विज्ञापन
This Article is From Dec 25, 2015

किताब मिली - 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री', गायिकाओं का अव्यक्त संघर्ष

Suryakant Pathak
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 25, 2015 23:28 pm IST
    • Published On दिसंबर 25, 2015 18:56 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 25, 2015 23:28 pm IST
भारतीय समाज में घर-गृहस्थी को संभालने वाली महिलाएं ही नहीं अपनी प्रतिभा के बलबूते ऊंचे मुकाम हासिल कर सकने वाली स्त्रियां भी समाज के दोयम दर्जे के व्यवहार की शिकार होती रही हैं। खास तौर पर उत्तर भारत के रूढ़ीवादी समाज ने अनेक महिला प्रतिभाओं को वह प्रतिष्ठा नहीं दी जिनकी वे वास्तव में हकदार थीं। पिछली करीब दो शताब्दी में उत्तर भारत के संगीत जगत में महिला प्रतिभाओं के जीवन और संघर्ष के अनछुए पहलुओं का स्वर प्रख्यात लेखिका और पत्रकार मृणाल पाण्डे की अद्यतन कृति 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' में मुखर हुआ है।

गौहर जान से रेशमा तक
पिछले कुछ अरसे में प्रकाशित अपने तरह की यह दूसरी पुस्तक है। इससे पहले मुंबई की पत्रकार एवं लेखिका नमिता देवीदयाल की अंग्रेजी कृति 'दि म्युजिक रूम' और इसका हिन्दी अनुवाद 'संगीत कक्ष' प्रकाशित हुआ था। इसमें भी तीन मेधावी गायिकाओं के संघर्ष का ब्यौरा है। मृणाल पाण्डे ने इससे काफी आगे बढ़कर उत्तर भारत की लगभग सभी प्रमुख गायिकाओं को अपनी कृति में शामिल किया है। इसमें वे स्त्रियां तो हैं ही जिन्होंने काफी नाम कमाया, वे भी हैं जिन्होंने कला सृजन के लिए जीवन समर्पित कर दिया लेकिन बदले में जिन्हें समाज की अवहेलना के अलावा कुछ नहीं मिला। इस पुस्तक में गौहर जान, बेगम अख्तर, मोघूबाई, गंगूबाई हंगल, रसूलनबाई, हीराबाई बढोकर, केसरबाई केरकर से लेकर रेशमा और पारसी थिएटर की अभिनेत्रियों के अलावा अनेक ऐसी कलाकारों की कहानी है जिन्होंने शोहरत से दूर संगीत की आराधना में ही जीवन गुजार दिया।

समाज का दोहरा चरित्र
मृणाल पाण्डे के शब्दों में ''असाधारण प्रतिभा, मेहनत, खुद्दारी और प्रशंसा के साथ राज-समाज के दोंमुंहे बर्ताव से उपजी खिन्नता और कड़वाहट को मिलाकर ही हमारी पिछली दो सदियों की उत्तर भारतीय महिला गायिकाओं की जीवन-गाथा और प्रतिभा की शक्ल बनी है।" संगीत की शिक्षा हासिल कर चुकीं मृणाल जी ने इस पुस्तक में अपनी गुरु जया गुप्ता का भी स्मरण किया है। उन्होंने इस कृति में कला साधिकाओं के संघर्ष की दास्तानें, उनसे जुड़े विभिन्न दृष्टांतों के साथ सुनाई हैं। इसमें इन महिला कलाकारों को लेकर समाज का दोहरा चरित्र स्वत: साफ हो जाता है। अकल्पनीय प्रतिकूल परिस्थितियों में तवायफों, घरानेदार कलाकारों से लेकर महफिलों में सुर सजाने वाली इन गायिकाओं का नेपथ्य में अव्यक्त रुदन इस रचना में महसूस किया जा सकता है। वास्तव में वे परिस्थितियों के आगे झुकीं नहीं, संघर्ष करती रहीं, सिर्फ अपनी कला साधना के एकांत के लिए। दूसरी तरफ पुरुष गायकों के साथ ऐसा कम ही हुआ। उन्हें समाज सिर-आंखों पर बिठाता रहा। गायकों प्रतिष्ठा भरपूर मिली लेकिन गायिकाओं को कभी इस लायक समझा ही नहीं गया।

समाज बदला, सोच नहीं बदली
करीब दो सदियों में समाज बदलता गया, सामाजिक संरचना बदलती गई, संगीत और माध्यम भी बदलते गए लेकिन महिलाओं के प्रति समाज का विचार अपनी जगह स्थिर बना रहा। बड़े गुलाम अली से लेकर भीमसेन जोशी और पंडित जसराज तक जो मुकाम इन दिग्गज उस्तादों ने हासिल किया उस मुकाम पर क्या कोई गायिका है...जिसको इनके समतुल्य सामाजिक प्रतिष्ठा मिली हो? मृणाल को पढ़ते हुए यह प्रश्न पैदा तो होता है, लेकिन साथ ही इसके सिलसिलेवार उत्तर भी मिल जाते हैं। यह भी साफ हो जाता है कि प्रतिष्ठा तो दूर, साधना के लिए भी संघर्ष क्या होता है?  पुरुष समाज स्त्रियों को कोठे पर पसंद करता है, वहां उनकी नजर कला पारखी की हो जाती है लेकिन वही स्त्री कलाकार जब घर-परिवार में होती है तो उसकी कला साधना नागवार गुजरती है।

वास्तव में मृणाल पाण्डे ने 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' के जरिये संगीत साधक महिलाओं के बहाने समाज के दोमुंहेपन को उजागर किया है। यह कृति अपनी तरह की अप्रतिम रचना है जो उत्तर भारतीय संगीत में महिलाओं की स्थिति पर गहरी नजर डालती है। यह तार सप्तक पर जमे गायकों के समानांतर मंद्र सप्तक पर धकेल दी गईं गायिकाओं के संघर्ष का ऐसा दस्तावेज है जो कलाकारों, कला रसिकों, इतिहासकारों, शोधार्थियों के साथ-साथ आम पाठक के लिए भी बहुत उपयोगी है। 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री' राधाकृष्ण प्रकाशन ने प्रकाशित की है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
किताब मिली - 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री', गायिकाओं का अव्यक्त संघर्ष
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com