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यह कल्पना कीजिए कि ये सवाल सरकार के मुखिया होने के नाते आपसे सीधे प्रधानमंत्री ने पूछे हैं और इनका जवाब एक आम नागरिक की तरह देना है. अगर आप किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित नहीं हैं, तो आपके जवाब भी इसी के आसपास होंगे. पढ़िए और बताइए.
1. क्या आपको लगता है कि भारत में काला धन है...?
जवाब : सरकारे-आली, हमारी क्या औकात कि कुछ कह सकें. आपने तो जब गुजरात की पावन धरती को इंद्रप्रस्थ के लिए छोड़ा था, तभी आप तय कर चुके थे कि काला धन है. तब तो आपको यह भी पता था कि कितना काला धन भारत में है और कितना विदेशी बैंकों में जमा है. तभी तो आपने हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख जमा करने की बात कही थी. आपने 8 नवंबर को जब नोटबंदी का ऐलान किया था, तब भी तो आपने दावे से कहा था कि देश का सारा काला धन बाहर आने वाला है. क्या हुआ कि अचानक आपको शक होने लगा और आप जनता से पूछने लगे कि काला धन है या नहीं. क्या आपके खुफिया तंत्र ने सूचना दी है कि नोटबंदी से काला धन बाहर आ ही नहीं रहा है, और जो पैसा बाहर आ रहा है, वह तो गरीब, मज़दूरों, किसानों, गृहिणियों और बच्चों की गुल्लकों का पैसा है...? अगर ऐसा ही था, तो पहले पूछ लेते. लेकिन हमने तो सुना है कि आप किसी से पूछते नहीं. अपनी कैबिनेट तक से नहीं पूछा. और अगर हम सच कहना भी चाहें, तो क्यों कहें... देशद्रोही साबित हो जाने के लिए या फिर फलां पार्टी के दलाल और फलां पार्टी के झंडाबरदार कहलाने के लिए...?
2. क्या आपको लगता है, भ्रष्टाचार और काले धन की बुराई से लड़कर उसे खत्म करने की ज़रूरत है...?
जवाब : साहब, मज़ाक कर रहे हैं आप. चौथी कक्षा के बच्चे से पूछेंगे तो कहेगा, हां... और तो और, आप भ्रष्टाचार के भारी-भरकम आरोप झेल रहे अपने मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह से भी पूछेंगे, तो वे भी कहेंगे, हां साहब, इस बुराई को तो ख़त्म करना चाहिए. वे भले ही आपको व्यापमं के बारे में कुछ नहीं बताएंगे, 36,000 करोड़ के राशन घोटाले के बारे में कुछ नहीं कहेंगे, 54 लाख परिवारों के राज्य में 76 लाख राशन कार्ड बनाने का गुर नहीं बताएंगे, अगस्ता डील के बाद अपने घर के पते पर खुले विदेशी खाते के बारे में कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन वे इस सवाल का जवाब 'न' में नहीं देंगे. अब आपका ही नाम लोग बिड़ला और सहारा की सूची में निकालने लगे हैं, लेकिन क्या आप भ्रष्टाचार और काले धन की बुराई खत्म करने से इंकार कर रहे हैं?... नहीं न... तो बस, आप निश्चिंत रहिए, इस सवाल का जवाब 100 प्रतिशत 'हां' में ही मिलेगा. जिसके पास दो जून की रोटी नहीं, वह भी 'हां' कहेगा, और नोट को गद्दों के नीचे बिछाकर सोने वाला भी.
3. कुल मिलाकर काले धन से निपटने के लिए सरकार के कदम के बारे में आप क्या सोचते हैं...?
