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This Article is From Aug 28, 2015

इंद्राणी सा कवरेज चाहिए तो रखें इन बातों का ख़्याल

Reported By Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 28, 2015 17:50 pm IST
    • Published On अगस्त 28, 2015 17:42 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 28, 2015 17:50 pm IST
इंद्राणी मुखर्जी की गिरफ्तारी का जिस तरह से चैनलों और अखबारों में कवरेज हो रहा है, वो कोई पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इसी तरह के कवरेज को लेकर लंबे लंबे लेख लिखे जा चुके हैं। पत्रकारिता की सीमा और पीले रंग की महिमा का गान हो चुका है। लेकिन चैनलों में हमेशा साबित किया है कि वे सुधरते नहीं हैं। दर्शकों ने भी उन्हें कभी निराश नहीं किया है। अब मैं भी मानने लगा हूं कि यह दर्शक इतना भी भोला नहीं है। उसे भी इंद्राणी मुखर्जी की तैरती रंगीन तस्वीरों से आंखें सेकने का और तरह तरह के किस्सों से हाय समाज हाय ज़माना करने का मौका मिल रहा है।

अव्वल तो आपके साथ ऐसा न हो। आप किसी अपराध में शामिल न हों मगर हालात ने ऐसा न होने दिया तो आपको क्या करना चाहिए। मुझे लगता है कि जेल जाने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर कवरेज पाना आपका हक है। लेकिन उस हक का आप सही इस्तमाल कर सकें इसलिए मैंने एक गाइडलाइन तैयार की है। मीडिया कवरेज से बिल्कुल परेशान न हों। जितना हो सके उतना कवरेज़ करवायें। एंकर को फोन कर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू दीजिए। बड़े लोगों को देखिये। वे सुख में भी कवरेज पा जाते हैं और दुख में भी। आप हैं कि वो गाना गाते रह जाते हैं- और हम खड़े खड़े गुबार देखते रहे। जब नाम आने पर बड़े-बड़े लोगों को कुछ नहीं होता, दंगों, भ्रष्टाचार, लूट में शामिल नेता आपके वोट से राज करने लगते हैं, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता तो आप नैतिकता के बोझ तले क्यों मरें। इसलिए कुछ सुझाव हैं। भगवान न करे कि आपके साथ ऐसा हो, अगर हो भी जाए तो कवरेज के अधिकार के तहत आप भी पूरा मज़ा लीजिए।

1. अगर आपकी कोई ग्लैमरस तस्वीर है तो उसे जल्दी मीडिया को सप्लाई कर दें। समंदर किनारे या पब में डांस करने की तस्वीरें मीडिया को भाती हैं। अगर आपके पास किसी मिनी स्कर्ट वाली दोस्त या पत्नी के साथ डांस करने की तस्वीर हो तो उसे फेसबुक पर पोस्ट कर दें ताकि मीडिया को जल्दी ऐसी तस्वीरें मिल जाएं। एकाध तस्वीरें शराब पीते हुए या जाम छलकाते हुए भी होनी चाहिए। तीन फोटो होने ही चाहिए। एक किसी बाबा के साथ, एक किसी नेता के साथ और एक उद्योगपति के साथ। तभी संपादक लिख सकेगा कि ऊंचे लोगों तक पहुंच रखने वाला ये शख्स हत्या नहीं करेगा तो और क्या करेगा।

2. अगर आप महिला हैं तो किसी पराये पुरूष (!) के गले में बाहें डाल कर झूमने वाली तस्वीर फेसबुक पर ज़रूर लगायें। सिर्फ पुरुष भी चलेगा। मीडिया अपनी तरफ से अपना-पराया जोड़ लेगा। मर्द और वो भी पराया! चीफ एडिटर कवरेज के लिए आ जाएगा। मर्द दर्शक अपनी बीवियों को पराठे बनाने के लिए किचन में भेज सोफे पर पसर जाएगा। अपनी किस्मत पर रोयेगा कि क्या ख़ाक किसी के अपने हुए, ग़र किसी के पराये न हुए। मोटा काला चश्मा और सिगरेट-शराब पीने की तस्वीर तो होनी ही चाहिए। किसी औरत की शराब के साथ तस्वीर टीवी स्क्रीन पर आग लगा सकती है। अगर स्कूल के दिनों में दो तीन अलग-अलग लड़कों के साथ की तस्वीर हो तो क्या कहने। उत्तेजित संपादक दनादन लिखने लगेगा कि शुरू से ही उसके लक्षण ख़राब थे। देखो इसकी संगत और रंगत। हाई सोसायटी की खुल गई खिड़की, हाय भारत हाय रे पश्चिम। एंकर चीखेगा। एंकरा चहकेगी कि ऊंची उड़ान की चाहत ने गुनाह की काली कोठरी में पहुंचा दिया। रिपोर्टर काली कोठरी का इस्तमाल ज़रूर करें। विदेशों में शापिंग करती हुई अगर तस्वीर हो तो मज़ा आ जाए। भारत में ये सब बदचलनी स्कूल के यूनिफॉर्म माने जाते हैं।

