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This Article is From Oct 14, 2016

तीन तलाक़, हलाला, बहुविवाह और 'साइंस'...

Sarvapriya Sangwan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    October 14, 2016 19:36 IST
    • Published On October 14, 2016 19:36 IST
    • Last Updated On October 14, 2016 19:36 IST
'तीन तलाक़' अगर बंद हो जाएगा तो इससे किसी को भी क्यों परेशानी है? क्या इससे आपके तलाक़ लेने की सहूलियत में बाधा आ रही है? हालांकि कोर्ट में जाकर तलाक़ लेना कोई क़िला फतह करने से कम नहीं, लेकिन हो सकता है शायद इस वजह से भी लोग पूरी कोशिश करने के बाद तलाक़ को आखिरी विकल्प मानें.

संविधान एक नागरिक को अपना धर्म मानने की इजाज़त और आज़ादी देता है लेकिन इसे किसी पर थोपने की नहीं. अगर आप अपने ही धर्म के लोगों को भी कोई रीति-रिवाज़ मानने को मजबूर कर रहे हैं तो वो संविधान के अनुरूप नहीं है. कोई आपको नहीं कह रहा कि पूजा या इबादत मत करिये लेकिन किसी को बेसहारा छोड़ना, या उसका मानसिक उत्पीड़न करना किस धर्म में लिखा है. ज़ाहिर है किसी धर्म में नहीं, लेकिन आप पुराने रिवाजों को अपना धर्म मान बैठे हैं.

तीन तलाक : सुप्रीम कोर्ट नहीं कर सकता फैसला

तीन तलाक के पैरोकार हाल-फ़िलहाल मुस्लिम निकाह और तलाक़ को 'साइंटफिक' यानी वैज्ञानिक पद्धति बता रहे हैं. तीन तलाक़, हलाला, बहुविवाह में क्या 'साइंस' है? ये सामाजिक परंपराएं हैं जो बदलते समाज के साथ बदलनी चाहिए. परिवर्तन में 'साइंस' है. दुनिया के किस धर्म या किस कानून में 'रिफॉर्म' या बदलाव नहीं हो सकता है. ईसाई समाज के गुरु पोप फ्रांसिस भी समलैंगिकों की शादी को मंज़ूरी दे चुके हैं.

हमारे देश के पास कोई आंकड़ा नहीं है ये साबित करने के लिए कि किसने कितनी शादियां कीं या कितनी महिलाओं ने तीन तलाक़ और हलाला का दंश झेला क्योंकि 1961 की जनगणना के बाद शादी पर कोई डेटा इकट्ठा नहीं किया गया है. लेकिन फिर भी ये कोई छुपी हुई बात नहीं है. हालांकि इसी जनगणना के मुताबिक़ बहुविवाह बौद्ध, जैन, हिंदुओं में ज़्यादा था बजाय कि मुस्लिमों में. तो लोगों में ये एक आम ग़लतफहमी है कि मुस्लिम ही कई शादियां करते हैं और ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं. वैसे भी अगर एक पुरुष 4 महिलाओं से शादी कर ले तो मतलब 3 पुरुष तो कुंवारे ही रह गए ना, वो बच्चे पैदा नहीं करेंगे. तो जनसंख्या कैसे बढ़ जायेगी.

