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This Article is From Mar 31, 2024

सच्चे प्यार की चाह और अधूरी कामनाओं के बियाबान में भटकती रहीं सबसे 'बोल्ड' लेखिका कमला दास

Suryakant Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 04, 2024 13:13 pm IST
    • Published On मार्च 31, 2024 20:27 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 04, 2024 13:13 pm IST

कमला दास यदि जीवित होतीं तो वे आज 90 साल की हो जातीं, लेकिन क्या उनकी अब भी सच्चा प्यार पाने की कामनाएं खत्म हो पातीं? उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मेरी कहानी' (मूल रचना My Story का हिंदी अनुवाद) पूरी ईमानदारी के साथ लिखी. यह एक ऐसी किताब है जिसे पढ़ते हुए मनोविज्ञान से जुड़े, इच्छाओं के अनंत आकाश में ले जाने वाले कई सवाल उठते हैं. क्या मानव की कामनाओं...वासनाओं.. का कभी अंत होता है? कमला दास ताजिंदगी ऐसे बियाबान में भटकती रहीं जहां उन्हें कभी अपने जीवन से संतोष हासिल नहीं हो सका. 

केरल में 31 मार्च 1934 को जन्मीं कमला दास अपने गांव से लेकर कोलकाता, मुंबई, दिल्ली जैसे तमाम महानगरों में अलग-अलग तरह के माहौल में रहते हुए बड़ी हुईं. उनका बचपन भारत की परतंत्रता के उस दौर में बीता जब भारतीय समाज अंग्रेजों के रहन-सहन का अनुसरण करता था. उनकी स्कूली शिक्षा जहां अंग्रेजों के स्कूल में हुई वहीं आगे चलकर उनके दोस्तों में भी कई विदेशी शामिल रहे. वे मलयालम के साथ-साथ अंग्रेजी में लिखती रहीं. वे शुरू में माधवी कुट्टी के नाम से मलयालम में लिखती थीं. जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्होंने धर्म बदल लिया था और फिर अपना नाम कमला सुरय्या रख लिया था.    

उनकी शादी हुई, तीन बच्चे हुए..लेकिन परिवार से उन्हें कभी खुशी हासिल नहीं हो सकी. वे अपने पति के बारे में लिखती हैं कि वह उनकी पसंद नहीं थे और वे उन्हें कभी प्यार नहीं कर सकीं. कमला दास के शादी से इतर अलग-अलग शहरों में कई पुरुषों से अंतरंग संबंध बने लेकिन इन सभी का अंत असंतुष्टि के साथ हुआ. स्कूल और होस्टल में रहते हुए समलैंगिक रिश्तों (जिनके प्रति उनमें आकर्षण नहीं था) से जुड़े अनुभवों का जिक्र भी उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है. 

अपनी आत्मकथा में कमला दास ने कई बार कहा कि उन्हें यौन संबंधों क जरिए संतुष्टि की चाह नहीं थी, वे तो उस प्यार को पाना चाहती थीं, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी. सवाल है कि प्यार का क्या कोई खाका होता है, कोई सीमा होती है? किसको किस से कब और क्यों प्यार हो जाए, इसका कोई फार्मूला तो होता नहीं.. वास्तव में कमला दास चाहती क्या थीं? यह आत्मकथा एक ऐसी संवेदनशील रचनाधर्मी भारतीय स्त्री की है जो शायद खुद नहीं जानती थी कि उसकी आखिर आकांक्षा क्या है?  

कमला दास ने अपनी आत्मकथा इतनी ईमानदारी के साथ लिखी है, जिसकी कल्पना करना मुश्किल है. वे अपने विवाहेत्तर यौन संबंधों के बारे में बिना लाग-लपेट के खुलासा करती चली गई हैं. अपने परिवार, जीवन में मिले लोगों, उनसे मिले अनुभवों के बारे में साफ-साफ लिखती चली गई हैं. अभिव्यक्ति में सामाजिक आदर्शों की सीमाओं और रूढ़ियों को तोड़ने वालीं कमला दास की ईमानदारी ही वह कारण है कि उनकी यह आत्मकथा दुनिया भर में पढ़ी जा रही है. 

कमला दास ने ऐसे समय में बेबाक लेखन शुरू किया था जब भारतीय समाज कहीं अधिक रूढ़िवादी था. उनकी बेबाकी और खुलापन उनकी कविताओं में पहले अभिव्यक्त हुआ बाद में जब वे गंभीर बीमार हुईं तो उन्होंने अपने जीवन की समूची कहानी अपनी आत्मकथा 'मेरी कहानी' में कह दी. हालांकि बीमारी से उबरने के बाद उन्हें अपनी आत्मकथा को लेकर अपने परिवार और रिश्तेदारों के प्रबल विरोध का सामना भी करना पड़ा. कमला दास का 31 मई 2009 को पुणे में निधन हो गया. कमला दास का लेखन भरे ही विवादों से घिरा रहा लेकिन उन्होंने अटूट साहस के साथ अभिव्यक्ति के गंभीर खतरे उठाए.

सूर्यकांत पाठक ndtv.in के डिप्टी एडिटर हैं.


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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