अगर आपकी दो तीन बार शादी टूट चुकी है या किसी और संबंध रहे हैं तो उन सभी पुराने पार्टनर को बता दें। खुद कहें कि जल्दी मीडिया से बात करो। ऐसा करने से आपकी स्टोरी ज़्यादा दिनों तक टीवी पर चलेगी। संपादक लिखवायेगा कि पहला आशिक कौन था, दूसरा कौन था। पहला आशिक इंटरव्यू में बोलेगा कि हमारे प्रेम के तीसरे महीने में ही वो गर्भवती हो गई लेकिन दूसरे महीने में पता चला कि उसका एक और आशिक है। दूसरा आशिक बोलेगा कि बच्चा हमारा था लेकिन वो मुझसे प्यार नहीं करती थी। इस तरह के इंटरव्यू से आपकी स्टोरी महीना भर चल सकती है। दसवीं क्लास में लिखा गया लव-लेटर भी काम आएगा। पुलिस और अदालत से पहले फैसला आएगा। रोज़ फैसला आएगा।

3. स्कूल कालेज के दोस्तों को भी अलर्ट कर दीजिए। जो प्रेस को बतायेंगे कि आप क्या-क्या करते हैं। इस बात का ध्यान रहे कि दोस्त ये न बता दें कि बचपन में हम पतंग या गिल्ली डंडा खेलते थे। इससे स्टोरी का लेवल गिर जाएगा। क्लब में बिलियर्डस खेलने आता था, पार्टी करता था, रेसकोर्स जाता था। महिला आरोपी के दोस्तों को बताना चाहिए कि वो दो टुकड़े वाली बिकनी में तैरने आती थी। उसके बहुत से मर्द दोस्त थे। वो अकेले मर्दों के साथ फिल्म देखने जाया करती थी। किसी अच्छे दोस्त से कहिये कि जन्मदिन या गरीबी के दिनों में गोवा ट्रिप की तस्वीर किसी रिपोर्टर को पकड़ा दे। मुझे नहीं पता कि इन सब किस्सों का अपराध से क्या रिश्ता है लेकिन मीडिया को भी नहीं पता है। पुराने दोस्तों को भले ही अपराध का न पता हो लेकिन आपके कपड़ों, शौक और चाहत का राज़ बताकर वो कहानी में जान डाल सकते हैं। उनसे कहिए कि यह भी बताएं कि बचपन से ही लाइफ स्टाइल वाली फिल्में पसंद थी।

4. फेसबुक के स्टेटस को भी मीडिया खंगाल सकता है। फेसबुक के अनगिनत दोस्तों को बता दीजिए कि अगर मैं किसी अपराध में फंस जाऊं तो पुलिस भले न आप सभी से पूछे लेकिन मीडिया आप सभी से पूछताछ करेगा। इसलिए सोच समझ कर मुझे फोलो करें। कहां कहां छुट्टी मनाने गईं। इन सब तस्वीरों से कवरेज में जान आ जाएगी। किस-किस से मुस्कुरा कर बातें करती थी, किस-किस के घर जाती थीं। मीडिया को यह सब चाहिए क्योंकि अपराध पर बात करने की जगह अगर उसके बहाने इन सब पर बातें हों तो दर्शक की रातें बदल सकती हैं।

ठीक है कि हत्या हुई है। अपराध हुआ होगा तभी यह सब मौका आएगा। बहुत मर्डर होते हैं इस देश में। लेकिन इन सब तत्वों के अभाव में वे सिंगल कॉलम की जगह भी हासिल नहीं कर पाते। इसलिए हत्या स्टोरी नहीं होगी। स्टोरी होगी आपके संबंध, आपके कपड़े, आपके बच्चे, दोस्त, फिल्में वगैरह वगैरह। आपने किस किस को प्रपोज किया, किस किस को डिस्पोज़ किया। ये सब एंगल के बिना कोई अपराध मत कीजिए। फालतू जेल तो जाएंगे ही कवरेज भी नहीं मिलेगा।

रही बात ऐसे रिश्तों के हाई फाई होने की कैटगरी की तो मैं ऐसी कई महिलाओं से मिल चुका हूं। जो घरों में काम करती थीं। उनकी दो नहीं तीन तीन बार शादियां हो चुकी थीं। हालात ने उन्हें अलग अलग मोड़ पर पहुंचाया। एक शादी से चार बच्चे तो दूसरी से तीन बच्चे तक हुए। उन्हें मर्दों के साथ खैनी खाते देखा। कई कामवालियां तो यह भी बताती रहती हैं कि शादी के बाद अब आशिक कौन हैं। बहुतों को अच्छा भी नहीं लगता है। चाल-चलन ठीक नहीं है की निगाह से देखी जाती हैं। वे सब महत्वकांक्षी थीं। मेहनत से बर्तन मांज मांज कर घर बनना चाहती थीं। सात से आठ हज़ार की कमाई के लिए इनके जीवन में भी खूब किस्से हैं। मगर इन किस्सों को लालची निगाह से देखने वाला कोई संपादक नहीं है। कोई चैनल नहीं है। मेरा करण आएगा। मेरा अर्जुन आएगा। जब तक करण-अर्जुन नहीं आते आप इंद्राणी, पीटर, खन्ना, शीना, राहुल की कहानी देखिये। ग़रीबों की दास्तान चैनलों में तूफान कहां पैदा कर पाती है रवीश बाबू।

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