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    मायावती के संघर्ष को अन्य नेताओं के समकक्ष न रखे मीडिया

    इन दिनों मायावती की चर्चा इस बात पर काफी हो रही है कि मीडिया में उनकी चर्चा नहीं हो रही. खुद मायावती भी इसे अब अपनी रैलियों में कहने लगी हैं. रैलियों में जाकर महसूस किया कि मायावती जिस समाज से आती हैं, उस समाज के लोग उन्हें बहुत आशा भरी निगाहों से देखते हैं, उन्हें किसी हीरो की तरह मानते हैं. मायावती एक बार पूरे 5 वर्षों के लिए सरकार चला चुकी हैं तो अब उनका मूल्यांकन दो तरह से किया जाएगा कि उन्होंने अपने समाज के लिए क्या किया और एक मुख्यमंत्री के तौर पर कैसी रहीं.

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    साक्षरता को लेकर जनप्रतिनिधियों को छूट क्यों?

    पिछले कुछ वक्त से नजर आ रहा है कि राजनीति में सुधारों के पैरोकार भी उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता के मामले में बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं. उनकी दलील होती है कि ये लोकतंत्र के खिलाफ है, संविधान के खिलाफ है. ये किसी गरीब, पिछड़े, दलित, आदिवासी के लिए नुकसानदायक होगा.

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    जेएनयू का फैसला क्या कानूनी तौर पर टिक पाएगा?

    जेएनयू प्रशासन और यूजीसी को यह साबित करना होगा कि एम फिल और पीएचडी में दाखिले के लिए व्यक्तित्व को आंकने की आखिर क्या जरूरत है. इंटरव्यू के आधार पर एक कोर्स में दाखिले के लिए इतने अंक तय करना बेशक सवाल खड़े करता है.

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    'दंगल' का बापू हानिकारक नहीं, क्रांतिकारक है !

    कामयाबी के बाद मां-बाप को गले लगाते तो देखा है लेकिन कामयाबी से पहले दुनिया के सामने हाथ पकड़ कर खड़े होने वाले पिता कम ही देखे. महावीर में वो ही पिता हम सब देख पा रहे हैं.

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    वो कौन है जो अचानक आकर पत्रकार और भीड़ को डरा कर चला जाता है

    इस बीच जब ये खबर आ रही है कि यूपी सरकार ने कल रवीश कुमार की प्राइम टाइम रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए खोड़ा के एसबीआई बैंक में काउंटर बढ़ा दिए और मोबाइल एटीएम का इंतज़ाम किया है तब मैं पिछले दो दिन की ग्राउंड रिपोर्टिंग के अनुभव को लिखने बैठी हूं.

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    पब्लिक जी, आप सब नहीं जानते हैं

    बुधवार को ही खबर आई कि देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने विजय माल्या की बंद हो चुकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस को दिए 1,200 करोड़ रुपये के कर्ज़ को अपनी बही के बट्टे खाते (वह कर्ज़, जिसकी वसूली संभव न हो) में दर्ज कर लिया है.

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    विचार से न लड़ पाओ तो उसे धारा के खिलाफ खड़ा दिखाओ!

    जेएनयू के छात्रों का विरोध प्रदर्शन इतना 'एलियन' क्यों नजर आता है. क्या आपने सच में देश और दुनिया के विरोध प्रदर्शन नहीं देखे हैं या जानबूझकर किसी नीति के तहत ऐसा कर रहे हैं? घेराव को 'बंधक बनाना' कहकर इतना नकारात्मक दिखाने की क्या वजह है?

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    तीन तलाक़, हलाला, बहुविवाह और 'साइंस'...

    'तीन तलाक़' अगर बंद हो जाएगा तो इससे किसी को भी क्यों परेशानी है? क्या इससे आपके तलाक़ लेने की सहूलियत में बाधा आ रही है? हालांकि कोर्ट में जाकर तलाक़ लेना कोई क़िला फतह करने से कम नहीं, लेकिन हो सकता है शायद इस वजह से भी लोग पूरी कोशिश करने के बाद तलाक़ को आखिरी विकल्प मानें.

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    कभी आप भी सोचकर देखिए, महिलाएं 'राइट' हैं या 'लेफ्ट'...?

