समाज और सिस्टम के रूप में हमारी एक ख़ासियत है। हम बहुत लंबा सोते हैं और जब जागते हैं तो ऐसे जागते हैं जैसे लगता है कि अब फिर गहरी नींद आएगी ही नहीं। ऐसा नहीं है कि कहीं कुछ हो नहीं रहा या कोई कुछ कर नहीं रहा मगर कुछ तो है जो सभी के किये धरे पर पानी फेर दे रहा है। ये कोई भी हो सकता है। दिल्ली के लाडो सराय के अविनाश को जब कई अस्पतालों ने ठुकराया तो उसकी मौत के बाद माता-पिता ने खुदकुशी कर ली। हंगामे से लगा कि सिस्टम जाग गया है।
ये अमन है। इसकी मां और दादी का आरोप है कि अगर अस्पतालों ने ठीक से काम किया होता तो अमन बच गया होता। छह साल के अमन को दिल्ली के श्रीनिवासपुरी के गोदरेज़ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां जांच में वो डेंगू पॉज़िटिव पाया गया। इसके बाद अमन को सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया। परिवार का आरोप है कि सफदरजंग ने डेंगू की पुष्टि होने पर भी सिर्फ दवा लिखकर घर ले जाने को कह दिया। लेकिन तबीयत ज़्यादा बिगड़ने पर अमन को जीवन अस्पताल में भर्ती कराया। वहां तीन दिन भर्ती रहने के बाद अस्पताल ने उचित इलाज में असमर्थता जताई।
तब उसके माता-पिता ने मूलचंद अस्पताल, बत्रा अस्पताल और मैक्स अस्पताल में बात की। इन सभी अस्पतालों ने बेड की कमी की वजह से भर्ती करने से इनकार कर दिया। फिर जैसे तैसे होली फैमिली अस्पताल में अमन को भर्ती कराया गया जहां क़रीब 12 घंटे के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई। गुरुवार से लेकर रविवार के बीच परिवार इस अस्पताल से उस अस्पताल तक भागता ही रहा।
अगर आप गिन पाये होंगे तो इस खबर में मैंने सात अस्पतालों का नाम लिया है। एक ज़िम्मेदार नागरिक समाज का फर्ज़ बनता है कि घटना के कारणों को ठीक ठीक जाने। हो सकता है कि मौत के कुछ और कारण हों और कोई दूसरा पक्ष भी हो लेकिन बच्चे को लेकर आपको सात अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े तो समझिये कि बल्कि समझिये नहीं, डरिये। डरिये कि आपके साथ ऐसा हो गया तो। अमन के मां बाप से जिन अस्पतालों के नाम सुने हैं, वो इस प्रकार हैं।
- अस्पताल नंबर एक है गोदरेज़ अस्पताल श्रीनिवासपुरी, जहां डेंगू की पुष्टि हुई। अस्पताल ने कहा अमन को किसी बड़े अस्पताल में ले जाओ जहां इलाज की सुविधाएं हों।
- अस्पताल नंबर दो है सफदरजंग अस्पताल।
- अस्पताल नंबर तीन जीवन अस्पताल जहां अमन की हालत बिगड़ती है और अस्पताल कहता है कि वो असमर्थ है।
- अस्पताल नंबर चार मूलचंद अस्पताल जिससे मां बाप ने संपर्क किया, मगर बेड नहीं मिला।
- अस्पताल नंबर पांच बत्रा अस्पताल जिससे भी मां बाप ने भर्ती के लिए संपर्क किया।
- अस्पताल नंबर छह मैक्स अस्पताल जिससे भी संपर्क किया लेकिन बेड की कमी बताई गई।
- अस्पताल नंबर सात होली फैमिली जहां भर्ती हुई, देर हो गई और अमन की जान चली गई।
दिल्ली में डेंगू कब से है। लेकिन आप याद कीजिए तो हमारे न्यूज़ चैनल पिछले कुछ हफ्तों से क्या कर रहे थे। एक ही नेता की रैली को दिन में दो बार दिखा रहे थे। लालू यादव का चैनल दर चैनल इंटरव्यू चल रहा था। एक भी सीट न जीतने वाले ओवैसी को बिहार चुनाव के बहाने बीजेपी के बराबर कवरेज़ दिया जा रहा था। प्राइम टाइमों में राधे मां और इंद्राणी मुखर्जी की खबर से खेल रहे थे।
एक चैनल पर राधे मां की समर्थिका और एक ललरंगा महात्मा के बीच लाइव थप्पड़ चले तो कई चैनलों ने फुटेज मंगा लिए। हमारे चैनलों की दुनिया की भाषा में इसे खेलना कहते हैं। चैनलों ने इस फुटेज को लेकर खूब खेला। उनके साथ आप दर्शक भी खेले। अब आप अमन और अविनाश की मौत के बाद किसी भी चैनल के एंकर की भाषा देखिये। लगेगा कि अमन और अविनाश की मौत का बदला लेने के लिए उसी तरह से उतारू हो गए हैं जैसे वे राधे मां के मोह जाल से आपको आज़ाद करने का बीड़ा उठाए हुए थे। हमारी दुनिया के लोग आपके बारे में बताते हैं कि आप लोग घर लौट कर कुछ इंटरटेनिंग देखना चाहते हैं। इस आलोचना में मैं खुद भी शामिल हूं। आधी दुनिया डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की गिरफ्त में है। लैटिन अमेरिकी देश जैसे अर्जेंटीना, मक्सिको, चिली और एशियाई देश जैसे भारत पाकिस्तान।