जवाब : देखिए प्रधानमंत्री जी, सच बात तो यह है कि आपके इस सवाल से पहले हमें मौका ही नहीं मिला था कि सोच सकें कि आपका कदम कैसा है. पहले सारा वक्त बैंकों की कतार में, एटीएम की लाइन में खत्म हुआ. नौकरी के लिए किसी तरह समय निकला. फिर बाक़ी वक्त अख़बार और टेलीविज़न में खप गया. पता नहीं, क्या-क्या दिखाते रहे, 20 मर गए, 30 मर गए, 40 मर गए. कोई गृहिणी बीमार बच्चे को घर छोड़कर आई तो कोई अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे के लिए भटकता मिला. मज़दूरों को रोज़ी नहीं मिल रही है, किसानों के पास कटाई के भुगतान और नए बीज के लिए पैसे नहीं हैं, रोज़ी मिल नहीं रही है, फैक्ट्री में छंटनी होने वाली है... और न जाने क्या-क्या. आपने पूछा तो थोड़ा इंटरनेट खंगाला. पता चला, एक समय आपकी पार्टी में सबसे विद्वान माने जाने वाले गोविंदाचार्य से लेकर आपके हितैषी हरिशंकर व्यास और वेदप्रताप वैदिक जी तक और आपके मुखर विरोधी प्रभात पटनायक से लेकर ज्यां द्रेज़ तक सब आपकी आलोचना कर रहे हैं कि बिना तैयारी आपने घोषणा करके अच्छा नहीं किया. ये जानकार लोग हैं, पता नहीं, क्यों बड़ी बुरी भविष्यवाणियां भी कर रहे हैं.
हमारी समझ कम है, लेकिन यह तो फिर भी समझ आ गया कि जितना काला धन आप सोच (या बता) रहे हैं, उतना तो ठेंगा आपके हाथ नहीं आने वाला. शराब ठेकेदार से लेकर शराब निर्माता तक, पीडब्लूडी विभाग के भ्रष्टतम इंजीनियर से लेकर आपकी पार्टी के मंत्रियों तक सब निश्चिंत दिख रहे हैं. सबका जुगाड़ हो गया है, उल्टे वे कह रहे हैं कि 10-20 परसेंट दिला दें, तो वे दूसरों का भी ठिकाने लगा देंगे. मैंने सुना कि 8 नवंबर की रात अफसरों और नेताओं की बीवियों ने सोने की बड़ी खरीदारी की. एक मुख्यमंत्री की पत्नी के ऑर्डर की बड़ी चर्चा भी सुनी. लेकिन साहब, ये आपके अफ़सर जो हैं न, हैं बड़े निठल्ले. किसी को पकड़ ही नहीं पाए आज तक. अरे, दो-चार बीवियां भी जेल जातीं, तो आपके कदम का असर दिखता.
दूसरी बात यह समझ आई कि काला धन तो सोना-चांदी, फ्लैट, ज़मीन-जायदाद, खेतों और शेयरों आदि में लगा है. ज़्यादातर बेनामी. सो, आप तो उनका कुछ कर नहीं पाएंगे. और देखिए न, लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि विदेशी खातों में जमा काले धन में आपकी दिलचस्पी ही नहीं, तभी तो आपने न जर्मनी की सरकार की बात पर तवज्जो दी, न उस व्हिसलब्लोअर को, जिसने आपको सहयोग का प्रस्ताव दिया था. विद्वान लोग कह रहे हैं कि इस नोटबंदी का असर दो महीने बाद देखना, सो, हम भी उसी इंतज़ार में हैं.
4. भ्रष्टाचार के खिलाफ नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों के बारे में आप क्या सोचते हैं...?
जवाब : सच कहें साहब, तो इस बारे में हम कुछ कह नहीं पाएंगे, क्योंकि हमें एक्को प्रयास के बारे में अब तक पता नहीं चला. आपकी अपनी सरकार के बारे में कोई घोटाला अब तक पकड़ में नहीं आया है, लेकिन इसे सावधानी कह सकते हैं... इसे प्रयास में कैसे गिनें, बताइए भला...? लोग उल्टी बातें ज़रूर कहते-सुनते रहे कि आपकी सरकार ने विजय माल्या को भगा दिया, आपने अपने किसी कारोबारी दोस्त को फलां ठेका दिलवा दिया, आप अपने मुख्यमंत्रियों के काले कारनामों को अनदेखा करके चलते हैं, आपने नोटबंदी की सूचना पहले से लोगों को दे दी थी आदि. लेकिन लोगों की बात कितनी सुनेंगे और कहां तक सुनेंगे. हमें तो अब आपका ही फॉर्मूला ठीक लगने लगा है, किसी की मत सुनो.
