अहमदाबाद की सड़कों पर सेना की गाड़ियां गुजरात के लिए राहत से पहले किसी अपशकुन की आहट की तरह हैं। 2002 के बाद पहली बार अहमदाबाद की सड़कों पर लौटी सेना की ये तस्वीरें बता रही हैं कि 25 अगस्त से लेकर 26 अगस्त की शाम के बीच गुजरात की पुलिस ने इतना कुछ गंवा दिया है कि अब मामला उससे संभलने वाला नहीं है।
दिल्ली ने भी सेना और अर्धसैनिक बल भेजने में ज़रा भी देरी नहीं की। एक महीने से गुजरात में रैलियों का सिलसिला चल रहा है मगर स्थिति तभी क्यों नियंत्रण से बाहर गई जब 25 तारीख की रैली में लाखों की संख्या आ गई। एक ऐसे समय में जब पूरे देश में बीजेपी का राजनैतिक नियंत्रण दिख रहा है, गुजरात तो उसके नियंत्रण की बेहतर प्रयोगशाला है, वहां क्यों सब कुछ नियंत्रण से बाहर जाता दिखाई दे रहा है।
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि हार्दिक पटेल के पीछे कौन है तो इस सवाल का अगर ठोस जवाब होता तो अब तक तो मिल ही गया होता। हार्दिक पटेल कहते हैं कि उनके पीछे कोई नहीं है। उनके पीछे गांवों की गरीबी और पटेलों की बेरोज़गारी है। अटकलों से जवाब मिलना होता तो मिल चुका होता। इसलिए हार्दिक के पीछे कौन है की जगह फिलहाल यह देखने की ज़रूरत है कि हार्दिक के कारण जो गुजरात हमारे सामने है वो क्यों हैं, वो क्या है।
मुंबई से सूरत पहुंचे हमारे सहयोगी प्रसाद काथे ने जब जली हुई बसों को गिनना शुरू किया तो एक ही जगह पर 14 बसें जली हुईं मिली। इस पुल के नीचे क्रेन और दूध के टैंकर को फूंक दिया गया। प्रसाद काथे जब शूट कर रहे थे तब भी कुछ वाहनों से धुआं निकल ही रहा था। रात को सहमे लोग इन जली हुई बसों के साथ सेल्फी लेने आ चुके थे। सूरत के कपोदरा, सरसाना थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा रहा, पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच भागा भागी चलती रही। इसी सूरत में कुछ दिन पहले पटेल युवाओं की रैली में लाखों लोग आए तब तो कोई हिंसा नहीं हुई थी। सूरत में पटेलों की आबादी दस लाख बताई जाती है। यहां के पटेल बहुल इलाकों में लड़के सड़कों पर निकल आए। बसों और सरकारी इमारतों को निशाना बनाने लगे। ज्वाइंट कमिश्नर और दो सिपाहियों को भी चोट आई। सूरत के स्कूल बुधवार को भी बंद रहे, गुरुवार को भी बंद रहेंगे।
अहमदाबाद में हमारे सहयोगी राजीव पाठक और अभिषेक शर्मा ने शहर का राउंड लेना शुरू किया। दोनों जब रानिप इलाके की गुजरात स्टील ट्यूब क्रॉसिंग के पास पहुंचे तो वहां देखा कि पटेलों की भीड़ रेलगाड़ी को रोक पटरी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रही है। हमारे सहयोगियों के लिए पास से रिकॉर्ड करना मुश्किल था इसलिए वे नज़दीक की इमारत की छत पर जा पहुंचे। जल्दी ही पुलिस ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी और टकराव की स्थिति पैदा हो गई। तभी पुलिस की निगाह हमारे सहयोगियों पर भी पड़ी तो उनकी तरफ भी शेलिंग शुरू कर दी। इसके बाद दोनों पहुंचे बापूनगर इलाके की मातृछाया सोसायटी में। यह महिला कैमरा देखते ही रोने लगीं। बताने लगी कि पुलिस ने हमें पटेल समझ कर खूब मारा है। पार्किंग में खड़ी सभी 25 गाड़ियां तोड़ डालीं हैं। हमारे घरों में भी घुस कर नुकसान पहुंचाया है। बापूनगर पटेल बहुल इलाका है। आप जानते ही हैं कि यहां कि सोसायटियों में ज़्यादातर पटेल ही रहते हैं। चंद दूसरी जाति के लोग रहते हैं मगर वे सिर्फ अगड़ी जाति के होते हैं।
