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    सबके हिस्से के अपने "कमाल" सर...

    कमाल सर की कहानियां में जो सब्र था वो उनकी शख्सियत में भी था. बात में भी कभी हड़बड़ी नहीं आराम से जो पूछा, जैसी मदद मांगी उन्होंने कभी मना नहीं किया. कई बार उनके साथ लाइव करने पर उनको सुनना लंबा लगा लेकिन बोझिल नहीं हर एक शब्द उनकी समझ, लगन, अध्ययन में पिरोया हुआ.  

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    गुना में पुलिस के डंडे बजते रहे और कई सवाल पीछे छूट गए ...

    कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश में साहूकारी संशोधन विधेयक एवं अनुसूचित जनजाति ऋण मुक्ति विधेयक 2020 को कैबिनेट की स्वीकृति दे दी गई जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में निवासरत अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी व्यक्तियों के 15 अगस्त 2020 तक के सभी ऋण ब्याज सहित माफ किए जाने का प्रावधान किया जा रहा है. दूसरे वर्गों को भी साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने के लिए मध्यप्रदेश साहूकार (संशोधन विधेयक 2020) लाया जा रहा है.

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    गुना में पुलिस के डंडे बजते रहे और कई सवाल पीछे छूट गए ...

    कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश में साहूकारी संशोधन विधेयक एवं अनुसूचित जनजाति ऋण मुक्ति विधेयक 2020 को कैबिनेट की स्वीकृति दे दी गई जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में निवासरत अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी व्यक्तियों के 15 अगस्त 2020 तक के सभी ऋण ब्याज सहित माफ किए जाने का प्रावधान किया जा रहा है. दूसरे वर्गों को भी साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने के लिए मध्यप्रदेश साहूकार (संशोधन विधेयक 2020) लाया जा रहा है.

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    चुपचाप हो गये श्रम कानूनों में संशोधन, लॉकडाउन में ख़बर भी रही लॉक... शिवराज के राज में मज़दूर बन जाएंगे बंधुआ!

    कोरोना काल में शिवराज सिंह चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने, बग़ैर मंत्रिमंडल सरकार चलाने का रिकॉर्ड बनाकर कुछ मंत्री बनाए. कोरोना सरकार अब नये कानून बना रही है, किसानों के लिये मंडी एक्ट में बदलाव, मज़दूरों के लिये श्रम कानूनों में बदलाव ... लेकिन इनपर चर्चा किये बग़ैर ... अब सवाल है कि जिस वर्ग को फायदे पहुंचाने के नाम पर ये संशोधन किये जा रहे हैं क्या वाकई उनको फायदा होगा.सीपीएम के नेता बादल सरोज सीधे कहते हैं, श्रम कानून में संशोधन जन विरोधी हैं, शोषण बढ़ाने वाले हैं.

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    17 जवानों की शहादत और वो आखि़री निवाला ...

    कैसा है ये इलाका बस अंदाज़ लगाएं कि इस इलाके में नक्सली फिर पहुंचे जिंदा कारतूस, कारतूस के खाली खोखे और जवानों के बचे हुए सामान उठाने. अमूमन नक्सली घटना को अंजाम देकर वहां से दूर निकल जाते हैं लेकिन यहां घटना के तीसरे दिन फिर से नक्सलियों की उपस्थिति ने सभी को चौंका दिया. '

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    ...तो क्या यह थी कमलनाथ सरकार के गिरने की असली वजह?

    15 साल बाद मध्यप्रदेश में कमल मुरझाया, कमलनाथ आए .. लेकिन 15 महीने बाद वापस कमल खिल गया, कमलनाथ चले गये. कुर्सी की चाहत, नेताओं का अहंकार-महत्वाकांक्षा-लालच कई वजहें हैं जिस पर कांग्रेस को सोचना है, लेकिन एक और अहम बात उसे परेशान कर सकती है वो है दलितों-पिछड़े वर्ग की नाराज़गी. राज्य में जिन 25 सीटों पर अब उपचुनाव होंगे उसमें 9 सीटें आरक्षित हैं, 8 अनुसूचित जाति एक अनुसूचित जनजाति के लिये. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या कमलनाथ सरकार के जाने में एक अहम भूमिका अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग की नाराज़गी एक वजह थी.