5. 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद करने के मोदी सरकार के प्रयासों के बारे में आप क्या सोचते हैं...?
जवाब : अख़बार में पढ़ा साहब, एक आदिवासी 500 रुपये का एक नोट लेकर 90 किलोमीटर दूर बैंक पहुंचा, लेकिन पैसा मिला नहीं. 20-25 किलोमीटर पैदल चलकर एक नोट बदलवाने वाले तो दर्जनों लोगों के बारे में सुना. लोगों के दिल की धड़कनें रुकने की ख़बर मिली. जैसा हमने पहले भी कहा, बेटी की शादी के लिए बदहवास पिता के बारे में टीवी पर देखा. पता नहीं, आपको ये सब ख़बरें मिलती हैं या नहीं. कुछ लोग कह रहे हैं कि आपने देशहित में बहुत बड़ा क़दम उठाया है. वे कह रहे हैं कि इसके बाद हमारी अर्थव्यवस्था चीन को पीछे छोड़कर अमेरिका के करीब पहुंच जाएगी.
लेकिन क्या बताएं, सर, अहमकों की कमी नहीं है, हमारे पड़ोस में कई दिनों से इसी बात पर झगड़ा हो रहा है कि बीवी ने इतने पैसे दबाकर कैसे रख लिए थे. अच्छा है. एक झटके में आपने लोगों की बोलती बंद कर दी. एक कार्टूनिस्ट ने कार्टून बनाया है कि आपने लोगों की अक्ल ठिकाने लगा दी. अब कोई 15 लाख के बारे में नहीं पूछेगा. कुछ लोग तो उसके बारे में जानना चाहते हैं, जिसने आपको यह सलाह दी. लेकिन एक बात पर सब सहमत हैं कि अगर बड़े नोट से काला धन बढ़ता है तो 2,000 रुपये का नोट क्यों निकाला और अगर निकाला भी, तो उसका डिज़ाइन इतना ख़राब क्यों बनवाया, चूरन के नोट की तरह दिखता है.
सच कहूं, अपने जीवन में पहली बार महसूस किया कि रुपयों का अवमूल्यन क्या होता है. जिन रुपयों की कल तक बहुत कीमत थी, उसे रद्दी में बदलते देखना ठीक नहीं लगा. एक नागरिक की तरह कहूं तो यह मुझे अपमानजनक-सा लगा.
6. क्या आपको लगता है कि नोटबंदी से काले धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी...?
जवाब : आपने तो दावा ठोक ही रखा है कि ऐसा होने वाला है. अगर इसके उलट कुछ कहें तो आपके भक्तजन देशद्रोही होने से लेकर पाकिस्तानी होने तक कुछ भी कह सकते हैं, इसलिए डर लगता है. फिर भी आपने पूछा है तो बता देते हैं कि काले धन पर रोक तो शायद नहीं लगने वाली, इसकी रफ्तार थोड़े दिनों तक धीमी हो सकती है, प्रॉपर्टी बाज़ार से लेकर सोने-चांदी तक सबकी ख़रीद धीमी पड़ जाएगी और हो सकता है, इस बार आपके इन्कम टैक्स वालों को अतिरिक्त काम करना पड़े. लेकिन यह थोड़े दिन की बात है. आपने जो किया है, वह छोटा ऑपरेशन भर है. देश की अफरातफरी से भ्रम में मत पड़िएगा. वह तो गरीब, मज़दूर, किसान और गृहिणियों की भगदड़ है.