राजीव और अभिषेक को कुछ जगहों पर लोगों ने बताया कि पटेलों की सोसायटी को पुलिस ने निशाना बनाया है। 25 तारीख की शाम जब जीएमडीसी मैदान से पटेल नौजवानों का हुजूम लौट चुका था तब वहां अनशन पर बैठे सात आठ सौ लड़कों को भगाने के लिए पुलिस ने खदेड़ना शुरू कर दिया।
पुलिस ने अनशन पर बैठे लड़कों को तो पीटा ही, आम लोगों को भी नहीं छोड़ा। मीडिया टीम पर भी लाठी चार्ज किया गया। पुलिस की कार्रवाई का फैसला सरकार या राजनीतिक स्तर पर लिया गया यह कोई नहीं जानता पर जवाब इतना भी मुश्किल नहीं है। हिंसा तो तब भी नहीं भड़की जब गुजरात की मुख्यमंत्री ने जीएमडीसी ग्राउंड जाकर पाटीदारों का ज्ञापन लेने से मना कर दिया और साफ-साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी की सीमा के कारण पटेलों को आरक्षण देना मुमकिन नहीं है। पुलिस की कार्रवाई होते ही आधे घंटे के भीतर अहमदाबाद के पटेल बहुल इलाकों में हिंसा भड़क गई। रामोल, निकोल, बापूनगर, नारनपुरा, ओढ़व, कृष्णा नगर, घाटलोडिया में कर्फ्यू लगा दिया गया। पटेलों और पुलिस के बीच टकराव होने लगा। बीजेपी नेता गोवर्धन जड़ाफ़िया ने भी कहा कि पुलिस बिना किसी कसूर के कई लोगों को बापू नगर से उठा ले गई है।
हार्दिक पटेल ने बुधवार को गुजरात बंद का ऐलान किया तो सरकार ने इंटरनेट और व्हाट्सऐप बंद कर दिये। हमारे राजनीतिक दलों को पता है कि व्हाट्सऐप के ज़रिये अफवाह फैलाने का काम कितना असरदार होता है। कुलमिलाकर बुधवार को गुजरात शांत तो रहा लेकिन बनासकांठा में पुलिस की फायरिंग में दो नौजवानों की मौत हो गई। उधर अहमदाबाद में मंगलवार शाम हुई पुलिस कार्रवाई में घायल पांच नौजवानों की मौत हो गई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत शांति की अपील की और कहा कि हिंसा से कोई रास्ता नहीं निकलता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें मिलकर और बातचीत से समाधान खोजना ही होगा। गुजरात की मुख्यमंत्री ने फिर से शांति बनाए रखने की अपील की लेकिन उनके निवास के आस पास सुरक्षा बढ़ा दी गई। राज्य के गृहमंत्री का घर भी 25 तारीख की रात जलाने का प्रयास किया गया। हार्दिक पटेल ने भी शांति की अपील की है। हार्दिक ने पुलिस पर भी आरोप लगाए हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कोई बयान नहीं दिया है।
इस बीच लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठने लगे हैं जिसका जवाब हम जानने का प्रयास करेंगे। कई लोगों के मन में सवाल है कि पटेलों की यह लड़ाई आरक्षण के लिए नहीं है बल्कि आरक्षण को ही खत्म करने के लिए है। पादीदारों ने ऐसे बयान भी दिये हैं कि ओबीसी में जगह नहीं तो आरक्षण की व्यवस्था ही नहीं।
