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This Article is From Aug 27, 2015

धार्मिक आधार पर जनसंख्या के आंकड़े : आबादी वृद्धि दर कम होना अच्छा संकेत

Reported By Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 27, 2015 21:23 pm IST
    • Published On अगस्त 27, 2015 21:17 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 27, 2015 21:23 pm IST
व्हाट्सऐप पर अफवाह फैलाने वाले गिरोहों के लिए मसाला अच्छा है जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। राजनीतिक दलों के लिए ये तो ज़बरदस्त मसाला है ही। प्रधानमंत्री तो हमेशा आबादी को संभावना मानते हैं। खुल कर रैलियों में भी बोलते हैं। इसी आबादी में युवाओं का प्रतिशत बढ़ा है तो वे भारत के लिए संभावनाएं देख पाते हैं।

मगर कुछ संगठन और दल इस सवाल को आशंका की नज़र से भी देखते हैं। वे देखते रहते हैं कि किस किस का बढ़ रहा है। हम लोगों का बढ़े मगर उन लोगों का नहीं बढ़े। 25 अगस्त को भारत सरकार के रजिस्ट्रार जनरल ने धार्मिक समूहों का आंकड़ा जारी किया। उसकी किस तरह से रिपोर्टिंग हुई ये हम आपको दिखाना चाहते हैं। पहले हिन्दी अखबारों की सुर्खियां हेडलाइन देखते हैं।

- धर्म का सियासी डेटा, चुनाव से पहले जनगणना के आंकड़े, मुस्लिम आबादी सबसे तेज़ बढ़ी (नवभारत टाइम्स)
- हिंदू घट गए, मुसलमानों की आबादी में बढ़ोतरी (जनसत्ता)
- आबादी में मुस्लमों की हिस्सेदारी 0.8% बढ़ी, हिंदुओं की 0.7% घटी (दैनिक भास्कर)
- सिख, बौद्ध भी घटे, ईसाई और जैन बेअसर
- औसत वृद्धि दर से ज़्यादा है मुस्लिमों की बढ़त
- बिहार चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेंगे आंकड़े

दैनिक भास्कर ने एक छोटे से बॉक्स में यह भी बताया कि अगर हिन्दू मुसलमान की आबादी मौजूदा दर से बढ़ती रही तो दोनों को बराबार होने में 270 लग जायेंगे यानी 2285 में ऐसा होते होते भारत की आबादी 13,000 करोड़ हो जाएगी। इसी तरह स्क्रोल न्यूज़ साइट ने भी लिखा है कि 100 साल से डराया जा रहा है कि एक दिन मुसलमान हिन्दुओं के बराबर हो जाएंगे। ऐसा होने के लिए मौजूदा दर से मुसलमान की आबादी बढ़ती रही तो 200 साल में मुसलमान हिन्दुओं के बराबर हो जाएंगे। तब भारत की आबादी 3,264 करोड़ होगी।

लगता है दैनिक भास्कर और स्क्रोल का कैलकुलेटर कुछ अलग है। 13000 करोड़ से लेकर 3,264 करोड़ भारत की आबादी। मुझे नहीं लगता कि तब मुसलमान भी बहुत खुश होंगे कि देखों अब हम इतने होंगे नाउ वी हैव नो प्रॉब्लम। आप कल्पना कीजिए तो डर लगेगा। हिन्दू के लिए भी और मुसलमान के लिए भी। आदमी के ऊपर आदमी चला करेगा। खैर। कुछ और अखबार देखते हैं।

- बढ़ी मुस्लिम हिस्सेदारी (दैनिक जागरण)
- आबादी की रफ़्तार : हिंदुओं की धीमी, मुस्लिमों की तेज़ (अमर उजाला)
- ऐसा पहली बार हुआ कि हिंदुओं की आबादी 80% से नीचे आई
- वर्ष 2050 तक 180 करोड़ हिंदू और 41 करोड़ मुस्लिम होंगे

