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    नोटबंदी पर गरीबों की दुहाई देकर क्या कहना चाहते हैं पीएम मोदी

    नोटबंदी से क्या हासिल हुआ, यह 30 दिसंबर 2016 की तय समय-सीमा के दस दिन के बाद भी न रिजर्व बैंक बताने को तैयार है, न सरकार.

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    अब तैमूर अली खान के बहाने...

    यह भी एक वजह है कि नोटबंदी और बाकी मामलों को देशभक्ति से जोड़कर भावनाओं में उफान लाने की कोशिश भी हो रही है. तैमूर का विवाद भी उसी भावना से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

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    फिदेल कास्त्रो : आत्मनिर्भर संप्रभु राष्ट्रवाद बनाम नव-राष्ट्रवाद

    फिदेल कास्त्रो दुनियाभर के वामपंथी विचारों के लोगों के लिए महान क्रांतिकारी और अमेरिकी पूंजीवादी साम्राज्यवाद से लडऩे वाले विरले योद्धा थे.

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    सत्ता की सियासत वाया ब्रांड मुलायम बनाम ब्रांड अखिलेश

    कोई निरा मूर्ख या धूर्त ही इस नतीजे पर पहुंचेगा कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी में कब्जे की खानदानी जंग में समाजवाद या सामाजिक न्याय की राजनीति का कोई लेनादेना है. इसका दावा तो झगड़ने वाले दोनों खेमों में से कोई कर भी नहीं रहा है.

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    #युद्धकेविरुद्ध : युद्ध से बना ही रहता है युद्धों का सिलसिला...

    युद्ध से युद्धों का सिलसिला ही बना रहता है, जो हमारी खुशहाली के लिए कतई मुनासिब नहीं है. हमें अपने राष्ट्रीय अहम् पर बेशक कायम रहना चाहिए, लेकिन इस दुश्चक्र को तोड़ने के स्थायी उपायों पर गौर करना चाहिए.

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    मगर कश्मीर का दर्द कैसे मिटेगा जेटली जी

    जब हालात काबू में न आएं तो सब दोष बाहरी ताकतों पर मढ़ देना बेहद पुराना नुस्खा है. सो, मोदी सरकार की नैया के सबसे चुस्त खेवनहार माने जाने वाले वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक कदम आगे बढ़कर कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी को पाकिस्तान का नया औजार बता दिया.

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    बलूचिस्तान के संघर्ष और पाकिस्तान के फौजी दमन की पूरी कहानी

    बलूचिस्तान 1948 में बेमन से या जबरन पाकिस्तान में शामिल किए जाने के बाद अपने अकूत प्राकृतिक संसाधनों की वजह से निरंतर टकराव का क्षेत्र बना हुआ है. पाकिस्तानी हुक्मरानों के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और बाहरी आबादी को वहां बसाने के नजरिए की वजह से हाल के दौर में 2003 से यह टकराव अपने चरम पर है.

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    प्रधानमंत्री के भाषण में आने वाले समय की सियासी तस्वीर

    लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम तीसरा संबोधन अपनी अगली सियासी तैयारियों की कुछ उलझी-सी तस्वीर पेश कर रहा था. इसमें संकेत हैं कि वे 2019 में अपनी अगली पारी आश्वस्त करने के लिए कैसी योजनाओं के बारे में सोच रहे हैं.

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    ‘सहस्राब्दि’ शहर गुड़गांव की समस्या की जड़ है बाईपास संस्कृति और जीवन-शैली

    दो घंटे की बारिश और दस घंटे जिंदगी बेहाल. सड़कें लबालब और बाईपास बेमानी. सैकड़ों वाहन और हजारों लोग अपनी कार में बैठे पूरी रात बिताने को मजबूर. काम-धंधे ठप्प. स्कूल-कॉलेज बंद. आईटी, ऑटो, मेडिकल, एजुकेशन, आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री को करोड़ों की चपत.

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    तुर्की में तख्तापलट की कोशिश युद्ध और बम धमाकों से पस्त हालात का नतीजा

    तुर्की में तख्तापलट की कोशिश पहली नजर में इरोदगनवाद बनाम कमालवाद का नतीजा लगती है। लेकिन कुछ खबरों के मुताबिक पिछले साल से जारी बम धमाकों और आतंकी घटनाओं से लोग काफी तंगी महसूस कर रहे हैं।

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    आतंक से लड़ाई के नजरिये में बदलाव की मांग कर रहा फ्रांस पर हुआ यह हमला...

