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This Article is From Aug 15, 2016

प्रधानमंत्री के भाषण में आने वाले समय की सियासी तस्वीर

Harimohan Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 15, 2016 20:36 pm IST
    • Published On अगस्त 15, 2016 20:36 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 15, 2016 20:36 pm IST
लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्र के नाम तीसरा संबोधन अपनी अगली सियासी तैयारियों की कुछ उलझी-सी तस्वीर पेश कर रहा था. इसमें संकेत हैं कि वे 2019 में अपनी अगली पारी आश्वस्त करने के लिए कैसी योजनाओं के बारे में सोच रहे हैं.  

अपनी पहली पारी का लगभग आधा कार्यकाल पूरा कर लेने के बाद मोदी का यह संबोधन लाल किले की प्राचीर से उनके पिछले दो भाषणों से कथ्य और तेवर दोनों ही मामलों में एकदम अलग तरह का था. पिछले भाषणों में कई तरह के सामाजिक संदेश और राष्ट्रवाद और विकास को नई दिशा में ले जाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ने जैसे आह्वान थे. लेकिन इस बार ऐसे अभियान, नीति या कार्यक्रम नदारद थे. इस बार जैसे वे सरकारी उपलबिघयों के आंकड़े गिना रहे थे, उससे लगता है कि अब वे वादों पर नहीं, कार्यक्रमों के अमल पर फोकस कर हैं.

उन्होंने इसके लिए नारा भी गढ़ा कि ‘स्वराज’ को ‘सुराज’ में बदलाना है. उपलब्धियां गिनाने के चक्कर में उन्हें शायद करीब डेढ़ घंटे का सबसे लंबा भाषण देना पड़ा. शायद इसी वजह से भाषण उलझा हुआ भी लगा और तारतम्य का अभाव भी दिखा. उन्होंने सिर्फ घरेलू मोर्चे पर आंकड़ों समेत अपनी उपलब्धियां ही नहीं गिनाईं, बल्कि आगे दुस्साहसिक विदेश नीति की डगर पर बढ़ने का भी संकेत दिया.

वे आंकड़े तो ऐसे गिना रहे थे, जैसे किसी कंपनी का कोई सीईओ अपने शेयरधारकों को कंपनी के मुनाफे की डगर पर बेरोकटोक बढ़ने के लिए आश्वस्त कर रहा हो. उन्होंने रेलवे आरक्षण से लेकर सड़क निर्माण में तेजी, सौर ऊर्जा में प्रगति से लेकर बिजली की उपलब्धता और उसके बचत के लिए एलईडी बल्बों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी, रसोई गैस की उपलब्धता के आंकड़ों से लेकर खुले में शौच से मुक्त गांव और शौचालयों के निर्माण में बढ़ोतरी जैसी अनेक उपलब्धियों का आंकड़ों के समेत जिक्र किया. आधुनिक प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल से पासपोर्ट, आधार कार्ड बनाने की सहूलियतों से लेकर तमाम जरूरी कागजात हासिल करने में आसानी की बातें बताईं. भाषण के अधिकांश हिस्सों में देश में किए कामों ही नहीं, विदेश के कई देशों में हुए ऊर्जा और कारोबार सहूलियत संबंधी समझौतों का भी जिक्र किया. छोटे उद्यमियों के लिए मुद्रा कर्ज और जन धन योजना के बारे में भी उत्साहजनक आंकड़े पेश किए.

यह अलग बात है कि कुछेक आंकड़ों को लेकर संदेह ठीक उसी तरह पैदा हो रहे हैं, जैसे आर्थिक वृद्धि की दर को लेकर संदेह जताया जा रहा है. इसी वजह से इस बार उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि देश अगले दो साल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. वैसे यह जिक्र करना गैर-मुनासिब नहीं होगा कि हाल में आई नियंत्रक और महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट में स्वेच्छा से रसोई गैस सब्सिडी वापस करने वालों की वजह से बचत के सरकारी आंकड़ों को गलत बता दिया है. सरकार का दावा है कि इससे 22,000 करोड़ रुपये की बचत हुई जबकि कैग का कहना है कि इस मद में बचत महज 2,000 करोड़ रुपये की हुई, बाकी रकम एलपीजी की विश्व बाजार में कीमतें घटने से बची. हालांकि सरकार कैग की रिपोर्ट का खंडन कर रही है और प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से फिर वही दोहराया.  

कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की कोशिशें यह बताने की रहीं कि कैसे उनकी सरकार ने कार्य संस्कृति में बदलाव किया है और सरकारी कामकाज में कुशलता, संवेदनशीलता और जवाबदेही का जोर बढ़ा है. उन्होंने संसद में वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) विधेयक के पास होने का जिक्र किया और उसके जरिए कारोबार में सहूलियत लाने के अपने नारे को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ने का दावा किया. उनके भाषण में किसानों, कारोबारियों और गरीबों, मध्यवर्गीय लोगों के लिए अपनी सरकार के किए कामों की लंबी फेहरिस्त थी.

पहली बार उन्होंने सामाजिक कटुता की भी बात की और जाति, धर्म के भेदभाव से ऊपर उठने की अपील की. जाहिर है यह दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए हो सकता है. इसी क्रम में उन्होंने बुद्ध, रामानुजाचार्य, महात्मा गांधी और भीमराव आंबेडकर का जिक्र किया. महात्मा गांधी के साथ जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय के जिक्र के जरिए उन्होंने यह बताना चाहा कि उनकी सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रम समाज के निचले पायदान के लोगों के उत्थान के लिए हैं.

लेकिन उनके भाषण का सबसे दुस्साहसिक अंश आखिर में आया जब उन्होंने माओवाद, आतंकवाद के साथ पाकिस्तान कब्जे वाले कश्मीर में गिलगित और पश्चिमी पाकिस्तान में बलूचिस्तान के लोगों पर जारी दमन और अत्याचारों का जिक्र किया. यह पाकिस्तान के साथ एक नए तरह के राजनय की उद्घोषणा थी. इसका आगे नतीजा चाहे जो हो, मगर फिलहाल इससे पाकिस्तान को संकेत दे दिया गया है कि अगर वह कश्मीर का मुद्दा

उठाएगा तो भारत भी बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने में पीछे नहीं रहेगा. अभी तक सरकारी नीति यह थी कि पाकिस्तान को दुनिया के मंच पर सीमा पार से आतंकवाद के लिए घेरा जाए. लेकिन लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान की बातें कहकर पाकिस्तान के उस आरोप को खारिज नहीं किया जा सकेगा कि भारत उसके इलाके में दखल नहीं देता. बहरहाल, इसका मकसद लोगों की राष्ट्रवाद की खुराक पूरी करना हो सकता है.

यहां यह बताया जा सकता है कि ऐसी नीति की चर्चा रामदेव तक कर चुके हैं और प्रधानमंत्री दो दिनों में दूसरी बार इसका जिक्र कर रहे थे. बहरहाल, प्रधानमंत्री के इस भाषण में आगे की राजनीति के कई संकेत छुपे हुए हैं. शायद वे 2019 के चुनावों की तैयारी इसी लाइन पर करने वाले हैं.

हरिमोहन मिश्र वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं...

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