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    बच्चों को बाल दिवस मनाने सिर्फ 100 रु. दिये जब्बार भाई, लेकिन ख़बर के बाद आपका फोन नहीं आया!

    मैंने तो सुना कि कैसे 1992 के दौर में आप भोपाल की सड़कों पर रात भर पहरा देते थे, हाल ही मैं जब दिग्विजय सिंह से प्रज्ञा तक को घोषणापत्र में गैस पीड़ितों को अनाथ छोड़ दिया गया था तो आपने निराशा जताई थी. अपने पुराने साथी और उनके बेटे जयवर्धन को पार्क की फिक्र बताते हुए मुझसे कहा था कि इसपर काम करना है.

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    नर्मदा बांध प्रभावितों के पुनर्वास का सवाल दशकों बाद भी अपनी जगह बरकरार

    नर्मदा बचाओ आंदोलन का राजघाट सत्याग्रह गुरुवार-शुक्रवार के बीच देर रात बांध के गेट खोलने का आदेश जारी करने और बड़वानी कलेक्टर के आश्वासन पर स्थगित किया गया है. सभी प्रभावितों का सरकार और आंदोलन के प्रतिनिधियों के साथ ज्वाइंट सर्वे कराया जाएगा. सरकारी पुनर्वास समितियों में आंदोलन के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा. नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के मंत्री से जल्द मुलाकात कराई जाएगी. लेकिन सवाल है कि क्यों कोई मेधा पाटकर 39 सालों बाद भी नर्मदा बचाने खड़ी हो रही हैं.

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    क्या कश्मीर को सबने मिलकर हिन्दू-मुसलमान ही बना डाला!

    कई दिनों से कुछ लिखा नहीं, लिखना चाहता भी नहीं ... फिर भी यही आता है खुद को व्यक्त करने के लिए ... शब्द एक ही है ... हतप्रभ हूं ...कश्मीर को सबने मिलकर हिन्दू-मुसलमान ही बना डाला. ज्ञान के भंडार खुल गए 370 से लेकर 35 ए तक ...संविधान निर्माता, संविधान विशेषज्ञ से लेकर अदालती तर्क आने लगे ...बुनियादी सवाल बचे रहे ...ख़ैर लौटना होगा उस पर ... एक बात समझ लें, लोकतंत्र में हर बात लोकतांत्रिक तरीक़े से हो ज़रूरी नहीं ...इसलिए सरकार ने सदन से कैसे मंज़ूरी ली, जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल ने इजाज़त दी मुख्यमंत्री से लेनी चाहिए जैसी बातों के मायने हैं, लेकिन हो ये सरकार ने जता दिया कि ज़रूरी नहीं.

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    मोदी जी को महामानव बनाने के लिए ब्रह्मास्त्र के रूप में निकलते हैं सूत्र...!

    मौजूदा नेतृत्व गांधी नहीं है, हो भी नहीं सकता... उसमें आज़ादी के जश्न में डूबे देश के बीच, नोआखली में आग बुझाने के सामर्थ्य, ताक़त, जज़्बे की कल्पना भी मुश्किल है... वह गांधी जी की इस बात को शायद सुनना भी पसंद न करें - 'सत्ता से सावधान होने की ज़रूरत है, यह भ्रष्ट बनाती है...' भले ही आज के दौर में सूत्र पत्रकार खान मार्केट और लुटियन पत्रकारों की बात करें, लेकिन यह भी सच है कि जो सत्ता के नज़दीक रहा, अभिजात्य हुआ...

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    जुड़वा भाइयों की हत्या: क्या यही रामराज्य है?

    एक बच्ची का बाप हूं... बच्चों से बेपनाह प्यार भी है. रायपुर से भोपाल लौटते वक्त रास्ते भर यही दुआ करता रहा कि बच्चे लौट आएं...वो लौटे 12 दिन बाद... नींद में थे. ...गहरी नींद. जागती आंखों से नींद गायब थी.

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    मेरे लिए अटल जी के मायने...

    वो कवि थे, नेता थे, खाने के शौक़ीन थे... प्रेम भी बखूबी किया... ताउम्र किया. दिल्ली में बैठकर जो छवि अटलजी के लिये गढ़ी गई वो तो एक शब्द में 94 साल के उनके बचपने के दोस्त, पुराने नवाब इक़बाल अहमद तोड़ देते हैं. बशर्ते लुटियन की सीमा छोड़ आप शिंदे की छावनी आएं, गली के आख़िरी छोर पर बने उनके घर तक जाएं.

