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  • कमला दास यदि जीवित होतीं तो वे आज 90 साल की हो जातीं, लेकिन क्या उनकी अब भी सच्चा प्यार पाने की कामनाएं खत्म हो पातीं? उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मेरी कहानी' (मूल रचना My Story का हिंदी अनुवाद) पूरी ईमानदारी के साथ लिखी. यह एक ऐसी किताब है जिसे पढ़ते हुए मनोविज्ञान से जुड़े, इच्छाओं के अनंत आकाश में ले जाने वाले कई सवाल उठते हैं. क्या मानव की कामनाओं...वासनाओं.. का कभी अंत होता है? कमला दास ताजिंदगी ऐसे बियाबान में भटकती रहीं जहां उन्हें कभी अपने जीवन से संतोष हासिल नहीं हो सका.
  • मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच जोरदार मुकाबला था और परिणाम भी उसी अनुरूप आए थे. मध्य प्रदेश के मौजूदा चुनाव के नतीजे आने से पहले आए एग्जिट पोल के नतीजे संकेत यही दे रहे हैं कि राज्य में 2018 का इतिहास दोहराए जाने की संभावना है. दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ चुनाव के एग्जिट पोलों के अनुमान राज्य में बीजेपी की सीटें बढ़ने लेकिन इसके बावजूद उसके कांग्रेस की बराबरी न कर पाने का इशारा करने वाले हैं. 
  • आम तौर पर शास्त्रीय संगीत सभाओं में इस परंपरा में रुचि रखने वाले या फिर वे रसिक, जो इसके अलौकिक आनंद में गोता लगाना जानते हैं, ही पहुंचते हैं. लेकिन पंडित जसराज की सभाओं में श्रोताओं का समूह इससे कुछ जुदा होता था. उनकी सभाओं में शुद्ध शास्त्रीय संगीतों के रसिकों के अलावा वे आम श्रोता भी होते थे जो भारतीय भक्ति परंपरा में विश्वास रखते थे. इसका कारण था मेवाती घराने की वह सुर धारा जिसका कहीं अधिक उन्नत स्वरूप पंडित जसराज के गायन में देखने को मिलता है. पंडित जी ने अपने गायन में उस वैष्णव भक्ति परंपरा को चुना जो भारतीय संस्कृति का मजबूत आधार रही है. दैवीय आख्यान मेवाती घराने की विशेषता रही है. यह वह परंपरा है जिसका विकास मंदिरों में गायन से हुआ है. यह 'टेंपल म्युजिक' है. यह संगीत का वही स्वरूप है जो निराकार को साकर करता है, जो निराकार को सुरों में संजोकर आकार देता है. जो मानव को चिरंतन में लीन होने की दिशा में ले जाता है. पंडित जसराज की बंदिशें देवों को समर्पित हैं. वे देव जो भारतीय संस्कृति का अमिट हिस्सा हैं. पंडित जी के सुरों के साथ शब्द ब्रह्म आम लोगों के मन की थाह तक पहुंचते रहे.
  • हरियाणा में विधानसभा चुनाव के सभी परिणाम घोषित हो चुके हैं. यहां 90 में से 40 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई है. हालांकि इसके बावजूद बहुमत के आंकड़े (46) से पीछे है. दूसरी तरफ बीजेपी के मुख्य प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस ने 31 सीटें जीतकर राज्य में अपनी स्थिति को सुधारा है. इन दोनों मजबूत दलों से हटकर दुष्यंत चौटाला की नई पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने दस सीटें हासिल करके आश्चर्यचकित कर दिया है.
  • प्रख्यात संगीतकार मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी यानी कि खय्याम हिन्दी सिनेमा को कभी न भुलाए जाने वाले संगीत का तोहफा देकर दुनिया से रुखसत हो गए. उनका संगीत सुकून देने वाला, तरंगित करने वाला और शांति का अलौकिक अहसास कराने वाला है. यह वह संगीत है जो आपके सिरहाने बैठकर आपको मधुरता की थपकियां देकर दूर कहीं ऐसी जगह ले जाता है जहां तनाव लुप्त हो जाता है. ऐसा संगीत जो नीरवता के अंतरालों के साथ अपने अलग अर्थ प्रकट करता, अलग आस्वाद देता है. खय्याम फिल्म अभिनेता बनना चाहते थे. अच्छा हुआ बाद में उन्होंने यह इरादा छोड़ दिया अन्यथा भारतीय सिनेमा जगत और संगीत प्रेमी उनकी बेजोड़ रचनाओं से महरूम रहते.
