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This Article is From Jan 18, 2017

उसका फिर बरी होना : अब तो न्याय की देवी को देखना चाहिए

Vinod Verma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 18, 2017 15:51 pm IST
    • Published On जनवरी 18, 2017 15:51 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 18, 2017 15:51 pm IST
फेसबुक ने सुबह पूछा - बंदे, क्या चल रहा है तेरे मन में. उसी समय ख़बरें ब्रेक हो रही थीं, सो, अनायास ही निकला - "सलमान ख़ान ने जज और काले हिरण दोनों को बरी कर दिया..."

आपको इस पंक्ति में मसखरी दिख सकती है, लेकिन यह फैसला इसके अलावा और कुछ है भी नहीं.

जोधपुर की एक अदालत ने मशहूर अभिनेता सलमान खान को बरी कर दिया है. आरोप था कि उन्होंने वर्ष 1998 में एक शूटिंग के दौरान चिंकारा और काले हिरण का शिकार किया था. उन पर यह भी आरोप था कि उनके पास ऐसे हथियार थे, जिनके लाइसेंस की तारीख खत्म हो चुकी थी.

लेकिन अभियोजन पक्ष सबूत नहीं जुटा पाया. आप कह सकते हैं कि इसमें अदालत का क्या दोष? आप यह भी कह सकते हैं कि सलमान खान ने तो कहा कि वह अदालत का सम्मान करते हैं, इसलिए उन्होंने भी कुछ गलत नहीं किया होगा.

ऐसे ही तर्क तब भी दिए गए थे, जब फुटपाथ पर एक गाड़ी चढ़ जाने से मारे गए लोगों के मामले में सलमान खान बरी हुए थे. वह 2002 की घटना थी. जब फैसला आया, तब भी सोशल मीडिया पर तीखी टिप्पणियां की गई थीं.

अभी एक मामला और बचा है, शिकार का. सुना है, इसी महीने उसकी भी सुनवाई होनी है. लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि उस दिन अदालत का फैसला क्या आएगा. जज साहब अपना फैसला जब लिखेंगे, तब लिखेंगे, लोगों के मन में फैसला लिखा जा चुका है.

भारत में आमतौर पर ऐसा होता है कि सक्षम लोगों के खिलाफ लिखे जाने वाले फैसलों के बारे में अनुमान पहले से ही लगा लिया जाता है. है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण, लेकिन सच है.

कुछ अपवादों का उदाहरण मत दीजिएगा, वे महज़ अपवाद हैं, नजीर नहीं बन रहे हैं.

और सोशल मीडिया पर जो टिप्पणियां हो रही हैं, उन्हें समाज के आईने के रूप में देखें. आपको एकाध ही कोई मिलेगा, जो सलमान खान के बरी हो जाने पर सचमुच खुश दिखेगा, लेकिन आमतौर पर लोग या तो नाराज हैं, या व्यवस्था के खोखलेपन का मजा ले रहे हैं.

सोशल मीडिया की ये टिप्पणियां दरअसल आम लोगों के मन की खीझ है. यह खीझ न्याय न मिल पाने की खीझ है. एक पैसे वाले के खिलाफ अभियोजन पक्ष, यानी पुलिस को सबूत न मिल पाने की खीझ है और अदालतों के रवैये की खीझ है.

इस खीझ में भारत की जनता को दो फैसले लेने चाहिए. एक, न्याय की देवी की जो मूर्तियां अदालतों के सामने लगी हैं, उनकी आंखों से पट्टी को अब खोल दिया जाए, जिससे वे सच को सच की तरह देख सकें, दूसरे, उसके हाथ में जो तलवार है, उसे छीन लिया जाए, जिससे वह तराजू के किसी पलड़े में रखे पैसों को दूर फेंक सके.

दरअसल, न्याय की देवी की अनदेखी अब बर्दाश्त से बाहर होने लगी है और उसकी कथित तटस्थता भी.

विनोद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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