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ब्लॉग राइटर
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उसका फिर बरी होना : अब तो न्याय की देवी को देखना चाहिए
भारत की जनता को दो फैसले लेने चाहिए. एक, न्याय की देवी की जो मूर्तियां अदालतों के सामने लगी हैं, उनकी आंखों से पट्टी को अब खोल दिया जाए, जिससे वे सच को सच की तरह देख सकें, दूसरे, उसके हाथ में जो तलवार है, उसे छीन लिया जाए, जिससे वह तराजू के किसी पलड़े में रखे पैसों को दूर फेंक सके.
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- विनोद वर्मा
- जनवरी 18, 2017 15:51 pm IST
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तुम तो ऐसे न थे, नरेंद्र - प्रधानमंत्री को एक बुज़ुर्ग का खुला खत
सच बताना नरेंद्र. जो पहले का नरेंद्र था, वही असली नरेंद्र था या अब जो नरेंद्र दिखता है, वह असली है. यह तुम ही हो या तुम्हारे अनुयायियों की तरह तुम्हारा मुखौटा लगाए कोई और है? क्योंकि तुम तो ऐसे न थे नरेंद्र.
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- विनोद वर्मा
- जनवरी 03, 2017 16:05 pm IST
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हमाम में खींची गई फोटो जैसा है बीएसपी के खाते में 104 करोड़
दरअसल पार्टी फंड का मामला एक ऐसे हमाम की तरह है, जिसमें सब नंगे हैं, और बराबर नंगे हैं. दिक्कत यह है कि आप किसी एक को दूसरे से अलग कैसे और किस आधार पर करेंगे? उधर, हमाम में सब नंगे होते हैं, लेकिन उसके भी अपने कायदे होते हैं. हमाम में खड़ा कोई एक किसी दूसरे की फोटो खींचकर उस पर कोई आरोप कैसे लगा सकता है?
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- विनोद वर्मा
- दिसंबर 29, 2016 16:30 pm IST
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42 दिन, 60 नियम, कतारों में मौत : आप कैसे सो पाते हैं, प्रधानमंत्री जी?
आप उत्तर प्रदेश, पंजाब, और गोवा के चुनाव के बारे में सोचते हैं या नहीं? क्या आपकी नींद इस आशंका से नहीं उचटती कि कहीं उत्तर प्रदेश पर नोटबंदी का साया मंडरा गया तो? कहीं पंजाब और गोवा हाथ से निकल गए तो...? क्या आप तब भी इतने ही निरंकुश रह पाएंगे, जितने अभी हैं? सच बताइएगा, कभी डर का साया आसपास नहीं दिखता कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की चुप्पी टूट गई तो? बीजेपी के भीतर विद्रोह हो गया तो?
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- विनोद वर्मा
- दिसंबर 21, 2016 19:43 pm IST
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पोस्टकार्ड : कम लिखे को ज़्यादा समझना...
चुनाव के समय, यानी 2014 में जब आपने कहा कि 'काला धन वापस न लाया तो मुझे फांसी चढ़ा देना' तो लोगों को लगा कि आप गंभीरता से कह रहे हैं. लोगों ने आपके हास्यबोध को नहीं पहचाना, लेकिन जब आपने नोटबंदी पर कहा, 'देशवासियो, मुझे 50 दिन की मोहलत दो, फिर जो सज़ा आप तय करोगे, मुझे मंज़ूर होगी...' तब साफ लगा, आप तो मज़ाक करने लगे हैं. प्रधानमंत्री पद का तनाव कम होने लगा है.
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- विनोद वर्मा
- दिसंबर 14, 2016 18:30 pm IST
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जयललिता: अपवादों से भरा एक जीवन...
एआईएडीएमके मूल रूप से दलितों की राजनीति करने वाली पार्टी थी और जयललिता ब्राह्मण. लेकिन क्या यह कम चमत्कारिक है कि ब्राह्मण जयललिता ब्राह्मण विरोध से जन्मी एक पार्टी के शीर्ष पर पहुंचती हैं और सर्व-स्वीकार्य-सर्वमान्य नेता बनी रहती हैं.