  • वेलेंटाइन डे पर भोर आंखें खोल ही रही थी कि रिमझिम फुहारों ने दिल्ली पर प्यार बरसाना शुरू कर दिया, वंसत ऋतु में प्यार के मौसम की दस्तक.
  • महात्मा गांधी का देहावसान होने पर अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जनरल सी मार्शल ने कहा था - 'महात्मा गांधी आज सारी मानवता के प्रतिनिधि बन गए हैं. यह वह व्यक्तित्व है जिसने सत्य और विनम्रता को साम्राज्यों से भी ज्यादा शक्तिशाली बनाया.'
  • आम तौर पर गायक एक क्षेत्र विशेष चुनता है जैसे शास्त्रीय, सुगम संगीत या लोक संगीत और उसमें भी ध्रुपद, खयाल, ठुमरी, गजल, भजन वगैरह या फिर कोई खास लोक गायन शैली...लेकिन गिरिजा देवी की गायकी इन सीमाओं में कभी नहीं बंधी. वे शुद्ध शास्त्रीय संगीत में निष्णात थीं तो सुगम संगीत में भी उन्हें महारत था. इतना ही नहीं, वे लोक संगीत को तो खास पहचान देने वाली गायिका थीं. हिंदुस्तानी संगीत के विशाल आकाश पर उनके स्वर हर जगह दमकते रहे. यही कारण है कि वे आम कलाकारों से कहीं ऊपर प्रतिष्ठित थीं.
  • क्या अभागे रोहिंग्या मुसलमानों को कोई ऐसा टापू मिल पाएगा जहां बाढ़ न आती हो, जहां वे इंसानों की तरह जी सकें, जहां फिर कोई उनके घर न जला सके, हैलिकॉप्टरों से हमले करके उनका संहार न कर सके, जहां उनको उनके जीने के अधिकार से वंचित न किया जा सकता हो, जहां उनकी अपनी पहचान हो, अपनी जमीन हो और भविष्य भी हो?
  • अनिल माधव दवे एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा समाजसेवी थे. उनका जन्म स्थान उज्जैन शिप्रा के तट पर स्थित है लेकिन उनकी अगाध श्रद्धा नर्मदा नदी में थी. उनमें नर्मदा और इसकी नदी सभ्यता को जानने-समझने की उत्कट आकांक्षा थी. वे प्रकृति के प्रति अनन्य अनुराग से भरे हुए थे.
  • दिल्ली का हिन्दी साहित्य जगत और राजधानी के विश्वविद्यालयों का हिन्दी शिक्षण जगत बीती सदी के उत्तरार्ध्द में कैसे बदलता गया, साहित्य जगत में किस तरह की राजनीति चलती रही और इसके समानांतर किस तरह रचनाकर्म, शोध जैसे कार्य होते रहे...यह सब गहराई से समझने के लिए निर्मला जैन की कृति 'जमाने में हम' बड़ी उपयोगी है. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह कृति निर्मला जैन की आत्मकथा है.
  • ओम पुरी अब दुनिया में नहीं हैं. फिल्म उद्योग में सैकड़ों कलाकार आते-जाते रहते हैं, कुछ लोकप्रियता पाते हैं...बहुत सारे समय के साथ भुला दिए जाते हैं. सवाल यह है कि ओम पुरी में उन सैकड़ों कलाकारों से अलग क्या था और उन्हें क्यों याद किया जाता रहेगा... ओम पुरी एक बेहतरीन अभिनेता तो थे ही साथ में एक आम इनसान का चेहरा भी थे, वह चेहरा जो आपको अपने आसपास हमेशा नजर आ जाता है.
