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ब्लॉग राइटर
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...तो आसमान में उड़कर ज़मीन जीतने की तैयारियां हो रही हैं
पटना एयरपोर्ट पर वाक़ई हेलीकॉप्टर की भीड़ है। अज्ञात सूत्र ने कहा कि बीस बाईस हेलीकॉप्टर में से पंद्रह के करीब बीजेपी नेताओं के लिए हैं। पांच सात हेलीकॉप्टर जो अभी और आ रहा है वो क़ौन लेगा? बताने वाला चुप रहा और कहा कि आप समझ ही रहे हैं।
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बिहार की चुप्पी और चुप्पी की बोली!
बिहार का मतदाता बोल नहीं रहा है। सोच रहा है। एक राजनेता की सभा में मंच की सुरक्षा कर रहे कमांडो को पानी देते हुए पूछा कि आप तो कई जगहों पर जाते होंगे क्या महसूस करते हैं। कमांडो ने बिना आंखे मटकाये कहा कि सर, मोहभंग हो गया है। किससे? दोनों से। क्यों ?
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भाजपा का विज़न है या टेलीविजन का विज़न
कम से कम इस मामले में बहुजन समाज पार्टी की तारीफ की जा सकती है कि पार्टी घोषणापत्र में यक़ीन नहीं करती। दूसरे दलों का भी घोषणापत्र में कम ही यक़ीन लगता है फिर भी वे जारी करते हैं इसलिए थोड़ी तारीफ़ उनकी भी की जानी चाहिए। हमारे देश में घोषणापत्र का ब्रांड पिट चुका है।
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आप दादरी की भीड़ से अलग हैं या उसका हिस्सा
इतना सब कुछ सामान्य कैसे हो सकता है? बसेहड़ा गांव की सड़क ऐसी लग रही थी जैसे कुछ नहीं हुआ हो और जो हुआ है वो ग़लत नहीं है। दो दिन पहले सैंकड़ों की संख्या में भीड़ किसी को घर से खींच कर मार दे। मारने से पहले उसे घर के आख़िरी कोने तक दौड़ा ले जाए।
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क्या अंधविश्वास का विरोध नहीं होना चाहिए?
नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एम.एम. कलबुर्गी की हत्या कर दी जाती है। नरेंद्र नायक, जोसेफ एडामराकू, जयंत पांडा इन सबको मारा पीटा जाता है। सभी धर्मों के नाम पर बने संगठन अंधविश्वास के खिलाफ किसी भी अभियान को धर्म के खिलाफ बना देते हैं।
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बिहार के विकास पर सियासत, मोदी का नीतीश पर निशाना
विशेष दर्जा और विशेष पैकेज में क्या अंतर है इसे राजनीतिक विद्वान बांचते रहेंगे लेकिन जिन्हें मंच लूटना था वो लूट ले गए। जनता को एक फाइनल फीगर मिल गया है। चौक चौराहे पर लोग सेक्टर के आधार पर हिसाब नहीं लगाएंगे।
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मोदी के जवाब में नीतीश का पैकेज, युवा वोटर पर लगाया दांव
सत्तर पचहत्तर दिनों से पूर्व सैनिक जंतर मंतर पर अपनी मांग को लेकर धरने पर हैं। यह धरना उन सभी वर्गों के लिए नज़ीर बनना चाहिए जिनसे चुनाव के वक्त नेता वादे करते हैं और सरकार बनने के बाद भूल जाते हैं। उनकी एकजुटता का नतीजा इतना तो निकला है कि सरकार युद्ध स्तर पर प्रयास कर रही है।
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आंकड़ों की बाज़ीगरी, क्या बिहार का वोटर ये समझ रहा है?
मैं एक राष्ट्रीय रैली आयोग का प्रस्ताव करना चाहता हूं। विधि द्वारा स्थापित न होने के बाद भी मैं राष्ट्रीय रैली आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने पर रैलियों में आने वाले लोगों की गिनती का कोई न कोई विश्वसनीय पैमाना ज़रूर बनाऊंगा।
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मैं बिहार हूं, मेरे लिए किसकी झोली में क्या?
