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This Article is From Aug 16, 2016

बलूचिस्तान के संघर्ष और पाकिस्तान के फौजी दमन की पूरी कहानी

Harimohan Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 16, 2016 18:45 pm IST
    • Published On अगस्त 16, 2016 18:22 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 16, 2016 18:45 pm IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान के संघर्ष की बात छेड़कर पाकिस्तान के भीतर जारी स्थानीय टकरावों और आजादी की मांगों की ओर दुनिया का ध्यान दिलाया है, जिनकी चर्चाएं दुनिया में कुछ कम हैं. इसी वजह से बलूचिस्तान के संघर्ष में जुटे संगठनों ने भारत का शुक्रिया अदा किया है. हालांकि इस संघर्ष की चर्चाएं कम होने की एक वजह यह भी है कि बलूच आबादी वाले इलाके अफगानिस्तान और ईरान में भी फैले हुए हैं और उन इलाकों में भी स्वायत्त शासन के लिए आंदोलन जारी है. उनकी एक मांग समूचे बलूच क्षेत्र को मिलाकर 'बृहद बलूचिस्तान' बनाने की भी है. भारत भी ऊपरी तौर पर इस मुद्दे को उठाने से बचता रहा है, क्योंकि वह किसी देश के आंतरिक टकराव में दखल देता नहीं दिखना चाहता था.

इस नीति की वजह विश्व मंच पर यह साबित करना था कि पाकिस्तान कश्मीर घाटी में नाजायज दखलंदाजी करता है और वहां आतंक तथा अलगाववाद को हवा देता है. इसी वजह से 2012 में मिस्र के शर्म अल शेख में पाकिस्तान के साथ बातचीत में बलूचिस्तान के जिक्र को कुछ पारंपरिक राजनयिक हलकों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चूक माना गया था. लेकिन कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिदीन के बुरहान वानी की कथित तौर पर मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी में हालात हिंसक हुए तो पाकिस्तान की संसद और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खुल्लमखुल्ला हस्तक्षेप की नीति से भारत ने भी अपने रुख में बदलाव के संकेत दिए. आइए जानें बलूच संघर्ष की दास्तान और वहां पाकिस्तान के फौजी दमन और हिंसक टकरावों की हकीकत-
  1. पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में बलूचिस्तान दरअसल अंग्रेजी राज और बंटवारे की आग में झुलस रहा है. दक्षिण में ओमान की खाड़ी के उत्तर पर्वत, नदी, जंगल, दलदल और रेगिस्तानी इलाकों का अबूझ देश बलूचिस्तान 1948 में बेमन से या जबरन पाकिस्तान में शामिल किए जाने के बाद अपने अकूत प्राकृतिक संसाधनों की वजह से निरंतर टकराव का क्षेत्र बना हुआ है. पाकिस्तानी हुक्मरानों के प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और बाहरी आबादी को वहां बसाने के नजरिए की वजह से हाल के दौर में 2003 से यह टकराव अपने चरम पर है. इसमें एक तरफ स्थानीय अलगाववादियों से पाकिस्तानी फौज लड़ रही है तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी तालिबान जैसे हिंसक सुन्नी संगठन वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं और शिया आबादी पर हमले कर रहे हैं.
  2. यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में फैला हुआ है. लेकिन इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है. इसी इलाके में अधिकांश बलूच आबादी रहती है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का महज 5 प्रतिशत के आसपास है. यह सबसे गरीब और उपेक्षित इलाका भी है. कई इलाके के लोगों का आज भी बाहरी दुनिया से ताल्लुकात नहीं हैं.
  3. इस समूचे इलाके यानी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान में अपनी आजादी और स्वतंत्र शासन के लिए सक्रिय बलूच राष्ट्रवादी बृहत्तर बलूचिस्तान की मांग कर रहे हैं यानी ये तीनों देशों में फैले हिस्सों को मिलाकर एक आजाद देश चाहते हैं. 2005 में ईरान में भी यह संघर्ष तेज हुआ था लेकिन इसका जोर पाकिस्तान वाले इलाके में ही सबसे ज्यादा है.
