मध्यप्रदेश की माटी से निकली एक बेटी कर्नल सोफिया कुरैशी. वह बेटी जिसने फौज की वर्दी पहनकर देश की सीमाओं की रक्षा की. जिसने सरहद पर दुश्मन देखा, लेकिन मंच पर नफरत नहीं। जिसने सिर्फ़ तिरंगा देखा- न धर्म, न जात. और आज उसी बेटी को एक मंत्री, विजय शाह, ने “आतंकियों की बहन” कह दिया. यह सिर्फ एक बयान नहीं है. यह राष्ट्र की आत्मा पर लात है. विजय शाह का बयान सिर्फ़ कर्नल कुरैशी के खिलाफ़ नहीं है- यह उस हर सैनिक के खिलाफ़ है, जिसने वर्दी पहनकर अपना मज़हब पीछे छोड़ दिया और देश को आगे रखा.
यह बयान उस साझा भारत के खिलाफ़ है, जिसमें शहीद अब्दुल हमीद और विक्रम बत्रा, दोनों का नाम एक ही सांस में लिया जाता है. और जब यह ज़हर किसी आम व्यक्ति की ओर से नहीं, एक राज्य सरकार के मंत्री की ओर से आता है, तब यह सिर्फ़ ‘राजनीतिक बयान' नहीं रहता. यह संवैधानिक मर्यादा का सार्वजनिक अपमान बन जाता है.
और जब यह बयान कोई मामूली आदमी नहीं, बल्कि एक मंत्री देता है, तो वह सिर्फ नफरत नहीं फैलाता, वह संविधान के मूल्यों को मटियामेट करता है. जिस मंच से मंत्री जी ने यह जहर उगला, उस मंच पर हलमा की बात होनी थी. आदिवासी परंपरा, जल-जंगल-जमीन की लड़ाई की बात. लेकिन मंच बन गया सियासी नफरत की नाल.
लेकिन सवाल ये भी है क्या पार्टी मंत्री शाह को सिर्फ एक डांट से बरी कर देगी? क्या ऐसे लोगों को कुर्सी पर बैठाए रखना उस पार्टी के मूल्यों का प्रतिनिधित्व है, जो "सबका साथ, सबका विकास" का नारा देती है? या यह कुर्सी अब इतनी भारी हो गई है कि उसमें बैठा व्यक्ति देश की बेटियों को आतंकवादियों की बहन कहकर भी पार्टी का “सम्मानित चेहरा” बना रहता है?
माफ़ी हाथ जोड़ने से नहीं मिलती, माफ़ी उस कुर्सी से उतर कर मिलती है जिसे आपने अपने ज़हर से कलंकित किया है. आपकी मंशा चाहे जो हो, आपके शब्दों ने उन लाखों मुस्लिम सैनिकों का अपमान किया है जो देश के लिए खून बहाते हैं.सोचिए, कोई मुस्लिम बच्चा जो सेना में जाना चाहता है, वह अब क्या सोचेगा? क्या वह यह सुनेगा कि ‘तू भी आतंकियों का रिश्तेदार है?' क्योंकि भारत, वह भारत है जो राणा सांगा और हैदर अली, गुरु गोविंद सिंह और अब्दुल हमीद, गांधी और खान अब्दुल गफ्फार खान, विवेकानंद और मौलाना आज़ाद, इन सभी की साझी विरासत है.
विजय शाह को मंत्री पद से हटाया जाना चाहिए. सार्वजनिक मंच से माफ़ी मांगना पर्याप्त नहीं है. देश के सिपाहियों का अपमान करने वाले व्यक्ति के लिए मंत्री पद का कोई नैतिक औचित्य नहीं बचता. 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले और उसके बाद भारत की एकजुट प्रतिक्रिया ने दिखाया कि राष्ट्र कैसे जवाब देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि "हर नागरिक, हर समुदाय आतंक के खिलाफ़ एकजुट है"- देश की भावना को दर्शाता है.
लेकिन विजय शाह जैसे लोग इस भावना पर कालिख पोतने का काम कर रहे हैं. जब सरकारें चुप रहती हैं और नफरत बोलती है, तो वह सिर्फ़ विपक्ष नहीं, पूरा भारत शर्मसार होता है. अब फैसला केंद्र सरकार और बीजेपी का है या तो वह इस मंत्री को हटाकर यह दिखाए कि संविधान की भावना उनके लिए सर्वोपरि है, या फिर यह संदेश दे कि सत्ता की कुर्सी, देश की इज़्ज़त से बड़ी हो चुकी है.
हमारी मांग स्पष्ट है माफ़ी नहीं, इस्तीफा.कर्नल सोफिया कुरैशी का अपमान दरअसल उस भारत माता का अपमान है, जिसकी रक्षा की उन्होंने शपथ ली थी. इतिहास देख रहा है. मंत्री शाह ने उस साझी विरासत पर थूकने की कोशिश की है. और जो थूकता है, उसे इतिहास कभी माफ नहीं करता. अगर मंत्री बने रहना इतना ज़रूरी है तो फिर मंत्री शब्द का मतलब बदल देना चाहिए. फिर यह लोकतंत्र नहीं, प्रचारतंत्र है.
फिर यह संविधान नहीं, नफरत का घोषणापत्र है. अब वक्त आ गया है कि विजय शाह को सिर्फ कानून नहीं, देश की जनता भी जवाब दे, क्योंकि अगर एक कर्नल बेटी को आतंकियों की बहन कहा जाएगा और हम खामोश रहेंगे, तो कल कोई हमारी मां को भी गद्दार कह देगा. यह सिर्फ कर्नल सोफिया कुरैशी का नहीं, भारत माता का अपमान है. और जो भारत माता का अपमान करता है, उसकी जगह संसद नहीं, अदालत और इतिहास के कठघरे में होना चाहिए.
लेखक परिचयः अनुराग द्वारी NDTV इंडिया में स्थानीय संपादक (न्यूज़) हैं...
(अस्वीकरण: ये लेखक के निजी विचार है. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.)