मुझे तो एक भी सेठ, अफसर, ठेकेदार या बिचौलिया बदहवास नहीं दिखा. भ्रष्टाचार इससे कैसे रुकेगा, यह ज्ञान तो आप जैसा कोई ज्ञानी ही दे सकता है. हमें तो कुछ रुकता दिख नहीं रहा है. जब बैंक का अफसर ही दस टका लेकर नोट बदल रहा है, तो कहां रोकिएगा भ्रष्टाचार को...? हां, यह हो सकता है कि आप अपनी पार्टी से इसकी शुरुआत कर दें और पहले अपने सारे सांसदों और विधायकों की संपत्ति की जांच करवा दें. आपकी नाक के नीचे एक रेड्डी साहब 500 करोड़ की शादी कर गए और बदले में छापा भी नहीं पड़ा, नोटिस भर मिला. विरोधियों का भ्रष्टाचार रोककर अपनों को छूट देने की नीति काम नहीं आएगी. आतंकवाद का जहां तक सवाल है, तो हमारा आकलन है कि इससे रत्तीभर फर्क नहीं पड़ने वाला. जब तक नक्सलियों को आपकी पार्टी के नेता पैसे पहुंचाते रहेंगे, उन्हें किस बात की चिंता...? यक़ीन नहीं...? पूछिएगा अपने मुख्यमंत्री से, किसी डायरी में किस-किसका नाम था.
7. क्या नोटबंदी से ज़मीन-जायदाद, उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य तक आम आदमी की पहुंच बनेगी...?
जवाब : पहले तो आप बताइए कि आप आम आदमी किसे कहते हैं...? एक चौथाई से अधिक आबादी तो गरीबी रेखा से नीचे है. लगभग 10 फीसदी आबादी वह है, जो हाल ही में गरीबी रेखा के दायरे से बाहर हुई है, यानी वह अब भी बहुत गरीब है. फिर बड़ी संख्या में लोग औसतन गरीब हैं. गिनती के लोग हैं, जिन्हें आप मध्यवर्ग में गिन सकते हैं. प्यू रिसर्च और ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट दोनों का अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय पैमाने से केवल 2.3 करोड़ लोग मध्यवर्ग में आते हैं. तो आपकी परिभाषा का आम आदमी यदि मध्यवर्ग से आता है, तब तो यह सवाल ही अप्रासंगिक है. लेकिन अगर ग़रीबों को आप आम आदमी मानते हैं, तो बात अलग हो जाती है.
विद्वानों का अनुमान है कि कुछ समय के लिए प्रॉपर्टी के दाम घटेंगे, लेकिन इसका लाभ आम आदमी उठा पाएगा, कहना कठिन है, क्योंकि नोटबंदी के बाद उसके जीवन में भी बहुत कुछ बदलने वाला है. उच्च शिक्षा अभी भी हमारे देश में यूरोप और अमेरिका की तरह बहुत महंगी नहीं है, क्योंकि हमारे यहां अभी उच्च शिक्षा का महत्व भी कम है. एक चपरासी की नौकरी निकाल दीजिए तो लाख दो लाख उच्चशिक्षा पाए लोग आवेदन दे देंगे. स्वास्थ्य का जहां तक सवाल है, तो इसका कोई संबंध नोटबंदी से हमें समझ में नहीं आता. वह पहले भी आम आदमी की पहुंच से दूर था, और अभी भी रहेगा.
8. भ्रष्टाचार, काले धन, आतंकवाद और नकली नोटों से इस लड़ाई में आपको जो असुविधा हुई, क्या आपको उसका बुरा लगा...?