  4. पाकिस्तान में बलूच राष्ट्रवादियों के संघर्ष के कई लंबे-लंबे दौर चले हैं. पहली लड़ाई तो बंटवारे के फौरन बाद 1948 में छिड़ गई थी. उसके बाद 1958-59, 1962-63 और 1973-77 के दौर में संघर्ष तेज रहा. ये लड़ाइयां हिंसक भी रहीं, मगर अहिंसक प्रतिरोध के दौर भी चले. मौजूदा अलगाववादी संघर्ष का हिंसक दौर 2003 से शुरू हुआ. इसमें सबसे प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को बताया जाता है जिसे पाकिस्तान और ब्रिटेन ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है. इसके अलावा भी कई छोटे संगठन सक्रिय हैं. इनमें लश्कर-ए-बलूचिस्तान और बलूच लिबरेशन यूनाइटेड फ्रंट प्रमुख हैं.
  5. दरअसल पड़ोसी अफगानिस्तान में जारी अस्थिरता का इसमें खास योगदान है. बलूच राष्ट्रवादियों या अलगाववादियों की बढ़ती सक्रियता पर पाकिस्तानी फौज की कार्रवाइयों से टकराव बढ़ गया. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान सरकार के मुख्य ठिकानों पर हमले करने शुरू किए. राजधानी क्वेटा के फौजी ठिकाने, सरकारी इमारतों और फौजियों तथा सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया जाने लगा.
  6. पाकिस्तान की फौजी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जानें गईं और हजारों लोग लापता बताए जाते हैं. मानवाधिकार समूहों के मुताबिक वहां फर्जी मुठभेड़ों में लगातार मौतों और लापता लोगों की तादाद बढ़ रही है. पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की जांच में 5,000 लापता लोगों का पता चला था. सुप्रीम कोर्ट में यह मामला अभी जारी है. इस मामले में भी पूर्व फौजी शासक परवेज मुशर्रफ की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए थे.
  7. कुछ मानवाधिकार संगठनों के मोटे अनुमान के मुताबिक 2003 से 2012 के बीच पाकिस्तानी फौज ने 8,000 लोगों को अगवा किया. 2008 में करीब 1100 बलूच लापता बताए जाते हैं. सड़कों पर कई बार गोलियों से बिंधी और अमानवीय अत्याचार के निशान वाली लाशें पाई जाती रही हैं.
  8. लगभग 2010 से एक दूसरा टकराव पाकिस्तानी तालिबान और कट्टर सुन्नी गुटों - लश्कर-ए-जांघी और जमायत-ए-इस्लामी के हिंदुओं और शिया समुदाय तथा अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने से शुरू हुआ. मोटे अनुमान से ऐसे कई हमलों हाल के वर्षों में 600 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं. इससे करीब 3,00,000 लोगों के विस्थापन की आशंका है.
  9. बलूच उग्रवादियों ने भी पाकिस्तान के दूसरों हिस्सों से आकर बसे लोगों पर हमले किए हैं और 2006 से करीब 800 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका बताई जाती है. पाकिस्तानी हुक्मरानों ने हाल के दिनों में अपनी परियोजनाओं के लिए बाहर से लोगों को लाकर बसाने की नीति शुरू की थी. उनकी दलील थी कि बलूच आबादी में साक्षरता दर बेहद कम होने और हुनरमंद लोगों की कमी की वजह से ऐसा करना जरूरी है. मगर बलूच आंदोलनकारियों को शंका है कि उन्हें कई इलाकों में अल्पसंख्यक बना देने और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए पाकिस्तानी सरकार यह खेल खेल रही है.
  10. दरअसल ग्वादर में अत्याधुनिक बंदरगाह निर्माण भी इसस टकराव का हिस्सा है, जिसे चीन अपने दक्षिणी प्रांतों से पाकिस्तान में आर्थिक कॉरिडोर का एक अहम पड़ाव बनाना चाहता है. इसका निर्माण 2002 में शुरू हुआ और इस पर पूरा नियंत्रण पाकिस्तान की संघीय सरकार का है. इसके निर्माण में चीनी इंजीनियर या मजदूर ही लगाए गए हैं. बलूच लोगों को तकरीबन इससे बाहर रखा गया है. आसपास की जमीनें भी कथित तौर पर सरकारी अधिकारियों ने बलूच लोगों से लेकर भारी मुनाफे में बेच दी है. इससे उपजी नाराजगी को दबाने के लिए पाकिस्तान ने फौजी कार्रवाई का रास्ता अपनाया. आखिर 2004 में बलूच अलगाववादियों के हमले में तीन चीनी इंजीनियर मारे गए तो संघर्ष बाकी इलाकों में भी फैल गया.