- अमर उजाला के हिसाब से तो अगले 35 साल तक मुसलमान हिन्दुओं के आधे भी नहीं पहुंच पायेंगे। सो अफवाह फैलाने वाले गिरोह रिलैक्स करें। हिन्दुस्तान अखबार की सुर्खियां हैं
- मुस्लिम आबादी सबसे तेज़ बढ़ी
- मुस्लिमों की जनसंख्या में हिस्सेदारी 0.8% बढ़ी
- हिंदुओं की जनसंख्या में हिस्सेदारी 0.7% घटी

- सभी हिन्दी अखबारों में इस बात पर ज़ोर रहा कि मुसलमानों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है। जबकि हिन्दू अखबार के मुताबिक सच्चाई ये है कि मुसलमानों में आबादी की विकास दर बाकियों के मुकाबले सबसे तेज़ गिरी है। दि वायर में चित्रा पदमनाभन ने लिखा है कि सेंसस के आंकड़ों को सेंसेक्स की तरह नहीं पढ़ा जाना चाहिए। जैसे मुसलमान अप हिन्दू डाउन।

1991-2001 और 2001-2011 के बीच मुसलमानों की आबादी के बढ़ने की रफ्तार 29.5 से घटकर 24.6 पर आई है। शाबाशी हिन्दुओं को भी मिलनी चाहिए। उनकी आबादी की बढ़ने की रफ्तार 19.9 प्रतिशत से घटकर 16.8 प्रतिशत हुई है।

क्या मीडिया का बड़ा हिस्सा मुसलमानों के बारे में एक ही तरह से सोचता है। भारत सरकार की प्रेस रीलिज़ में और भी आंकड़ें हैं लेकिन वे शायद ध्यान आकर्षित नहीं करते हैं। एक अखबार ने लिखा भी कि बेटी बचाने में हिन्दुओं से आगे हैं मुसलमान।

- 2001-2011 के बीच मुसलमानों में लिंग अनुपात एक हज़ार पुरुषों पर 951 है।
- इसी दौरान हिन्दुओं में लिंग अनुपात प्रति हज़ार पुरुषों पर 939 पर पहुंचा है।
- हालांकि हिन्दुओं में सुधार हुआ है मगर राष्ट्रीय औसत 940 से एक कम है।
- मुसलमानों में लिंग अनुपात राष्ट्रीय औसत से 11 ज़्यादा है।

हम सभी के बस की बात नहीं है कि आंकड़ों को बारीक निगाह से देख सकें। इसलिए जैसा बताया जाता है हममें से कई लोग वैसा मान लेते हैं जबकि वैसा होता नहीं है। अंग्रेज़ी अख़बारों ने इस मसले को कैसे कवर किया और उनकी क्या हेडलाइन थी इस पर नज़र डालते हैं। पहले टाइम्स ऑफ इंडिया फिर उसके बाद हिन्दुस्तान टाइम्स की हेडलाइन देखेंगे।

- Muslim share of population up 0.8%, Hindus' down 0.7%
- Muslim population grows 24% but slower than last decade
- Numbers growing slower for all Communities

- Hindu proportion of India's population less than 80%
- Decadal growth rate of Muslims slowing down

वैसे टीवी का भी ज़िक्र होना चाहिए था मगर चैनलों के पिछले दिनों के हेडलाइन मिलते नहीं हैं। अंग्रेज़ी के दोनों बड़े अखबारों ने भी मुस्लिम आबादी बढ़ने को आगे रखा। इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू की सुर्खियां अलग थीं पहले इंडियन एक्सप्रेस देखते हैं।

- Hindus dip below to 80% of population: Muslim share up, slows down
- Muslim Population growth slows
- Gap with Hindu growth rate narrows
- Bihar elections among factors in data release