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- विनोद वर्मा
- दिसंबर 06, 2016 16:45 pm IST
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नोटबंदी के बाद पीएम मोदी की आठ चुनौतियां...
क्या नोटबंदी कालेधन पर अंतिम कार्रवाई है? हरगिज़ नहीं. नोटबंदी तो शुरुआत है. इसके बाद की चुनौतियां शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ज़्यादा बड़ी होंगीं.
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- विनोद वर्मा
- दिसंबर 02, 2016 12:44 pm IST
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प्रधानमंत्री के 10 सवालों पर एक आम नागरिक का जवाब
नोटबंदी पर सरकार ने 10 सवाल पूछे हैं. सरकार जानना चाहती है कि नोटबंदी के बाद लोगों की प्रतिक्रिया क्या है...? कल्पना कीजिए, सवाल सरकार के मुखिया होने के नाते आपसे सीधे प्रधानमंत्री ने पूछे हैं और इनका जवाब एक आम नागरिक की तरह देना है. अगर आप किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित नहीं हैं, तो आपके जवाब भी इसी के आसपास होंगे. पढ़िए और बताइए.
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- विनोद वर्मा
- नवंबर 24, 2016 14:58 pm IST
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...और उन लाखों जवानों का क्या जो कश्मीर में तैनात हैं?
साल 2008, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. दिसंबर का महीना था. उन दिनों मैं बीबीसी में था. मतदान के दिन सुबह के रेडियो प्रसारण के लिए 'लाइव' करना था. होटल से निकला और पास के एक मतदान केंद्र की ओर चल पड़ा. दो किलोमीटर का फ़ासला तय करना था. पैदल ही, क्योंकि वाहन ले जाने की अनुमति नहीं थी.
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- विनोद वर्मा
- जुलाई 13, 2016 13:11 pm IST
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'सब्रहीन स्वामी' और पीएम नरेंद्र मोदी की राजनीतिक चतुराई...
हो सकता है, स्वामी के पास वही 'ब्रीफ' हो, जो वह कर रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वकील नहीं हैं, राजनेता हैं। उन्हें तो विचारों के ज़रिये ही देश को चलाना होगा। यह और बात है कि वह भी उसी जगह से आए हैं, जहां से स्वामी को 'ब्रीफ' मिल रही होगी।
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- जून 29, 2016 09:36 am IST
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अच्छा हुआ, सरकार ने मंजूरी नहीं दी, वरना क्या दिखाते 'गूगल स्ट्रीट व्यू' में...?
अब आप गूगल को अहमदाबाद की जगह गांधीनगर और रायपुर की जगह नया रायपुर दिखाने को तो नहीं कह सकते न, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छ भारत अभियान जब तक सफल नहीं हो जाता, तब तक तो कम से कम हम गूगल स्ट्रीट व्यू के लायक नहीं हैं।
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- जून 16, 2016 14:01 pm IST
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अजीत जोगी : बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले...
वह चाहते तो 10 जनपथ से अपनी क़रीबियों का बेहतर ढंग से उपयोग में लाते, चर्च के प्रभाव का इससे अच्छा दोहन करते और अपने बेटे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को अन्यान्य तरीक़ों से पूरा करने की योजना बनाते। लेकिन अब तो तीर कमान से निकल चुका है।
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मोदी सरकार के दो साल : ब्रांड मोदी और आने वाली चुनौतियां
किसी भी सरकार के पास गिनाने के लिए अनगिनत उपलब्धियां होती हैं और विपक्षी दलों के पास उन उपलब्धियों को ख़ारिज करने के उतने ही तर्क होते हैं। सच क्या है यह जनता ही जानती है और वह अपना फ़ैसला चुनाव के चुनाव ही दिया करती है।
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शिक्षा की ऐसी उपेक्षा किसी अपराध से कम नहीं..
सीबीएसई के परिणामों के बाद आई एक ख़बर थोड़ा चौंकाती है। थोड़ा सकून भी देती है। ख़बर ये है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन किया है।