  11. 2005 में बलूच सियासी लीडरान नवाब अकबर खान और मीर बलूच मर्री ने बलूचिस्तान की स्वायत्तता के लिए पाकिस्तान सरकार को 15-सूत्रीय एजेंडा दिया. इनमें प्रांत के संसाधनों पर स्थानीय नियंत्रण और फौजी ठिकानों के निर्माण पर प्रतिबंध की मांग प्रमुख थी. इसी दौरान 15 दिसंबर, 2005 को पाकिस्तानी फ्रंटियर कॉर्प्स के मेजर शुजात जमीर डर और ब्रिगेडियर सलीम नवाज के हेलिकॉटर पर कोहलू में हमला हुआ और दोनों घायल हो गए. 2006 में नवाब अकबर खान बुगती पाकिस्तानी फौज से लड़ते हुए मारे गए. उसमें पाकिस्तानी फौज के भी करीब 60 लोग मारे गए थे. पाकिस्तान बुगती को परवेज मुशर्रफ पर रॉकेट हमले का दोषी मानता था.
  12. अप्रैल 2009 में बलूच नेशनल मूवमेंट के सदर गुलाम मोहम्मद बलूच और दो अन्य नेताओं - लाला मुनीर और शेर मुहम्मद को कुछ बंदूकधारियों ने एक छोटे-से दफ्तर से अगवा कर लिया. पांच दिन बाद 8 अप्रैल को गोलियों से बिंधे उनके शव एक बाजार में पड़े पाए गए. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी इसे पाकिस्तान फौज की करतूत मानती है. इस वारदात से पूरे बलूचिस्तान में हफ्तों तक बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों और हिंसा तथा आगजनी का दौर चला.
  13. आखिर इसका नतीजा यह हुआ कि 12 अगस्त 2009 को कलात के खान मीर सुलेमान दाऊद ने खुद को बलूचिस्तान का शासक घोषित कर दिया और आजाद बलूचिस्तान काउंसिल का गठन किया. इसी काउंसिल के धन्यवाद प्रस्ताव का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लाल किले के भाषण में किया. इसके दायरे में पाकिस्तान के अलावा ईरान के इलाकों को भी शामिल किया गया लेकिन अफगानिस्तान वाले हिस्से को छोड़ दिया गया. काउंसिल का दावा है कि इसमें नवाबजादा बरमदाग बुगती सहित सभी गुटों का प्रतिनिधित्व है. सुलेमान दाऊद ने ब्रिटेन का आह्वान किया कि बलूचिस्तान पर गैर-कानूनी कब्जे के खिलाफ विश्व मंच पर आवाज उठाने की उसकी नैतिक जिम्मेदारी है.
  14. आखिर अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को आजाद करने का वादा जो किया था. इस इतिहास में जाने के पहले मौजूदा मामलों पर कुछ बिंदुओं को देख लेते हैं. बलूच लोगों को शायद सबसे अधिक यह परेशान कर रहा है कि उनके संसाधनों का दोहन पाकिस्तान कर रहा है और उनके हिस्से सबसे कम आ रहा है, जिससे उन्हें गुरबत में जीना पड़ रहा है.
  15. बलूचिस्तान में प्राकृतिक गैस का भंडार है मगर रॉयल्टी सिंध और पंजाब से करीब पांच गुना कम मिलती है. यह 1953 में प्रातों की प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से तय की जाती है. इसके अलावा पाकिस्तान सरकार गैस निकालने की लागत अधिक होने की दलील देकर बहुत कम रॉयल्टी वापस करती है. इससे बलूचिस्तान पर कर्ज बढ़ता जा रहा है. 2011 में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने ‘आगाज-ए-हकूक-ए-बलूचिस्तान’ का ऐलान किया और 2.5 अरब डॉलर के अतिरिक्त पैकेज का ऐलान किया मगर आरोप है कि इसका फायदा आम आदमी तक नहीं पहुंचा.
  16. बलूचिस्तान के उत्तरी इलाके तो अंग्रेजों के बनाए सड़कों और रल लाइनों की वजह से आर्थिक रूप से कुछ समृद्ध हैं, जिनमें अधिकांश स्थानीय पख्तून आबादी हैं लेकिन बाकी इलाके बेहद गरीब बने हुए हैं. हालांकि ये पख्तून भी बाकी बलूचियों के साथ अपनी राष्ट्रीयता हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं.