जवाब : यह तो साहब एकदम ही भक्तों वाला सवाल है. 'आप हमारे साथ हो या देशद्रोही हो' वाली किस्म का. हां, बहुत असुविधा हुई, बुरा लगा और हर बार लगेगा. जो लड़ाई सरकार को लड़नी है, उसे जनता से क्यों लड़वाना चाहते हैं. आप राजनेताओं को छूट दीजिए, उद्योगपतियों का कर्जा माफ कीजिए, कारोबारियों की चोरी की अनदेखी कीजिए और फिर कहिए कि इस लड़ाई में हमारा साथ दीजिए. और हमारा तो फिर भी ठीक है. यह सवाल जाकर एक बार पूछिए सुबह से कतार में लगे भूखे-प्यासे लोगों से, किसानों से या फिर उस आदिवासी से, जिनमें से अधिकांश को अभी पता ही नहीं है कि बांस के किसी टुकड़े में सहेजकर रखा गया उसका रुपया अब रद्दी के टुकड़े में बदल चुका है. हमारा अनुमान है कि आप इन सवालों के जवाबों को एक सर्वे की तरह प्रकाशित करवाएंगे कि देखिए 80 फीसदी लोगों को तकलीफ नहीं है. लेकिन आप यह नहीं बताएंगे कि यह सर्वे सिर्फ़ 2.3 करोड़ जनता के बीच हुआ है और लगभग 98 प्रतिशत जनता को आपने जवाब देने का मौका ही नहीं दिया है.
9. क्या आप मानते हैं कि कुछ भ्रष्टाचार विरोधी लोग खुलेआम काले धन, भ्रष्टाचार और आतंकवाद के समर्थन में लड़ रहे हैं...?
जवाब : मैंने जब जवाब लिखना शुरू किया था तो सोचा था कि एक प्रधानमंत्री अपने देश की जनता से सवालों के जवाब जानना चाहता है. लेकिन प्रधानमंत्री जी, मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि ये सवाल एक आम बीजेपी कार्यकर्ता या संघ के सेवक के सवाल हैं. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के दंश से पीड़ित और आहत. एक ऐसे बेचारे राजनीतिज्ञ का सवाल, जो देश को देश की तरह नहीं, राजनीतिक विचारधाराओं में बंटे खेमे में देखता है. आपको नाम लेकर पूछना चाहिए कि फलां-फलां लोग नोटबंदी का विरोध करके क्या हमारी छवि को गोबर में मिलाने का षडयंत्र कर रहे हैं...? तब इसका जवाब आसान होता. जो आपके किसी निर्णय के खिलाफ है, वह भ्रष्टाचार, काले धन और आतंकवाद का समर्थक हो गया...? यह तो लोकतंत्र की परिभाषा नहीं है, प्रधानमंत्री जी. आप जुमले उछालकर राजनीति कर सकते हैं, तो आपके जुमलों का मज़ा लेने की राजनीति भी करने दीजिए.
10. क्या आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोई सुझाव या आइडिया देना चाहेंगे...?
जवाब : ज़रूर. ऐसा मौक़ा कब आएगा कि एक साधारण नागरिक प्रधानमंत्री को सुझाव दे सके. पहला सुझाव यह कि आप प्रधानमंत्री हैं, तो प्रधानमंत्री बनकर रहिए. आपकी बातों से किसी आम राजनीतिक कार्यकर्ता जैसी बू नहीं आनी चाहिए. दूसरा यह कि आप अपने सलाहकारों को तत्काल बदल दीजिए. वे आपको किसी गहरी खाई में धकेलने की योजना बनाकर काम कर रहे हैं. तीसरा यह कि विदेश यात्राएं छोड़कर पहले अपने देश को ठीक से घूम लीजिए, जिससे आपको ग़रीब, मज़दूर, किसान और आदिवासी का दुख-दर्द समझ में आ सके. आप समझ सकें कि सहकारी बैंक बंद करने से क्या होता है, बच्चे का गुल्लक फूटता है तो क्या होता है और बेटी की शादी का पैसा लुट जाए तो कैसा लगता है. चौथा और अंतिम सुझाव यह कि अच्छा होगा कि आप अपनी मां और पत्नी को अपने साथ रखिए, इससे मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं के प्रति आपकी समझ बढ़ेगी. देश के लिए घर-परिवार छोड़ने वाला उतना महान राजनीतिज्ञ नहीं हो सकता, जितना देश को घर-परिवार की तरह रखने वाला हो सकता है.
विनोद वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं...
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