मच्छर के काटने पर उसकी लार में मौजूद डेंगू के वायरस इंसान के जिस्म में चले जाते हैं। जिस्म में पहुंचा डेंगू वायरस त्वचा में मौजूद प्रतिरोधी कोशिकाएं यानी इम्यून सेल्स को संक्रमित करता है। इसके बाद वायरस शरीर के अहम लिम्फैटिक सिस्टम में प्रवेश कर जाता है इस दौरान वायरस से संक्रमित मरीज़ को तेज बुखार आता है। शुरुआती दौर यानी incubation period में इसका स्थानीय असर होता है। फिर ये खून की नलिकाओं से होकर मरीज़ के पूरे शरीर में फैल जाता है इसे वेरेमिया कहते हैं। कुछ मरीज़ों और खासकर बच्चों में कई बार बहुत तेज बुखार हो जाता है। जिसे डेंगू हेमोरैजिक (hemorrhagic) फीवर कहते हैं। इसमें खून की नलियों से रिसाव शुरू हो जाता है और उससे प्लाज्मा की लीकेज शुरू हो जाती है। अगर मच्छर किसी डेंगू के मरीज को काटता है तो उसके खून में मौजूद वायरस अपने साथ लेकर दूसरे स्वस्थ लोगों में फैलाने का काम करता है।
1996 से दिल्ली में डेंगू का आतंक है। डेंगू को लेकर जो करना चाहिए उसे लेकर बहस होने लगी है, होनी चाहिए क्योंकि अगर हम ये कर पाते तो इतने लोगों को डेगूं नहीं होता। इस बहस का दूसरा पहलू है अस्पतालों की क्षमता, ज़िम्मेदारी और जवाबदेही का। आप किसी भी बहस को देखिये। मूल सवाल से भटक कर एमसीडी बनाम दिल्ली सरकार में बदल गई है। बात अस्तपालों की होनी चाहिए, बात हो रही होर्डिंग के खर्चे की। बात सफाई की होनी चाहिए तो बात हो रही है कि कौन हमसे खराब है। अमन और अविनाश मरते नहीं अगर एमसीडी और सरकार और नागरिक समाज जागरूक होता। काम कर रहा होता। अगर सब अपना अपना काम कर ही रहे होते तो अमन और अविनाश की मौत नहीं होती।
कई बार संस्थाएं काम भी करती हैं तो कोई नोटिस नहीं लेता। अब एनडीएमसी ने मच्छर पनपने पर राष्ट्रपति भवन समेत 193 इमारतों का चालान किया है। सरकारी इमारतों को अब तक 3365 नोटिस भेजे हैं। राष्ट्रपति भवन को साल भर में 90 नोटिस भेजे जा चुके हैं। वहां के कूलरों में मच्छरों को पनपते पाया गया है। एम्स को भी 22 नोटिस भेजे गए हैं। 9 चालान हुए हैं। सफदरजंग को भी 12 नोटिस भेजे गए हैं। जब अस्पतालों को नोटिस दिये जा रहे हैं तो समझिये कि बाकी जगहों का क्या होता होगा।
जब कोई काम कर रहा था तब भी किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था। चालान और नोटिस से यही पता चलता है। हमारे सिस्टम के पास एक और तरीका है। जब काम न करते हुए पकड़े जाएं तो ऐसा कुछ किया जाए जिससे लगे कि काम किया जा चुका है।
जब हम सोमवार को लाडो सराय गए तो वहां की दीवार पर जनवरी से लेकर सितंबर तक की तारीख लिखी हुई थी। इन इन तारीख को यहां फौगिंग हुई। ग़ौर से देखा तो पता चला कि एमसीडी के पास कोई ऐसी पेंसिल है जिसका जनवरी में लिखा वैसे ही चमकता है जैसे सितंबर का लिखा हुआ। लगा कि किसी ने एक ही बार में नौ महीने के काम का हिसाब लिख दिया है। एक ही तरह के दस्तखत देख कर लगा कि कोई तो बंदा है जो नौ महीने से यहां फौगिंग कर दीवार पर साइन करता है। इसके काम से प्रभावित होकर पेसिंल की लिखावट ने भी मिटने से इंकार कर दिया है। बस लोगों को नहीं दिखा कि मौत और खुदकुशी से पहले फौगिंग हुई थी। लीपापोती के नाम पर नए पोस्टर लगा दिए गए और लगे कि सफाई के प्रति कितनी सतर्कता है। गांव वालों ने बताया कि अविनाश की मौत की खबर छपते ही गांव के बाहर शौचालय बनने लगा। सिस्टम में इतना पावर है कि 24 घंटे में शहर बसाकर साबित कर दे कि यहां सदियों से एक शहर था।
दिल्ली में अभी तक डेंगू के 1872 मामले आ चुके हैं। जब इतने बड़े शहर में इस छोटी सी संख्या के लायक बेड नहीं है, या पांच सौ हज़ार मरीज़ों के लिए बेड नहीं है तो सोचिये कि देश के बाकी हिस्सों में क्या होता होगा।
This Article is From Sep 15, 2015
दिल्ली-एनसीआर में डेंगू का प्रकोप : सिस्टम है कि मानता नहीं
Reported By Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 17, 2015 12:24 pm IST
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Published On सितंबर 15, 2015 21:23 pm IST
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Last Updated On सितंबर 17, 2015 12:24 pm IST
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