पहला दृश्य
"मैं तो इंदौर की घटना सुनकर हैरान हूं, पहले आवेदन, फिर निवेदन और बाद में दे दनादन... यह क्या हो रहा है, मैं यह सुनकर स्तब्ध हूं... यह कौन-सी संस्कृति है... इसके बाद भी आप लोगों ने अफसोस नहीं जताया... किसी भी बाप का बेटा हो, यह तो अस्वीकार्य है... मैं और आप दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, क्या इसलिए कर रहे हैं... बाहर करो पार्टी से, ऐसे लोगों को, पता करो, कौन-कौन उनके समर्थन में गए थे... जुलूस-जलसा निकाला था... उन्हें तो बर्खास्त करो, भाई..."
दूसरा दृश्य
भोपाल से BJP सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने आगर-मालवा में चुनाव प्रचार के वक्त रोड शो के दौरान कहा था, 'नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे... आतंकवादी कहने वाले लोग स्वयं के गिरेबान में झांककर देखें... अबकी चुनाव में ऐसे लोगों को जवाब दे दिया जाएगा...' इस बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भले ही पार्टी माफ कर दे, लेकिन वह मन से प्रज्ञा को माफ नहीं कर पाएंगे.
तीसरा दृश्य
मोदी मंत्रिमंडल के शपथग्रहण का दिन, सूत्र बैठे रह गए... प्रताप सारंगी से लेकर कई ऐसे नाम मंत्री बने, जिसकी सूत्रों को हवा तक नहीं लगी थी.
चौथा दृश्य
सूत्रों ने नाम उड़ाए मेनका गांधी से लेकर तमाम धुरंधरों के, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष बन गए, दूसरी दफा सांसद बने ओम बिरला जी... सूत्र बेकार हो गए... मोदी जी के मीडिया सिस्टम में कुछ काम नहीं आया...
अब फिर से देखिए, पहला दृश्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कड़ा संदेश देते हुए BJP नेताओं से कहा कि अक्खड़पन और दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता और उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय के विधायक पुत्र और एक सरकारी अधिकारी पर हमला करने वाले आकाश विजयवर्गीय के आचरण को 'पूरी तरह अस्वीकार्य' बताया.
यह सूत्र पत्रकारिता को शब्दश: पता लग गया...
अब इसके मायने समझिए. सूत्र पत्रकारिता को वे सूत्र मिलते हैं, जिनसे मोदी जी महिमामंडित हों, क्योंकि इस एक सूत्र से वह महामानव, न्यायप्रिय बन गए.
सवाल यह है कि आकाश का आचरण बहुत बुरा था, इस आचरण के लिए वह जेल गए... पार्टी निलंबित करे, निष्कासित करे, कार्रवाई करे, इस पर कोई ऐतराज़ नहीं... लेकिन क्या आपको भी लगता है कि संसदीय दल की बैठक में नाराज़गी पर यह आकाशवाणी सूत्र पत्रकारिता को यूं ही बताई गई होगी...? यह बताने में कोई गुरेज़ नहीं है कि हां, जब भी हमें सूत्रों से कोई जानकारी, कागज़ात मिलते हैं, तो उनमें उस व्यक्ति का स्वार्थ भी होता है लेकिन उसे जनमानस के तराज़ू पर तौला जाता है, फिर हम ख़बर करते हैं. लेकिन मुझे लगता है, यहां सिर्फ एक शख्स का महिमामंडन था.
अगर आचरण-मारपीट-हिंसा से मोदी जी इतने व्यथित होते, तो कभी तो खेद जताया होता, सूत्रों के ज़रिये ही...
1. जब उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर को दिए एक इंटरव्यू में वर्ष 2002 में गुजरात में हुए दंगों पर पछतावा होने के बारे में पूछे जाने पर कहा था, "अगर कोई कुत्ते का बच्चा भी आपकी कार के नीचे आकर मारा जाता है, तो आपको दुख होता है..."
2. कभी तो वह बी.के. हरि पर दिए बयान के लिए माफी मांगते, जब आज़ाद भारत में पहली बार किसी प्रधानमंत्री के बयान को संसद के रिकॉर्ड से हटाया गया...
3. 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड...
लिस्ट लंबी है... क्या आपने कभी भी सूत्रों के ज़रिये इस लिस्ट पर खेद सुना...?
सूत्र तो आजकल ट्विटर ही है, जिसे मोदी-शाह के दौर में री-ट्वीट करना रवायत है...
मौजूदा नेतृत्व गांधी नहीं है, हो भी नहीं सकता... उसमें आज़ादी के जश्न में डूबे देश के बीच, नोआखली में आग बुझाने के सामर्थ्य, ताक़त, जज़्बे की कल्पना भी मुश्किल है... वह गांधी जी की इस बात को शायद सुनना भी पसंद न करें - 'सत्ता से सावधान होने की ज़रूरत है, यह भ्रष्ट बनाती है...' भले ही आज के दौर में सूत्र पत्रकार खान मार्केट और लुटियन पत्रकारों की बात करें, लेकिन यह भी सच है कि जो सत्ता के नज़दीक रहा, अभिजात्य हुआ...
सत्ता से सीधे सवाल सूत्रों के ज़रिये नहीं हो सकते... प्रधानमंत्री की इस नाराज़गी को पार्टी अध्यक्ष या खुद उनके ज़रिये क्यों नहीं कहा गया, ट्वीट भी नहीं आया...
ख़ैर, मेरा सवाल, प्रधानमंत्री से तो है ही, मीडिया के राग-दरबारियों से भी उतना ही है, जो मोदी जी को महामानव बनाने पर तुले हैं...
अनुराग द्वारी NDTV इंडिया में डिप्टी एडिटर (न्यूज़) हैं...
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