    फ्रांस के नीस शहर की घटना से अब यह लगभग पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि आतंकवाद की व्यापकता की समझदारी और उससे मुकाबले का सामूहिक अंतरराष्ट्रीय नजरिया सच्चाई से कोसों दूर है।

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    कश्मीर के सबक न सीखने का नतीजा और घाटी में बगावत की नई धारा

    कश्मीर में 22 साल के हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मौत बरबस फिल्म 'हैदर' की याद दिला देती है। फिर वही 90 के शुरुआती दशक के खौफनाक नजारे दिखने लगे हैं, बल्कि कुछ लोगों की राय में हालात और बेकाबू हो सकते हैं।

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    गुलबर्ग सोसायटी कत्लेआम के इंसाफ से उठते हैं कुछ गंभीर सवाल

    आजाद भारत के इतिहास में सबसे दहशतनाक दंगों में एक 2002 में गुजरात के अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसायटी कत्लेआम पर विशेष अदालत का फैसला अगर जाकिया जाफरी जैसे पीड़ितों और दूसरे लोगों को हैरान कर गया तो यह समझा जा सकता है।

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    दूसरी सालगिरह पर मोदी सरकार कितनी खरी?

    किसी सरकार की दूसरी सालगिरह भारी जश्न का कारण तभी बनती है जब उसके पास कोई खास वजह हो। केंद्र में कई दशकों बाद भारी बहुमत से आई एनडीए-2 सरकार को यह खास वजह हाल में असम के विधानसभा चुनावों में भारी जीत ने मुहैया कराई है। सवाल है कि क्या एनडीए-2 या मोदी सरकार अपनी जगाई उम्मीदों पर खरी उतर पाई है?

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    केरल में बदल गई गद्दी, लेकिन भगवा खिड़की भी खुली

    कर्नाटक में बीजेपी इसी तरह बढ़ी थी, जैसे वह केरल में बढ़ रही है। हालांकि फर्क यह है कि केरल में कांग्रेस को अधिकतर मुसलमानों और ईसाइयों के वोट मिलते हैं। उन्हीं के ज्यादातर संगठन उसके मोर्चे में हैं। कांग्रेस की हिन्दू वोटों में हिस्सेदारी वाममोर्चा से कम है।

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    पश्चिम बंगाल में ममता की शानदार जीत और वाममोर्चे की करारी हार के मायने

    बहरहाल, इन नतीजों का कांग्रेस से भी अधिक बुरा असर वाममोर्चे पर होगा और प्रकाश करात के बाद माकपा की कमान संभालने वाले सीताराम येचुरी के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। एक और बात यह कि कम से कम बंगाल के इन नतीजों से 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कुछ लाभ शायद ही मिले।

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    असम के भारी मतदान ने बढ़ाया असमंजस

    पांच राज्य - असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुदुच्चेरी के जनादेश नई सियासी फिज़ा तैयार करेंगे। इसमें असम ही एकमात्र राज्य है जिसके नतीजे कांग्रेस और बीजेपी दोनों के आला नेताओं की सियासत के लिए सबसे अधिक काम के होंगे।

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    हर पार्टी को तारणहार नजर आ रहे आंबेडकर

    भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती पर देश की शायद ही कोई राजनैतिक बिरादरी हो जो उनकी विरासत को अपना बताने से पीछे छूट जाना चाहती हो।

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    पश्चिम बंगाल का मन ममतामयी या वामपंथी...?

    वाममोर्चा-कांग्रेस गठजोड़ की ताकत से इनकार नहीं किया जा सकता। जहां तक भाजपा की बात है, दक्षिणपंथी राजनीति की गुंजाइश अभी भी बंगाल में बनती नहीं दिख रही है। फिर भी बंगाल के नतीजे महत्वपूर्ण हैं और आगे की सियासी दशा-दिशा तय कर सकते हैं।

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    किस राष्ट्रवाद की पहली जंग जीत गए अरुण जेटली?

    आज के भाजपा नेतृत्व को शायद उनकी जरूरतें नहीं रह गई है। फिर भी राष्ट्रवाद जैसी बहस में विजय हासिल कर लेने का क्या राज हो सकता है? क्यों इसमें भाजपा को बड़े बौद्धिकों की दरकार नहीं है? राष्ट्रवाद की यह बयार कैसे बही या बहाई गई, इस पर काफी चर्चाएं हो चुकी हैं।

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