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This Article is From Oct 10, 2016

युद्ध के विरुद्ध एक गजब की अदा ऐसी भी...

Suryakant Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 10, 2016 17:25 pm IST
    • Published On अक्टूबर 10, 2016 15:56 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 10, 2016 17:25 pm IST
युद्ध से कभी दुनिया का भला नहीं हुआ. युद्ध हमेशा नुकसान ही पहुंचाते रहे हैं. भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के दौर में जब युद्ध उन्माद जोर मार रहा है तब युद्ध के विरुद्ध विचार भी मुखर हो रहे हैं. जब युद्ध के खिलाफ जनभावनाएं अलग-अलग माध्यमों में व्यक्त हो रही हैं तब यह विचार रंगमंच पर भी अवतरित हुआ. दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल ने युद्ध की विभीषिका पर केंद्रित नाटक 'गजब तेरी अदा' का प्रदर्शन किया.     

वैसे तो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल की नाट्य प्रस्तुति 'गजब तेरी अदा' नई नहीं है, इसके प्रदर्शन वर्ष 2014 से हो रहे हैं, लेकिन मौजूदा दौर में इसकी प्रस्तुति अधिक सामयिक है. 'ररिस्टोफेनिस' के नाटक 'लिसिस्त्राता' से प्रेरित हिन्दी नाटक 'गजब तेरी अदा'  का प्रोडक्शन प्रथम विश्व युद्ध के सौ वर्ष पूरे होने पर किया गया था. नाटक के निर्देशक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक वामन केंद्रे हैं. केंद्रे ने ही इस नाटक की स्क्रिप्ट लिखी है और इसमें संगीत भी दिया है.

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के 'सम्मुख' सभागार में पिछले तीन दिनों में इस नाटक की पांच प्रस्तुतियां हुईं. इस नाटक के माध्यम से 1914 से लेकर 2014 के बीच दुनिया में चले युद्धों की विभीषिका और उससे आक्रांत समाज की पीड़ा दिखाई गई.
 

सवाल यह है कि इस नाटक के नाम से जैसा कि जाहिर है 'गजब तेरी अदा' में 'अदा' क्या है? 'अदा' वास्तव में उस स्त्री समाज की है जो हमेशा से युद्ध के कुप्रभावों को सबसे अधिक सहने के लिए अभिशप्त रही है. औरत चाहे ईराक की हो या जापान की, अफगानिस्तान की हो या फिर सीरिया की, युद्ध में उसे ही सबसे अधिक खोना और सहना पड़ता है. शासकों का युद्ध उन्माद और उनकी राज विस्तार की लिप्सा के कारण त्रासदी झेलता शांतिप्रिय आम समाज, यह किसी एक देश की कहानी नहीं है. नाटक में इसी युद्ध उन्माद में डूबे शासक वर्ग को निशाना बनाया गया है.


नाटक में कलाकारों की एक मंडली राजा को युद्ध के खिलाफ सचेत करती है लेकिन राजा उस पर ध्यान नहीं देता. स्त्रियां अपनी 'अदा' से युद्ध का विरोध करती हैं. युद्ध बंदी महिलाओं की पीड़ा देखकर द्रवित हुईं योद्धाओं की पत्नियां एकजुट होकर युद्ध के विरुद्ध बिगुल बजा देती हैं. वे तय करती हैं कि वे अपने-अपने पतियों को युद्ध में नहीं जाने देंगी. युद्ध के खिलाफ वे पतियों से शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर देती हैं. वे कहती हैं कि जब तक युद्ध बंद नहीं होते वे उन्हें शरीर को हाथ नहीं लगाने देंगी. उनकी इस 'अदा' का निशाना सिपाही ही नहीं राजा खुद बन जाता है. आखिरकार स्त्रियों के आगे सेना सहित राजा को भी हथियार डालने पड़ते हैं. और फिर सौ लड़ाइयां जीत चुका राजा अगले युद्ध से इनकार कर देता है.
          
नाटक में युद्ध ही नहीं महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव, अत्याचार और उनके खिलाफ की जाने वाली हिंसा पर भी व्यंग्य किया गया है. औरतें अहसास कराती हैं कि युद्ध के कारण परिवार और समाज टूटता है और इस तरह देश भी नुकसान उठाता है.
 

नाटक में घटनाक्रम और स्थान काल्पनिक हैं. नाटक संगीत प्रधान है और संगीत प्रभावी भी है. युक्तिसंगत नृत्य संरचनाएं (कोरियोग्राफी) नाटक को एक लय में ले जाती हैं और एक घंटे 40 मिनिट तक दर्शकों को बांधे रखती हैं. नाटक में संवाद अच्छे हैं लेकिन कहीं-कहीं पात्र चीखते हुए लगते हैं. यह शायद प्रतिक्रियाओं की धार तेज दिखाने के लिए किया गया. नाटक में पात्रों की वेशभूषा जरूरत के मुताबिक युक्तिपूर्ण है. नाटक के सेट पर सिर्फ एक छोटे बहुस्तरीय प्लेटफार्म का उपयोग किया गया.         

नाटक में कोरियोग्राफी अनिल सुतार की और वेशभूषा संध्या सालवे की है. प्रकाश प्रभाव सुरेश भारद्वाज ने डिजाइन किए. सेट नावेद इनामदार ने डिजाइन किया है.

सूर्यकांत पाठक Khabar.ndtv.com के समाचार संपादक हैं.

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