना जा रहा है कि चूंकि ममता कोलकाता में भी अपनी जनसभाएं आम तौर पर व्यस्त चौराहों पर करती हैं, जहां अच्छी भीड़ एकत्र हो ही जाती है, इसीलिए उन्होंने लखनऊ में भी यही रास्ता अपनाया.

थोड़ी ही देर में सभा स्थल पर अखिलेश समर्थकों की भीड़ जुटने लगी और सपा के झंडों और अखिलेश समर्थक नारों से यह लगने लगा कि यह सपा का ही कार्यक्रम है. समर्थक अखिलेश का इंतजार करने लगे और सभा शुरू होने के निर्धारित समय के एक घंटे बाद यह बताया गया कि वे नहीं आएंगे. उनका प्रतिनिधित्त्व करने उनके एक समर्थक मंत्री अरविंद सिंह गोप और पार्टी के वरिष्ठ नेता किरणमय नंदा मंच पर उपस्थित रहे, लेकिन निराश अखिलेश समर्थकों को शायद ममता को देखने में कोई विशेष रूचि नहीं थी और वे वहां से जाने लगे. जल्द ही ममता आईं और उन्होंने अपने चिर-परिचित बांग्ला अंदाज़ की हिंदी में प्रधानमंत्री मोदी पर तीखा हमला बोला, और यहां तक कहा कि वे तो मोदी का विरोध करती रहेंगी और मोदी में दम हो तो उन्हें गिरफ्तार करें. हालांकि सिर्फ उनके विरोध के कारण उन्हें क्यों गिरफ्तार किया जाएगा, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया.

ममता अपने लखनऊ प्रवास के दौरान सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से नहीं मिलीं, और न ही मुलायम समर्थकों या शिवपाल यादव समर्थकों में से कोई ममता की सभा में पहुंचा. वैसे भी 2012 के राष्ट्रपति चुनाव के घटनाक्रम के बाद मुलायम और ममता के बीच राजनीतिक रिश्ते बहुत सहज नहीं रह गए हैं. लेकिन अखिलेश का न केवल ममता से एयरपोर्ट जाकर मिलना और उनके समर्थकों का ममता की रैली में हिस्सा लेना यह तो दिखा ही गया कि इस मामले में अखिलेश की राय अपने पिता से अलग है.

ममता के साथ दिखकर अखिलेश ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि वे नोटबंदी के विरोध में खड़े हैं, हालांकि उन्होंने इस निर्णय को वापस लेने की मांग कभी नहीं की, जबकि ममता पहले दिन से यही मांग करती रहीं हैं. ममता के साथ दिखकर अखिलेश ने बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को भी अकेला करने की कोशिश की है, क्योंकि अभी तक नोटबंदी के मुद्दे पर मायावती के साथ विपक्ष का कोई भी नेता खड़ा नज़र नहीं आया है. लेकिन इसी के साथ ममता के साथ मंच साझा न करके अखिलेश ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्हें किसी और का नेतृत्त्व मंजूर नहीं.

(पढ़ें-  नोटबंदी से निकल रहे नए राजनीतिक संकेत)

दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा उत्तर प्रदेश में राजनीतिक विचरण करने में ममता का दूसरा नंबर है. पहले नंबर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, जो पिछले कई महीनों में संपूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश में कई सभाएं कर चुके हैं. उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने सपा के साथ गठबंधन की कई बार कोशिश की, लेकिन ऐसा हो न पाया.

वास्तव में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी विरोध में राष्ट्रीय स्तर पर कौन नेता उभरेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. अगर कांग्रेस को छोड़ दें, तो इस स्थान के लिए नीतीश कुमार उतने ही मजबूत दावेदार हो सकते हैं जितनी ममता बनर्जी. लेकिन चूंकि नीतीश विमुद्रीकरण के मुद्दे पर मोदी के साथ हैं, ऐसे में ममता के लिए यह बड़ा मौका है और फिर अखिलेश का साथ भी मिल गया तो कहना ही क्या...

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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