- मेल टुडे ने लिखा कि Hindu rate of Growth Falls। कई अखबारों की सुर्खियों के बारे में इसलिए बताया ताकि आप ग़ौर कर सकें कि हमारा मीडिया समाज हिन्दू मुस्लिम से जुड़ी खबरों को कैसे देखता है। स्क्रोल वेबसाइट पर जान दयाल ने अपनी नज़र से इन आंकड़ों के एक पहलू को देखा है।

- हरियाणा में ईसाई आबादी में 85.22 प्रतिशत की वृद्धि बताई गई है।
- अब इस आंकड़े को देखते ही लगेगा हरियाणा में जाट गए, ईसाई आ गए।
- 2001 की जनगणना के मुताबिक ईसाई 27,185 थे।
- 2011 में 50,353 हो गई
- अन्य समुदायों की तरह ईसाई भी पलायन कर हरियाणा आए हैं।

ख़ास बात ये है कि जब आबादी ही कम हो तो उसमें होने वाली वृद्धि प्रतिशत के तौर पर काफ़ी बड़ी लगती है। हरियाणा में ही हिंदुओं की आबादी 35 लाख 15 हज़ार बढ़ी है और सिखों की आबादी 73 हज़ार बढ़ी है। इसलिए जनगणना के आंकड़ों को हमेशा हिन्दू बनाम मुसलमान के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए वर्ना हम और आप नया क्या जानेंगे नया क्या कहेंगे। जान दयाल ने लिखा है कि ईसाई बहुल नागालैंड में तो ईसाइयों की आबादी में 2.83% की गिरावट आई है। संघ की किताबें कहती हैं कि नागालैंड ऐसा राज्य है जहां ईसाइयों की बहुलता भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा बन रही है।

मुसलमानों की आबादी कम हुई है इसके बाद भी पूरे देश की आबादी बढ़ने की औसत दर से काफी ज़्यादा है। कायदे से हिन्दू मुस्लिम सभी की आबादी की रफ्तार कम होनी चाहिए। लेकिन राष्ट्रीय औसत से 7 फीसदी अधिक रफ्तार क्या वाकई मुसलमानों की आबादी के प्रति शक पैदा करती है। अगर करती है तो वे शक क्या हैं। क्यों हैं। आरएसएस के लिए यह मुद्दा हमेशा से गंभीर रहा है। संघ का मानना है कि दश में एक जनसंख्या नीति होनी चाहिए। सभी के लिए दो बच्चे की नीति लागू हो और मुसलमानों के भीतर सुधार हो। इस पर विस्तार से बात करेंगे।

क्यों विपक्षी दलों को लगता है कि इसके ज़रिये धार्मिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया जाएगा। बिहार चुनाव से इसका ताल्लुक है। जैसे ध्रुवीकरण के औजार कम पड़ गए हों। क्या इस वजह से कि पहले भी ये आंकड़े लीक किये जा चुके हैं। कुछ हिन्दू अगर मुसलानों की आबादी को किसी दूसरी नज़र से देखते हैं तो हिन्दु अपने भीतर आबादी के सवाल को कैसे देखते हैं। मुसलमान हिन्दुओं की अधिक आबादी के बारे में क्या वैसे ही डरता होगा जैसे उसकी आबादी बढ़ने पर कुछ लोग हिन्दुओं को डराते हैं। मुसलमान अपने भीतर आबादी के सवाल को कैसे देखता है। कैसे देखना चाहिए।

आबादी बढ़ने का संबंध ग़रीबी से हैं। धर्म से नहीं है। लेकिन बढ़ने का आंकड़ा आते ही धर्म कारण हो जाता है। इस पर भी बात करेंगे कि क्या आबादी बच्चे पैदा करने की रफ्तार से ही बढ़ती है। नवजात मृत्यु दर या लंबे समय तक जीवन का भी कोई रोल है। बहुत जटिल विषय है। पिछली बार प्राइम टाइम किया था तो मेरी एक बात को लेकर व्हाट्सऐप में अभी तक अफवाह फैलाई गईं। ऐसे गिरोहों से सावधान रहिए।

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