तीन तलाक की गैर इस्लामी व्याख्या की जा रही है : नजमा हेपतुल्ला

मेहर को भी एक अच्छी प्रैक्टिस बताया जाता है. लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि ये कोई ऐसी रक़म नहीं है जो तलाक़ के वक़्त की परिस्थिति को देख कर तय होती है. ये निकाह के वक़्त तय होती है. मेहर ससुराल की हैसियत से तय की जाती है. मध्यमवर्गीय परिवारों में कितनी मेहर तय होती होगी. मान लीजिये आज मेहर की रक़म 1 लाख तय की जाती है. शादी के 10 साल बाद आपको तलाक़ देकर बच्चों समेत भगा दिया जाये तो ये रुपये कितने दिन चलेंगे आज से दस साल बाद? आज शायरा बानो अदालत में केस लड़ रही हैं. तीन तलाक़, हलाला और बहुविवाह के खिलाफ. वो तो फिर भी पढ़ी-लिखी हैं लेकिन शादी के 14 साल बाद उन्हें रातों रात निकाल दिया गया घर से. यही नहीं, उन्हें 14 साल घरेलू हिंसा और दहेज़ की लगातार मांग भी झेलनी पड़ी. वो मेहर लेकर क्या कर लेंगी. हालांकि इस्लाम में शादी खत्म करने के तरीके हैं, महिलाओं के हक़ भी तय हैं लेकिन उन्हें इसके बारे में पता नहीं होता है और ना कोई ऐसी अथॉरिटी है जो पुरुष को बाध्य करे सब हक़ देने के लिए. पुरुष प्रधान समाज मुस्लिमों में भी है. अगर ऐसा ना होता तो जो महिलाएं कोर्ट का रुख कर रही हैं उन्हें कोर्ट की ज़रूरत ना पड़ती. महिला को हक़ है कि तीन तलाक़ के बाद वो उसी घर में रहे, उसे बेघर नहीं किया जा सकता. लेकिन क्या पति ऐसा करेगा कि वो उस घर को छोड़ दे? धर्म की आड़ लेकर इन लापरवाहियों को नज़रअंदाज़ मत कीजिये.

रही बात एक तलाक या तीन तलाक़ की. एक तलाक़ के बाद 3 महीने का वक़्त होता है - इद्दत. इस वक़्त में परिवार वाले पति-पत्नी को समझाते हैं और इंसान खुद भी सोचता है. लेकिन परिवार वाले कोर्ट जाने से पहले भी समझाते ही हैं. ये किसी धर्म का हिस्सा नहीं है. ये सामाजिक बात है. 6 महीने तो कोर्ट भी देता है सोचने-समझने के लिए, जाते ही तलाक़ पर बहस नहीं शुरू होती. 6 महीने में सुलह हो जाती है तो तलाक़ नहीं होता है.

तीन तलाक़ ना मीडिया ने उठाया था और ना भाजपा ने. इसे इस तरह की वजहें बताकर खारिज ना करें. ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. बाकी याचिकाओं के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर जनहित याचिका को 'एडमिट' किया है. यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति चाहिए लेकिन अभी तक ये सिर्फ चुनावी मुद्दा ही बना है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार भी इसे लाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा पायी थी. ये हो-हल्ला किसलिए हो रहा है, ये समझना मुश्किल नहीं है.

लेकिन इसमें अगर कोई राजनीतिक जीत खोज रहा है तो फिर बाकी धर्मों को भी अपने अंदर झांक लेना चाहिए. जैन लोगों की एक धार्मिक परंपरा संथारा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है. क्या जैन धर्म के लोग समर्थन देंगे? हिन्दू महिला को पिता की संपत्ति में अधिकार देने के फैसले पर भी हिंदुओं में आम सहमति नहीं थी.

कानून तो बहुत हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं कि परंपरा उससे मर जाती है. कानून तो अंतर्जातीय विवाह की इजाज़त देता है लेकिन क्या सब लोगों ने इसे अपना लिया है? दहेज को भी प्रतिबंधित कर दिया है लेकिन क्या लोग अब भी दहेज़ लेते और देते नहीं हैं? गलत परंपराओं की लड़ाई लंबी होती है और कानून एक मज़बूत हथियार होता है लड़ने के लिए. इसलिए तीन तलाक़, हलाला, बहुविवाह पर कानूनी प्रतिबंध ज़रूरी है.

(सर्वप्रिया सांगवान एनडीटीवी में एडिटोरियल प्रोड्यूसर हैं)

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