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This Article is From Sep 05, 2015

सूर्यकांत का ब्लॉग : तुम्हारी सरगम बहुत जल्द ख़ामोश हो गई आदेश..

Suryakant Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 05, 2015 17:58 pm IST
    • Published On सितंबर 05, 2015 17:45 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 05, 2015 17:58 pm IST
शुक्रवार की रात आधी से कुछ अधिक बीती और खबर मिली कि कई दिनों से मौत से संघर्ष कर रहे संगीतकार आदेश श्रीवास्तव को आखिरकार जिंदगी ने अलविदा कह ही दिया। कितना अजीब है कि 4 सितंबर को आदेश का जन्मदिन था और इसी दिन वह चल बसे।

खबर मिलते ही आदेश का 35 साल पहले का वह चेहरा सामने आ गया,  जो जबलपुर के पॉलिडोर ऑर्केस्ट्रा के शो में नजर आता था। संगीत साधना की असीम ऊर्जा से भरे आदेश श्रीवास्तव ने 80 के दशक में मंच पर अपने हुनर से श्रोताओं को रूबरू कराना शुरू कर दिया था। वह जैज़ और अन्य रिदमिक वाद्य बजाते थे। दर्शक उनको संगीत की तरंग में लय के साथ ताल में डूबा हुआ पाते थे। उनके भाई चित्रेश श्रीवास्तव भी इस बैंड का हिस्सा थे।

80 और 90 के दशक में आदेश पॉलिडोर के अलावा जबलपुर शहर के एक अन्य बैंड विशाल ऑर्केस्ट्रा में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे। समय के साथ जबलपुर के यह वाद्य वृंद (ऑर्केस्ट्रा) बंद होते गए और आदेश श्रीवास्तव ने भी मध्यप्रदेश के इस शहर से बॉलीवुड की ओर रुख कर लिया।

लंबे अरसे के बाद नौ साल पहले 2006 में आदेश श्रीवास्तव से जबलपुर में ही मुलाकात हुई। वह अपने शहर में उनके स्कूल गवर्नमेंट मॉडल स्कूल के वार्षिक सम्मेलन में आए थे। मैंने उनके साथ जब जबलपुर और ऑर्केस्ट्रा के दिनों की यादें ताजा कीं  तो उन्होंने कहा कि यदि तब मुंबई न जाता तो कभी न जा पाता। आपको यह बताता चलूं कि आदेश श्रीवास्तव एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे और उनके पिता रेलवे में सेवारत थे।

ऐसे करीब सभी परिवारों में संतान से यही अपेक्षा की जाती है कि वह जल्द पढ़ लिखकर किसी नौकरी पर लगकर आत्मनिर्भर हो जाए। आदेश इससे जुदा ऐसी राह पर थे जिससे वह आत्मसंतोष तो पा सकते थे लेकिन ऑर्केस्ट्रा से गुजारा चलाना नामुमकिन था। आज भी छोटे शहरों में छुटपुट संचालित किए जा रहे बैंड अमेच्योर ही हैं।

आदेश ने बताया था कि रास्ता तो कोई भी नहीं था। जबलपुर न छोड़ता तो क्या करता? पहले कई दिन तक संगीत में भविष्य को लेकर उहापोह में फंसा रहा और फिर तय किया कि अब मुंबई जाकर संघर्ष करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। मुंबई पहुंचा, वहां लंबे समय तक काम की तलाश में भटका। छोटे-छोटे मौके मिलते रहे और फिर 1994 में  आखिरकार फिल्म 'आओ प्यार करें' में बतौर संगीत निर्देशक अवसर मिल ही गया।

आदेश श्रीवास्तव ने जानीमानी गायिका, अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित और संगीत निर्देशक जतिन-ललित की बहन विजेयता पंडित से शादी की। विजेयता ने सन 1980 में  फिल्म 'लव स्टोरी' से बतौर अभिनेत्री फिल्मी दुनिया में कदम रखा था। इसके बाद वह कुछ फिल्मों में और आईं। 'आओ प्यार करें' के बाद आदेश श्रीवास्तव ने लगातार कई फिल्मों में संगीत दिया।

सौ से अधिक फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया जो कि काफी लोकप्रिय हुआ। इनमें 'चलते-चलते', 'बागवान', 'बाबुल', 'रिफ्यूजी', 'कभी खुशी कभी ग़म' और 'राजनीति' जैसी कई फिल्मों का समधुर संगीत लोगों को लंबे समय तक याद रहेगा।

आदेश श्रीवास्तव ने बॉलीवुड की संगीत की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। 90 के दशक के बाद फिल्म संगीत में एक खास बदलाव दिखाई देने लगा जिसमें गायक वाद्य संगीत के पीछे जाता दिखाई देता है। लेकिन आदेश ने गायक को हमेशा लीड दी। फिल्म की मांग के मुताबिक तड़क-भड़क होने के बावजूद उनके संगीत में मधुरता है।

आदेश तुम जबलपुर से मुंबई गए...वहां तुमने अपनी स्वरों की दुनिया बसाई...तुम्हें वहां वह सब मिला, जो तुमने चाहा...लेकिन यह क्या, अब दुनिया से ही विदा हो गए। अभी तुमसे बहुत उम्मीद थी...तुम्हारे संगीत की अभी और जरूरत थी। अलविदा आदेश श्रीवास्तव..तुम अपने संगीत के साथ हमेशा जिंदा रहोगे।

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