  • भारत से विदेशों में जाकर बसने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके परिणाम स्वरूप पारिवारिक विघटन भी बढ़ रहा है. विदेशों में स्थाई रूप से जा बसे लोगों के मां-बाप एकाकी जीवन जीने और बुढ़ापे की परेशानियों को झेलने के लिए मजबूर होते हैं. उन्हें अंतिम समय में कोई अपना पानी देने वाला भी नहीं होता. इस त्रासदी पर केंद्रित नाटक ‘टुकड़े-टुकड़े धूप’ का मंचन भरतमुनि रंग उत्सव के तहत बुधवार को दिल्ली के श्रीराम सेंटर में किया गया.
  • जब युद्ध के खिलाफ जनभावनाएं अलग-अलग माध्यमों में व्यक्त हो रही हैं तब यह विचार रंगमंच पर भी अवतरित हुआ. दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल ने युद्ध की विभीषिका पर केंद्रित नाटक 'गजब तेरी अदा' का प्रदर्शन किया. 'गजब तेरी अदा' में 'अदा' क्या है? 'अदा' वास्तव में उस स्त्री समाज की है जो हमेशा से युद्ध के कुप्रभावों को सबसे अधिक सहने के लिए अभिशप्त रही है.
  • कभी आपने अंदाजा लगाया है कि आम लोग सबसे अधिक गाने किस गायक के गुनगुनाते हैं. जरा ध्यान देकर देखें...हिन्दी फिल्मी संगीत के प्रेमियों में अधिक दीवाने मोहम्मद रफी के ही मिलेंगे. मन में बसकर जुबान पर चढ़ने वाली धुनें वही होती हैं जिनका कम्पोजीशन उम्दा होता है और गायक जिन्हें ऐसा गाता है कि सुनने वाले के दिल में उतर जाए. वास्तव में मोहम्मद रफी दिल से गाते थे.
  • आज यदि यदि राहुलदेव बर्मन जिंदा होते तो 77 साल के हो गए होते। उन्हें दुनिया से विदा हुए 22 साल से अधिक वक्त बीत गया लेकिन उनका संगीत फिल्म संगीत के रसिकों की रगों में आज भी तरंगित हो रहा है। उनकी धुनें विस्मृत नहीं की जा सकतीं। सवाल यह है कि किसी संगीत सर्जक को बरसों बरस याद क्यों किया जाता रहता है?
  • सीबीएसई ने एक ताजा फैसले में अंग्रेजी की महत्ता और बढ़ा दी है। संस्थाएं बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षित करके उन्हें 'ग्लोबल' बनाएं, लेकिन अपनी भाषाई जड़ों से उखाड़कर ऐसा करना क्या ठीक है? हिन्दी को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। यह हिन्दी को प्रसारित करने के लिए नहीं बल्कि इसे जिंदा रखने के लिए जरूरी है।
  • मृणाल पाण्डे ने 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' के जरिये संगीत साधक महिलाओं के बहाने समाज के दोमुंहेपन को उजागर किया है। यह तार सप्तक पर जमे गायकों के समानांतर मंद्र सप्तक पर धकेल दी गईं गायिकाओं के संघर्ष का ऐसा दस्तावेज है जो कलाकारों, कला रसिकों के साथ-साथ आम पाठक के लिए भी बहुत उपयोगी है।
  • आदेश तुम जबलपुर से मुंबई गए...वहां तुमने अपनी स्वरों की दुनिया बसाई...तुम्हें वहां वह सब मिला, जो तुमने चाहा...लेकिन यह क्या, अब दुनिया से ही विदा हो गए।
  • टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी कि मुलायम ने कांग्रेस पार्टी को अल्टीमेटम दे दिया है। कह दिया है कि अगर वह हंगामा करती रही तो उसका साथ नहीं देंगे। सरकारी सूत्रों के हवाले से इस खबर को खूब जगह मिली। आखिरकार मुलायम और सरकार ने कैसे मामले को अपने पाले में मोड़ने की कोशिश की?
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