दिल्ली से चला था यह सोचकर कि बिहार का मतदाता 2014 की तरह मोदी-मोदी बोल रहा होगा या नीतीश-लालू को पसंद करने वाला जवाबी नारे लगा रहा होगा। मगर यहां तो सब ऐसे चुप नज़र आते हैं जैसे चुनाव गुजरात में हो रहा हो। कहीं से गुज़रिये तो बेंच पर बैठा आदमी चुटकी ले लेता है। " ऐ सर, सर्वे कर रहे हैं, हमरो भीऊ (व्यू) लीजिये न" एक गांव में ये आवाज़ आई तो लौट कर गया। कितना सर्वे में बोले हैं? मेरे सवाल के जवाब में कहते हैं कि बहुत सर्वे देख लिए भाई जी। तो वोट किसको करेंगे? वो हम क्यों बता दें? अभी सोच रहे हैं। इस जवाब ने दिल्ली से बिहार आने का उत्साह ठंडा कर दिया।
बिहार का मतदाता बोल नहीं रहा है। सोच रहा है। पर वह बोल क्यों नहीं रहा है? एक राजनेता की सभा में मंच की सुरक्षा कर रहे कमांडो को पानी देते हुए पूछा कि आप तो कई जगहों पर जाते होंगे क्या महसूस करते हैं। कमांडो ने बिना आंखे मटकाये कहा कि सर, मोहभंग हो गया है। किससे? दोनों से। क्यों ? अब सर हम सरकारी कर्मचारी हैं।
इससे ज्यादा मैंने कमांडो साहब को छेड़ा नहीं। हम बिहारियों की सर बोलने की आदत सांस्कृतिक हो चुकी है। ख़ुद मैं भी कितना सर सर करता हूं। जो भी है बिहार का मतदाता मजा ले रहा है। रजौली में नीतीश कुमार की सभा में काफी भीड़ थी। लोगों से बात करने लगा तो पता चला कि वोटर कितना चतुर होता है। लोग मस्ती से बताने लगे कि हम सब नेता को सुनते हैं। तो सपोर्ट किसे करते हैं? अब यहां आए हैं तो नीतीश को ही सपोर्ट करते हैं न। पर उसके चेहरे की हंसी वो नहीं कह रही थी जो वो ज़ुबान से कह रहा था।
"इस बार बिहारी वोटर ने सारे नेताओं को अच्छे से समझा दिया है।" पंद्रह चुनाव देखने और कराने का दावा करने वाले पुलिस के एक दारोगा ने बहुत धीरे से कहा। मैंने भी धीरे से पूछा वो कैसे सर! झा जी ( सरनेम बताना जरूरी है!) ने कहा कि "वोटर ऐसा चुप हो गया है कि कोई समझ ही नहीं पा रहा है। देखिये न प्रधानमंत्री जी ने जितनी रैली महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में नहीं की होगी उससे ज्यादा बिहार में करने आ रहे हैं। "
तो सब चुप क्यों हैं? बोल क्यों नहीं रहे? बिहार के चौराहों पर चुनाव विशेषज्ञ अब चुप्पी का विश्लेषण करने लगे हैं। अलग- अलग लोगों से मिले कुछ तर्क इस प्रकार हैं। पहला, चुप्पी इसलिए है कि गांव-गांव में आरएसएस और वीएचपी के लोग घूम रहे हैं। अपने आसपास बहुत से बाहरी को देख बोल नहीं रहे हैं। दूसरा, गरीब वोटर ऊंची जाति से सुर नहीं मिला सकता इसलिए चुप है। तीसरा, चुप्पी का मतलब यह है कि लोग परिवर्तन चाहता है। चौथा, मुक़ाबला इतना बराबरी का है कि कोई खुलकर नहीं बोलता क्योंकि सबका सबसे सामाजिक संबंध हैं। पांचवां, चुप्पी का मतलब है कि वोटर चाहता बीजेपी को है, लेकिन 2014 में मोदी-मोदी करने के बाद नतीजा देख रहा है। अब वो मोदी-मोदी करे तो किस मुंह से। उसका दूसरा प्राब्लम है कि वो इस कारण नीतीश-लालू के पक्ष में भी नहीं दिखना चाहता। छठा, वोटर चुप इसलिए है कि वो नीतीश लालू से ख़ुश हैं। नीतीश सरकार से डरा होता तो खुलकर बोलता।
"बिहार में इलेक्शन टाइट हो गया है सर।" हर दूसरा आदमी यही कहता है। टाइट और फ़ाइट के बिना कोई चुनावी चर्चा पूरी ही नहीं होती। व्यक्तिगत रूप से इस स्थिति के लिए बिहार के मतदाताओं को बधाई देने का मन कर रहा है। उनकी चुप्पी से चुनाव रोचक हो गया है। हर नेता अपनी सभा या रैली में जीत महसूस करना चाहता, लेकिन वोटर तो स्टुडेंट की तरह कापी हाथ में लिए नेता की सभा को क्लास समझ कर आ जाता है। बोलिये मास्टर जी, आप बोलिये हम सुनने आए हैं! फिजिक्से न पढ़ा रहे हैं हम न जानते हैं न्यूटनवा को!
बिहार के मतदाता की चुप्पी को समझने के लिए आपको यश चोपड़ा की फ़िल्म फ़ासले का गाना सुनना चाहिए। 1985 में आई इस फ़िल्म में सुनील दत्त, रेखा और फ़राह ने अभिनय किया था। हां तो गाने के बोल हैं ... हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं... धड़कनों को, आहटों को, सांसे रुक-सी गईं हैं....
This Article is From Oct 07, 2015
बिहार की चुप्पी और चुप्पी की बोली!
Reported By Ravish Kumar
- चुनावी ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 07, 2015 09:50 am IST
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Published On अक्टूबर 07, 2015 08:44 am IST
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Last Updated On अक्टूबर 07, 2015 09:50 am IST
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