मोदी के जवाब में नीतीश का पैकेज, युवा वोटर पर लगाया दांव

मोदी के जवाब में नीतीश का पैकेज, युवा वोटर पर लगाया दांव

नीतीश कुमार की फाइल फोटो

नई दिल्‍ली:

सत्तर पचहत्तर दिनों से पूर्व सैनिक जंतर मंतर पर अपनी मांग को लेकर धरने पर हैं। यह धरना उन सभी वर्गों के लिए नज़ीर बनना चाहिए जिनसे चुनाव के वक्त नेता वादे करते हैं और सरकार बनने के बाद भूल जाते हैं। उनकी एकजुटता का नतीजा इतना तो निकला है कि सरकार युद्ध स्तर पर प्रयास कर रही है।

बीजेपी ने लोकसभा चुनावों के दौरान फसलों की लागत से पचास फीसदी अधिक कीमत देने का वादा किया था, अब यह लागू हो सकता था अगर किसान सैनिकों की तरह एकजुट और सक्रिय होते। अगर किसान अपने मुद्दों के प्रति गंभीर और ईमानदार होते तो आज उन्हें उपज की बेहतर कीमत मिल रही होती। यह बात इसलिए बता रहा हूं कि फिर से कोई चुनावी विज़न डाक्यूमेंट लेकर सामने आया है। नीतीश के इस विज़न डाक्यूमेंट पर चर्चा होनी चाहिए ताकि मतदाता इसे याद रखे और सैनिकों की तरह लागू करवाये। मतदाता बीजेपी और जेडीयू के वादों को ध्यान से सुने, उनकी तुलना करे और सैनिकों की तरह दबाव बनाए। इसलिए कहा कि वन रैंक वन पेंशन लागू होते ही इस देश में घोषणापत्रों को चुनाव के बाद भी पढ़ा जाने लगेगा।

यह तो लगता है कि विज़न डाक्यूमेंट नीतीश का है लेकिन उनके सहयोगी आरजेडी और कांग्रेस का है या नहीं पता नहीं क्योंकि इसे मुख्यमंत्री ने अकेले ही जारी किया है। ब्लॉक स्तर पर हम बिहारियों को नीतीश अंग्रेज़ी सिखाने का इंतज़ाम करने जा रहे हैं। थोड़ा लेट हो गए वर्ना क्या पता मैं ये शो अंग्रेजी में कर रहा होता। खैर नेताओं को लगने लगा है कि रोज़गार के लिए अंग्रेज़ी ज़रूरी है। अंग्रेज़ी कौन सिखायेगा, बिहार में ये सवाल भी गणित की तरह जटिल हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह नीतीश कुमार भी स्कि‍ल डेवलपमेंट यानी कौशल विकास पर ज़ोर देने लगे हैं। बीजेपी को इस विज़न में अपना रीज़न नज़र आ सकता है।

- ज़िला मुख्यालयों में रोज़गार परामार्श और पंजीकरण सेंटर खुलेंगे।
- ब्लॉक स्तर पर कंप्यूटर ट्रेनिंग दी जाएगी।
- जो युवा बिजनेस करना चाहेंगे उन्हें सरकार शुरूआती पूंजी देगी।
- इसे आजकल स्टार्ट अप कहा जाने लगा है। 500 करोड़ का एक फंड बनेगा।
- विश्वविद्यालयों और स्कूलों में वाई-फाई फ्री दिये जाएंगे।

- 20-25 साल के बेरोज़गारों को दो किश्तों में कुल अठारह हज़ार रुपये मिलेंगे जिसका इस्तमाल वे फार्म भरने, इंटरव्यू के लिए यात्रा करने में कर सकेंगे। लगता है सैनिकों के प्रदर्शन ने नीतीश कुमार को थोड़ा डराया है। इसलिए अपने विज़न के साथ यह भी बताते रहे कि हमने आंकलन कर लिया है और इस पर जो खर्च आयेगा वो हम कर सकते हैं। जैसे स्‍क‍िल डेवलपमेंट, वाई फाई और भत्ता वगैरह पर पांच साल में 49 हज़ार 800 करोड़ खर्च होगा जो सरकार कर सकती है। युवाओं के लिए कहा गया है कि 12वीं पास छात्रों को राज्य सरकार एक स्टुडेंट क्रेडिट कार्ड देगी। इस कार्ड से कोई छात्र उच्च शिक्षा के लिए चार लाख रुपये किसी बैंक से निकाल सकेगा। इस पर बैंक जो ब्याज़ लेगा सरकार उसमें तीन परसेंट ब्याज़ अपनी तरफ से भरेगी।

बीजेपी भी नीतीश कुमार के विज़न डाक्यूमेंट को गंभीरता से देख ही रही होगी। जिस तरह से नीतीश ने प्रधानमंत्री के 1 लाख 64000 करोड़ के पैकेज को कॉपी पेस्ट बताया है वैसे ही बीजेपी भी यह कहने को बेचैन होगी कि हमारी योजना को यहां से उठाया और वहां लेकर दिखाया है। बिहार मूलत: एक ग्रामीण राज्य है। 89 फीसदी जनता गांवों में रहती है और 76 फीसदी खेती पर निर्भर है। देखना चाहिए कि नीतीश कुमार ने अपने रिपोर्ट कार्ड में खेती को लेकर क्या कहा है।