जीएमडीसी मैदान में लड़कों की भीड़ को देखते हुए सोशल मीडिया में गुजरात के बाहर के नौजवान आरक्षण के खिलाफ लिखने बोलने लगे। आरक्षण विरोधी सवर्ण युवाओं को लगा कि पटेलों की रैली के बहाने फिर से मौका आया है आरक्षण के खिलाफ बात करने का। संविधान सभा से लेकर आज तक आरक्षण के खिलाफ दी जाने वाली मेरिट और बराबरी की दलीलें नहीं बदली हैं। समस्या यह है कि आरक्षण विरोधी नौजवान जिन राजनीतिक दलों से उम्मीद करते हैं, जिन नेताओं का लोहा मानते हैं उनमें साहस ही नहीं है कि वे आरक्षण के सवाल पर नए तरीके से सोचने का प्रस्ताव तक कर सकें।
सिर्फ इतना कहने से कि वे नए तरीके से सोचना चाहते हैं उनका राजनीतिक वजूद ख़तरे में पड़ सकता है। लिहाज़ा ये दोनों दल पंद्रह बीस सालों से अपने घोषणापत्र में सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात तो करते हैं मगर सरकार में आते ही चुप हो जाते हैं। यहां तक कि गुजरात के मसले पर बात करने के लिए गुजरात और बीजेपी ने अपने प्रवक्ता तक नहीं भेजे। यह बताता है कि कांग्रेस और बीजेपी हमेशा फेसबुक और ट्वीटर के कमेंट पढ़कर राजनीति नहीं करती हैं। सोशल मीडिया के आरक्षण विरोधियों को भले लगता हो कि वे इन दो दलों को चलाते हैं। दूसरी तरफ इन आवाज़ों से दलित और ओबीसी समाज सतर्क होने लगा है। गुजरात का दलित तो अभी चुप है मगर ओबीसी ने आवाज़ उठानी शुरू कर दी है।
समस्या यह है कि पटेलों के साथ साथ क्षत्रिय राजपूत, ब्राह्मण और रघुवंशी भी ओबीसी में शामिल होने के मांग कर रहे हैं। गुजरात में जगह-जगह पर हो रही इनकी रैलियों से भी ओबीसी समुदाय ज्यादा आशंकित हुआ है।
- रविवार को वडोदरा के 60 गांवों से आए क्षत्रियों ने भी आरक्षण की मांग को लेकर तीन सितंबर के दिन रैली करने का फैसला किया है।
- करीब 5000 की संख्या में क्षत्रिय राजपूतों ने गोधरा में एक रैली निकाली और कलेक्टर को ज्ञापन भी दिया है।
- क्षत्रिय राजपूतों की इस रैली में पंचमहल, महीसागर और दाहोद से लोग जमा हुए थे।
- ब्राह्मण समाज और रघुवंशी समाज ने भी आरक्षण की मांग को लेकर सौराष्ट्र के अमरेली में रैली निकाली।
- इस रैली में 30,000 के करीब लोग शामिल हुए और कलेक्टर को ज्ञापन दिया गया।
- इन रैलियों के जवाब में 23 अगस्त को अहमदाबाद में ठाकोर समाज ने भी रैली कर दी।
- ठाकोर समाज भी पटेलों की तरह आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि आरक्षण एक लोकप्रिय और कारगर मॉडल हो गया है, अगर गुजरात में कोई विकास का मॉडल है या था तो वहां मेरिट और बराबरी के लिए सबसे अधिक मौके होने चाहिए। वहां के नौजवान आरक्षण के लिए क्यों मजबूर हुए। ठीक है पटेल समुदाय ने गुजरात और विदेशों में अपनी आर्थिक कामयाबी के झंडे गाड़े और बदले में राजनीतिक ताकत भी मिली। अब वही समाज आरक्षण की बात कर रहा है। जो सबसे अमीर माना गया वो आरक्षण मांगे तो सवाल आरक्षण को लेकर होना चाहिए या उस अमीरी की हकीकत को लेकर।
This Article is From Aug 26, 2015
आखिर आंदोलन पर क्यों उतरे पटेल?
Reported By Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:अगस्त 27, 2015 15:16 pm IST
-
Published On अगस्त 26, 2015 21:51 pm IST
-
Last Updated On अगस्त 27, 2015 15:16 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
गुजरात, पटेल आंदोलन, आरक्षण, रवीश कुमार, प्राइम टाइम इंट्रो, कर्फ्यू, Gujarat, Patel Agitation, Patel Reservation, Ravish Kumar, Prime Time Intro, Curfew