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    बालकवि बैरागी जी का जाना यूं जाना नहीं है...

    10 फरवरी 1931 को मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गांव में हिन्दी कवि और लेखक आदरणीय बालकवि बैरागी जी का जन्म हुआ था. मनासा में ही वो रहे, यहीं भाटखेड़ी रोड पर कवि नगर में उन्होंने अंतिम सांस ली.

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    क्या वाकई बच्चे हमारी संवेदनाओं का हिस्सा हैं, या सिर्फ सियासत का!

    वो बच्ची जो घोड़े लेने आई, पर लौटी नहीं! क्या ऐसे कई बच्चों को हम बचा नहीं सकते? क्यों वो स्कूल छोड़ गाय-बकरी चराने निकलते हैं? क्या "14 साल से कम उम्र के बच्चों की अनिवार्य शिक्षा" का कानून बेमानी है? मन परेशान था, तभी कुछ पुरानी बातें, पुरानी तस्वीरें याद आ गईं!

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    कोई है, भूख के ख़िलाफ.. या ये सिर्फ भाषण का हिस्सा रहेगा?

    वो चुपचाप ऊंचे खंभे पर चढ़ गया, क्योंकि कुछ लड़कों ने उसे कहा थाली में भरपेट खाना मिलेगा, खंभे पर चढ़ जाओ... फिर वो चुपचाप खंभे से उतर गया, क्योंकि पुलिस वालों ने कहा थाली में भरपेट खाना मिलेगा खंभे से उतर जाओ. अधनंगा था वो, भूखा-प्यासा... लोग कह रह थे पागल है...

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    #युद्धकेविरुद्ध : जो युद्ध आ रहा है...वो पहला नहीं होगा....

    हिन्दुस्तान सोचना दाना मांझी को, पाकिस्तान सोचना 20 साल के लड़के को जो लाख रुपये में सरहद पार चला आता है... मरने के लिए... न-न बरगलाना मत उसे गाजी या शहीद नहीं बनना था... सिर्फ परिवार का पेट भरना था...

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    मानवाधिकार-आजादी की बातें सिर्फ पत्थर फेंकने वालों के लिए!

    सात राज्यों में प्रति व्यक्ति आय जम्मू-कश्मीर के मुकाबले कम है. इन राज्यों में यूपी, एमपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्य शामिल हैं. शिक्षा के मामले में भी छह राज्य जम्मू-कश्मीर के नीचे हैं. फिर भी न कश्मीर शांति से जी रहा है, न देश! याद रखना चाहिए कि आजादी और स्वतंत्रता में फर्क है... हम आजाद नहीं हैं, एक तंत्र के अंदर हैं... जिसका नाम है संविधान.

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    कर्नाटक संगीत को लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश में कृष्णा का क़ाफ़िया...

    टी एम कृष्णा लगातार कर्नाटक संगीत को लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं जो उनके ख्याल से संभ्रातों के बीच सिमटा था। चेन्नई की झुग्गियों में सुबह की महफिल सजाने से लेकर मछुआरों की बस्ती में जाकर गाने तक, बावजूद इसके 'एलिट महफिल' आपको नकार नहीं सकती।

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    रघुराम राजन पर ज़्यादा 'रोने-पीटने' की ज़रूरत नहीं...

    चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, सब रोज़गार के बड़े-बड़े वादे करती हैं, राजन जैसे अर्थशास्त्री लंबी किताबी बातें बाते हैं, लेकिन तीन दशकों के आंकड़े देखिए, देसी-विदेशी कंपनियां रोजगार मशीनों को दे रही हैं, ऐसे में मांग-आपूर्ति का सिद्धांत छलावा नहीं तो और क्या है...?

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    कैराना तय कर लो, तय करने का वक्त है!

    कैराना, तुम जब सुरों में ढले तो किराना बने... वही किराना जिसने "गाने वाली" गंगू को गंगूबाई का दर्जा दिया। याद है कैराना कैसे सारे रस्मो-रिवाज़ तोड़ केवट गंगूबाई तुम्हारे सुरों में बंधी 30 किलोमीटर भागी चलती आती थीं।

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