मैं बिहार हूं......हूं तो हूं.... मैं जो था वही हूं जो हूं वही रहूंगा। बिहार क्या है, कौन है बिहार? दरअसल ये सवाल ही क्यों है कि किसका है बिहार। ऐलान ही तो हुआ है कि पांच चरणों में मुझे लेकर चुनाव होंगे।
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दिल्ली-एनसीआर में डेंगू का प्रकोप : सिस्टम है कि मानता नहीं
समाज और सिस्टम के रूप में हमारी एक ख़ासियत है। हम बहुत लंबा सोते हैं और जब जागते हैं तो ऐसे जागते हैं जैसे लगता है कि अब फिर गहरी नींद आएगी ही नहीं। ऐसा नहीं है कि कहीं कुछ हो नहीं रहा या कोई कुछ कर नहीं रहा मगर कुछ तो है जो सभी के किये धरे पर पानी फेर दे रहा है।
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मांसाहार पाबंदी पर राजनीति : क्या उद्धव के बयान की निंदा करेंगे पीएम?
एक अच्छी ख़बर है। अच्छी ख़बर ये है कि हमारे देश की सारी समस्याएं समाप्त हो चुकी हैं। सिर्फ एक समस्या बची है। ग़रीबी, बेरोज़गारी, कुपोषण, सड़क, अस्पताल की समस्याओं के समाप्त होने के बाद अब एक ही काम बचा है। वो ये कि हम या आप क्या खायें। इससे घर-घर में समय बचेगा और जीडीपी बढ़ेगी।
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हमारे मज़दूरों के हिस्से ये अंधेरा, मज़दूरों से ये अंधेरगर्दी कब तक
प्रधानमंत्री की इस बात में दम है कि मज़दूरों को वो सम्मान नहीं मिलता तो कोट पैंट वालों को मिल जाता है। कम से कम उन्होंने यह तो कहा कि मज़दूरों को सम्मान नहीं मिलता है। लेकिन जो उन्होंने मज़दूरों के कल्याण के नाम पर योजनाएं लॉन्च की हैं उसमें उन जगहों की चिन्ता नज़र नहीं आती।
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मिलेनियम सिटी गुड़गांव का मज़दूरी लूट सूचकांक
फर्ज़ कीजिए कि आप किसी शहर में नौकरी करने जाते हैं। किराये का घर लेते वक्त मकान मालिक एक शर्त रखता है कि आप उसी की दुकान से ख़रीदारी करेंगे और वो जो दाम तय करेगा वही चुकाएंगे। ये आप भी कई प्रकार के हो सकते हैं।
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इंद्राणी सा कवरेज चाहिए तो रखें इन बातों का ख़्याल
इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी का जिस तरह से चैनलों और अखबारों में कवरेज हो रहा है, वो कोई पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इसी तरह के कवरेज को लेकर लंबे लंबे लेख लिखे जा चुके हैं। पत्रकारिता की सीमा और पीले रंग की महिमा का गान हो चुका है। लेकिन चैनलों में हमेशा साबित किया है कि वे सुधरते नहीं हैं।
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धार्मिक आधार पर जनसंख्या के आंकड़े : आबादी वृद्धि दर कम होना अच्छा संकेत
व्हाट्सऐप पर अफवाह फैलाने वाले गिरोहों के लिए मसाला अच्छा है जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। राजनीतिक दलों के लिए ये तो ज़बरदस्त मसाला है ही। प्रधानमंत्री तो हमेशा आबादी को संभावना मानते हैं। खुल कर रैलियों में भी बोलते हैं। इसी आबादी में युवाओं का प्रतिशत बढ़ा है तो वे भारत के लिए संभावनाएं देख पाते हैं।
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आखिर आंदोलन पर क्यों उतरे पटेल?
अहमदाबाद की सड़कों पर सेना की गाड़ियां गुजरात के लिए राहत से पहले किसी अपशकुन की आहट की तरह हैं। 2002 के बाद पहली बार अहमदाबाद की सड़कों पर लौटी सेना की ये तस्वीरें बता रही हैं कि 25 अगस्त से लेकर 26 अगस्त की शाम के बीच गुजरात की पुलिस ने इतना कुछ गंवा दिया है कि अब मामला उससे संभलने वाला नहीं है।
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जीत और हार के बाद राजनीति समाप्त नहीं होती
प्रधानमंत्री होते हुए भी नगरपालिका चुनावों में मिली जीत पर ट्वीट करना और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाना, ये नरेंद्र मोदी की राजनीतिक शैली है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के निकाय चुनावों की जीत से उनके ट्वीट का असर ये हुआ कि बीजेपी के बाकी बड़े नेता भी ट्वीट कर अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने लगे।
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भारतीय शेयर बाजार में कोहराम, चीन के आर्थिक संकट का असर
सोमवार सुबह जब सेंसेक्स खुलते ही 500 अंक के आस पास गिरा तो लोगों को लगा कि इतना तो कई बार गिर चुका है लेकिन जल्दी ही बाज़ार 800 के आंकड़े को पार करते हुए 1000 अंक तक जा गिरा।