- नीतीश का दावा है कि बिहार सरकार गांवों में 15-16 घंटे बिजली दे रही है।
- खेती के लिए किसानों को अलग से कनेक्शन दिया जा रहा है।
- 2014 में बिहार के सभी ज़िलों में मिट्टी जांच की प्रयोगशाला स्थापित की जा चुकी है।
- 2010 से 15 के बीच करीब साढ़े दस लाख सॉयल हेल्थ कार्ड बांटे गए हैं।

इन आंकड़ों से खेती की पूरी तस्वीर नज़र नहीं आ सकती। गरीबी का आंकड़ा देखा तो पता चला कि 2005 से लेकर अभी तक नीतीश कुमार 26 फीसदी लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर ला सके हैं लेकिन फिर भी बिहार ग़रीबी के मामले में पूरे देश में तीसरे स्थान पर है। स्क्रोल वेबसाइट पर प्राची साल्वे और सौम्या तिवारी ने नीती आयोग के आंकड़ों के हवाले से लिखा है कि छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर है। यहां 39.9 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे हैं। झारखंड में 36.9 प्रतिशत ग़रीबी रेखा से नीचे हैं जबकि बिहार में 33.7 प्रतिशत ग़रीबी रेखा से नीचे हैं। उड़ीसा में 32.5 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 31.6 प्रतिशत हैं।

इन चारों राज्यों में देश के औसत 21.9 प्रतिशत से ज्यादा गरीबी है। अगर खेती में जान आई होती तो पलायन कुछ रुका होता। वैसे पलायन वहां भी नहीं रुकता जहां उद्योगों वाला विकास होता है, बल्कि विकास में पलायन से मिले सस्ते मज़दूरों का भी बड़ा रोल होता है। शौचालय बनाने का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े अभियानों में गिना जाता है। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के सभी स्कूलों में शौचायल बनाने का लक्ष्य करीब करीब पूरा कर लिया गया है। नीतीश कुमार भी कहते हैं कि हर घर में शौचालय बनवायेंगे। बिजली को लेकर बीजेपी पूछ रही है कि आपने कहा था कि सबको बिजली नहीं दे सके तो 2015 में वोट मांगने नहीं आएंगे। मुझे लगता है कि नीतीश कुमार ने चुपके से अपनी डेडलाइन एक साल के लिए बढ़ा दी है। विज़न डाक्यूमेंट में कहा गया है कि...

- हमने बता दिया था कि 2016 के अंत तक राज्य के सभी बसावटों तक बिजली पहुंचा देंगे।
- बसावट तक तो बिजली पहुंच गई है अब हर घर में पहुंचायेंगे।
- सरकार गरीब से गरीब को भी अपने खर्चे से बिजली का कनेक्शन देगी।
- इस पर 55,600 करोड़ का खर्च आएगा जो सरकार कर सकती है।

बिहार के 39,000 बसावटों में से 36000 बसावटों में बिजली पहुंच गई है। प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 2012 में 145 किलोवाट थी जो अब बढ़कर 203 किलोवाट हो गई है। यह बता रहा है कि आम आदमी बिजली का इस्तेमाल कर रहा है। प्रति व्यक्ति खपत में बिहार में 40 प्रतिशत का उछाल आया है जबकि पूरे ईस्टर्न ज़ोन में 3 प्रतिशत का ही उछाल हुआ है। नीतीश ने कहा कि बिहार में पांच मेडिकल कॉलेज बनायेंगे। दस साल के राज में बिहार में सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज बना सके। अब हर अनुमंडल में एक नर्सिंग कॉलेज खोलने की बात कर रहे हैं। नीतीश ने महिलाओं को पंचायतों में पचास फीसदी, शिक्षकों और पुलिस की नियुक्ति में 35 फीसदी आरक्षण दिया था अब इसे सभी सरकारी नौकरियों में लागू करना चाहते हैं।

- गुजरात में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है।
- पहले यानी 1997 से 30 फीसदी था जिसे अक्टूबर 2014 में बढ़ाकर 33 फीसदी किया गया है।

नीतीश गुजरात से दो फीसदी ज्यादा आरक्षण दे रहे हैं। अपने विज़न डाक्यूमेंट में सारे लक्ष्यों को पूरा करने में 2 लाख सत्तर हज़ार करोड़ का अनुमान बताया है। हमने बिहार सरकार के वित्त विभाग की वेबसाइट से चेक किया कि क्या बिहार सरकार के पास इसकी क्षमता है। साल 2015-16 में योजनाओं का कुल खर्चा 57,138 करोड़ रुपये का है। इस हिसाब से अगले पांच साल में सरकार 2 लाख 87 हज़ार करोड़ खर्च कर सकती है। नीतीश ने दावा किया है कि अगले पांच साल में 2 लाख सत्तर हज़ार करोड़ खर्च करेंगे।

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नीतीश कुमार ने अपने रिपोर्ट कार्ड में कहा है कि मई 2015 तक 2078 प्रोजेक्ट को मंज़ूरी मिली है, इनमें से 306 शुरू हुए हैं और 7560 करोड़ का निवेश बताया गया है। विज़न डाक्यूमेंट में नीतीश ने कहा है कि इसीके लिए हम विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं। कई राज्यों ने एमओयू के दम पर ही ऐलान कर दिया कि लाखों करोड़ के निवेश आए हैं, जबकि आए भी नहीं। कम से कम नीतीश कुमार ने अपनी नाकामी छिपाई नहीं है, बस कहा नहीं है कि हम फेल हुए हैं। जबकि उद्योग के बारे में बिहार फेल लगता है। क्या इस विजन डाक्यूमेंट में बिहार के लिए कोई विजन नज़र आता है।