  17. अब आइए इस इलाके के पुराने इतिहास और इसके संघर्षों को जानें. बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन 1666 में स्थापित मीर अहमद के कलात की खानत को अपना आधार मानता है. मीर नसीर खान के 1758 में अफगान सरपरस्ती कबूल करने के बाद कलात की सीमाएं पूरब में डेरा गाजी खान और पश्चिम में बंदर अब्बास तक फैल गईं. फिर 1839 में अंग्रेजों ने कलात पर चढ़ाई की और खान और उसके सिपहसालारों को मार गिराया. इलाके में अंग्रेजों का कब्जा बढ़ने लगा. 1869 में अंग्रेजों ने कलात के खानों और बलूचिस्तान के सरदारों के बीच झगड़े की मध्यस्थता की. इस तरह बाद में पूरे इलाके में अंग्रेजों का दबदबा कायम हो गया.
  18. बीसवीं सदी में शिक्षित बलूच मध्यवर्ग ने आजाद बलूचिस्तान के लिए संघर्ष छेड़ दिया. इसके लिए 1941 में राष्ट्रवादी संगठन अंजुमान-ए-इत्तेहाद-ए-बलूचिस्तान का गठन हुआ. उनकी पहली लड़ाई आजम जान को कलात का खान घोषित करके आजाद सरकार की स्थापना की थी. आजम जान खान के तौर पर स्थापित भी हो गया लेकिन वह सरदारों से जा मिला और अंजुमन से मुंह फेर लिया. उसका उत्तराधिकारी मीर अहमद यार खान अंजुमन के प्रति तो सहानुभूति रखता था, लेकिन अंग्रेजों से रिश्ते तोडऩे का हिमायती नहीं था.
  19. फिर अंजुमन को कलात स्टेट नेशनल पार्टी में बदल दिया गया. यह पार्टी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ती रही. खान ने इसे 1939 में गैर-कानूनी घोषित कर दिया. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पकड़ लिया गया या उन्हें निर्वासन झेलना पड़ा. इससे नई राजनैतिक पार्टियों का जन्म हुआ. 1939 में मुस्लिम लीग हिंदुस्तान के मुस्लिम लीग से जुड़ गई तो अंजुमन-ए-वतन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गई. अंजुमन के कांग्रेस के साथ इस जुड़ाव में सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान की भी भूमिका अहम थी.
  20. मीर यार खान ने स्थानीय मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय मुस्लिम लीग दोनों को भारी वित्तीय मदद दी और मुहम्मद अली जिन्ना को कलात राज्य का कानूनी सलाहकार बना लिया. जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि ‘कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी, जिसके पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते होंगे.’ उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए. इसके अनुच्देछ 1 के मुताबिक ‘पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है, जिसका वजूद हिंदुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है.’ लेकिन अनुच्छेद 4 में कहा गया कि ‘पाकिस्तान और कलात के बीच एक करार यह होगा कि पाकिस्तान कलात और अंग्रेजों के बीच 1839 से 1947 से हुए सभी करारों के प्रति प्रतिबद्ध होगा और इस तरह पाकिस्तान अंग्रेजी राज का कानूनी, संवैधानिक और राजनैतिक उत्तराधिकारी होगा.’-इस तरह इस करार के जरिए अंग्रेजों का आधिपत्य पाकिस्तान को हस्तांतरित हो गया. कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी हासिल हुई.
  21. लेकिन पहला टकराव 1948 में ही शुरू हो गया. अंग्रेजों ने बलूचिस्तान को चार रियासतों में बांट दिया था. इनमें तीन- मकरान, लस बेला और खारन तो आजादी के वक्त पाकिस्तान में मिल गए लेकिन कलात के खान यार खान ने अपने को आजाद घोषित कर दिया. जिन्ना के समझाने पर उसने कुछ मोहलत मांगी ली. लेकिन टालमटोल देखकर पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को उस उस औपचारिक कब्जा कर लिया.
उसके बाद पाकिस्तान के संघीय शासन के खिलाफ अलग-अलग दौर में अलग-अलग मुद्दों को लेकर लगातार सियासी संघर्ष चलता रहा, जिसकी तारीखों का ऊपर जिक्र किया गया है. यानी बलूचिस्तान भी उसी औपनिवेशिक सत्ता से पैदा हुई टकराव का केंद्र बना है, जिसके नमूने दुनिया भर में कई दिख रहे हैं.

हरिमोहन मिश्र वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं...

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