    मेरी समझ बनी है कि महिलाओं को कोई एक विचारधारा, खासकर दक्षिणपंथ उतना आकर्षित नहीं करता। इस विचार को अलग-अलग पार्टियों में शामिल महिलाओं से जोड़कर न देखें। यह राजनीति के क़ाबिल न समझी जाने वाली महिला वोटरों के बारे में है, जो चुपके से बदलाव का हिस्सा बन रही हैं।

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    आरक्षण की व्यवस्था को लेकर कैसा भ्रम!

    आप आरक्षण के पक्ष में हो सकते हैं या खिलाफ हो सकते हैं, इसमें कोई समस्या नहीं है। समस्या तब होती है जब आप अपनी बात को गलत तथ्यों के साथ रखते हैं। 'आरक्षण वाला डॉक्टर' एक दुष्प्रचार है। आरक्षण वाला डॉक्टर कोई नहीं होता।

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    आप राष्ट्रवादी हैं या देशप्रेमी? अंतर समझने की करें कोशिश

    जेएनयू में जो भी घटनाक्रम चल रहा है, धीरे-धीरे उसकी असलियत सामने आ जाएगी लेकिन उस घटना के बाद आम लोग इस तरह भड़के हुए हैं कि खुले आम गोली मार देने की बात करने लगे हैं। राष्ट्रवाद और देशप्रेम के अंतर को समझने की कोशिश कीजियेगा।

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    बुर्क़े वाली आदर्श लड़की

    स्कूल के वक़्त मेरे पिता आदर्श लड़की की परिभाषा बताते थे। लड़की जो आंखें झुका कर रहे, सलवार-कमीज़ पहने, फालतू बात ना करे। मैंने आंठवी, नौवीं में ही सूट पहनना शुरू कर दिया था। स्कूल में कभी किसी लड़के से बात करने की हिम्मत तक ना हुई। किसी ने कभी कोशिश भी की तो रोने लगती थी।

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    स्मृति ईरानी की प्रेस-कांफ्रेंस : मीडिया को डपटने से सवाल खत्म नहीं होंगे

    स्मृति ईरानी के बारे में एक बात निर्विवाद कही जा सकती है कि वह जब बोलती हैं और जब कुछ बातें नहीं बोलती हैं, दोनों ही स्थितियों में आत्मविश्वास से लबालब होती हैं। अब यह कहना मुश्किल है कि यह उनके आत्मविश्वास का कमाल है या हमारी पत्रकारिता का कि पत्रकारों के सवाल अधूरे सुनाई पड़ते हैं।

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    आप देखना क्या चाहते हैं, मालदा का कवरेज यहां देखें

    मालदा घटना की कवरेज पर जो लोग सवाल पूछ रहे हैं, वह इसलिए नहीं कि आप एक सजग नागरिक हैं और पत्रकारिता के गिरते स्तर को सुधारना चाहते हैं। बिलकुल भी नहीं। दरअसल आप एक सांप्रदायिक इंसान हैं जो इस घटना की कवरेज को अपने मन-मुताबिक किलो-किलो तौलना चाहते हैं।

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    सर्वप्रिया सांगवान : हम सब आहत हैं

    हर चोट का इलाज दुनिया में है लेकिन ये बार-बार छोटी छोटी बात पर आहत होने वाली भावनाओं वाली बीमारी लाइलाज है। देश अपने कमाने-खाने में व्यस्त है और राजनीति भावनाओं को बचाने में। उसके अलावा मुद्दा है ही क्या।

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    सर्वप्रिया सांगवान : यूपी में है इंडिया का पहला ग्रीन ढाबा

    ये एक संजोग ही है कि विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हमें लखनऊ से दिल्ली के रास्ते पर गजरौला में ये ग्रीन ढाबा दिख गया। नेशनल हाईवे 24 पर मेकडोनाल्डस और केएफसी के साथ स्थित 'भजन' ढाबे को हिंदुस्तान का पहला ग्रीन ढाबा कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि अभी तक यूपी या देश के किसी और हिस्से में हमें ऐसा ढाबा नहीं मिला है।

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    'बींग ह्यूमन' आपने क्या किया सलमान

    कलीम कहता है कि सलमान खान को जेल हो या फांसी हो, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुझे मुआवज़ा चाहिए बस। कलीम उन पीड़ितों में से एक है जिसे 2002 में सलमान खान ने अपनी गाड़ी से कुचल दिया था जब वो रात को फुटपाथ पर सो रहे थे।

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