कुछ साल पहले एक फिल्म देखने के दौरान राष्ट्रगान बजा तो रोहतक के थिएटर हॉल में सिर्फ तीन लड़कियां खड़ी हुईं। मैं और मेरा परिवार बैठा रहा। मेरे पापा ने जब ये देखा तो उन्हें महसूस हुआ। उन्होंने मुझे बताया कि देखो, सिर्फ तीन लड़कियां खड़ी हुईं। हम सभी को ये बात इतनी छू गयी कि उसके बाद से गणतंत्र दिवस की परेड के बाद बजने वाले राष्ट्रगान पर घर में भी खड़े हो जाते थे। 3 लड़कियों ने सिर्फ अपना फ़र्ज़ निभाकर दूसरों को फर्ज़ निभाने के लिए प्रेरित कर दिया। प्रेम कोई भी हो, महसूस होने की चीज़ है। मार-पीट कर महसूस नहीं करवाया जा सकता, आप ऐसा करते हैं तो आप किसी कुंठा के शिकार हैं जिसके बारे में शायद आप ही पता लगा पाएं।
भारत के संविधान की प्रस्तावना में साफ़-साफ़ कुछ शब्द लिखे हैं। जिस किसी ने दसवीं तक भी पढ़ाई की है, वो इससे वाकिफ़ होगा। प्रस्तावना में लिखा है कि हम समाजवादी हैं, हम धर्मनिरपेक्ष हैं, हम लोकतांत्रिक हैं। तो समझिए कि इनमें से किसी भी बात को गाली देने वाला राष्ट्र का अपमान कर रहा है। लेकिन हम लोग इस अपमान को नज़रअंदाज़ करते आ रहे हैं। अपने देश में न्याय और बराबरी के लिए लड़िये और अच्छे नागरिक के फ़र्ज़ पूरे करिये, संविधान में लिखे गए कर्तव्यों को निभाइए। संविधान में लिखे कर्त्तव्य भी थोपे नहीं जा सकते हैं। कोई भारत की जय नहीं बोले तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है लेकिन किसी के साथ मार-पीट करने पर आप कानून की नज़र में दोषी ज़रूर होते हैं। आप ऐसी मानसिकता रखते हैं या ऐसा काम करते हैं तो आप बिलकुल राष्ट्र का अपमान कर रहे हैं। इस प्रस्तावना में कहीं भी राष्ट्रवादी होने का ज़िक्र नहीं है। अगर आप किसी पर राष्ट्रवादी होने का दबाव बना रहे हैं तो ये वैसा ही है जैसे आप लड़कियों को कपड़े पहनने की तमीज़ सीखा रहे हैं।
भारत के ज़्यादातर नागरिक अपने देश से प्यार करते हैं, देश के खिलाड़ी अच्छा खेलते हैं तो खुश होते हैं, गर्व करते हैं। ये देशप्रेम है। वही खिलाड़ी अगर बुरा प्रदर्शन करें और आपका घमंड इस तरह चूर-चूर हो जाये कि आप उसके घर पर पत्थर फेंकने लगें तो ये राष्ट्रवाद है। अगर आप समझते हैं कि हम एक अच्छे देश में पैदा हुए तो ये आपका देशप्रेम है, अगर आप समझते हैं कि बाकी देश घटिया हैं तो आप राष्ट्रवादी हैं।
देश का मतलब देश के नक़्शे से प्रेम करना नहीं होता। देश सरहद का नाम नहीं है। देश लोगों से बनता है। जिन्होंने 'एयरलिफ्ट' फिल्म देखी है, उनके लिए भी ये बात समझना आसान है कि रणजीत किसी देश को नहीं बचा रहा था, लोगों को बचा रहा था, उन्हें भी जो उसे बुरा-भला कह रहे थे। राष्ट्र के लिए प्रेम कभी मानवता के बिना नहीं आ सकता।
जिनमें देशप्रेम ज़्यादा जागृत होता दिख रहा है, क्या वो किसी लड़की पर गलत बयानबाज़ी या छेड़खानी पर आवाज़ उठाने की हिम्मत रखते हैं? प्रदूषण ख़त्म करने के लिए भी क्या कभी एकता दिखाते हैं? रिश्वत देने की बजाय लड़ना पसंद करते हैं? कोई फांसी पर लटकता है तो क्या एक बार रुक कर सोचते हैं कि उसके परिवार का अब क्या हो रहा होगा? ज़रा एक बार अपने घर के किसी सदस्य की मौत या उसके साथ हुए अन्याय के बारे में सोचिये। अगर आपके देश के लोगों को अब भी न्याय सुलभ नहीं है तो आपको चिंता करनी चाहिए। अगर आपके देश में एक गरीब व्यक्ति को जेल में डाल दिया जाये और रसूख वाले व्यक्ति आराम से निकल जाएं तो आपको भयभीत होना चाहिए।
हमारा टैक्स किसी पर एहसान नहीं है। हमारे लिए सरकार की सुविधाएं भी एहसान नहीं हैं। इस देश की एक अर्थव्यवस्था है और सभी लोग किसी ना किसी तरह इस देश को चला रहे हैं। रही बात सुरक्षा की तो कुछ सरहद पर और कुछ सरहद के अंदर हमारी रक्षा कर रहे हैं और वो सभी आदर के लायक हैं। जो अपना काम भी ईमानदारी से नहीं करते, वो अपने अंदर देशप्रेम को ज़रूर टटोलें। जिस दिन सरकार आपको रोटी मुहैया नहीं करवा पायेगी, साफ़ पानी उपलब्ध नहीं करवा पायेगी, 10 घंटे के लिए बिजली काटने लगेगी, सोचियेगा कि क्या तब आप इस देश के सिस्टम पर सवाल उठाएंगे या नहीं। क्या आपने कभी सवाल उठाएं हैं या नहीं? सवाल उठाते हैं तो आप देशद्रोही नहीं हो जाते हैं। इस देश में हर तरह के असामाजिक तत्व हैं, अपराधी हैं, बलात्कारी हैं, भ्रष्टाचारी हैं, दंगाई हैं। इनके होने से भी इस देश के टुकड़े नहीं हुए और किसी के नारे लगाने से भी नहीं होंगे।
जब दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय भी अपने देश से लगाव रखते हैं तो यहां रहने वाले भी ज़रूर रखते होंगे। जो देश के बारे में ज़्यादा बात नहीं करते वो भी और जो देश की कमियों के बारे में बात करते हैं वो भी। दूसरे देशों की नागरिकता वाले भारतीय जब भारत की क्रिकेट टीम की जीत पर तालियां बजाते हैं तो उन पर देशद्रोह का मुक़दमा तो नहीं ठोक दिया जाता। इस मामले में पाकिस्तान से बराबरी क्यों करना चाहते हैं आप?
बाकी देशों की तरह हमारे देश में भी कमियां हैं, इस पर बात होनी चाहिए ताकि उन्हें दूर किया जा सके। सवा सौ करोड़ भारतीय मिल कर चीख लें कि भारत एक महान देश है, तब भी दुनिया उसे महान नहीं मान लेगी।
किसी के इशारों पर मत नाचिये, कोई सरकार या पार्टी हमें नहीं सीखा सकती कि देश से लगाव रखना क्या होता है। किसी किताब में नहीं लिखा कि देशप्रेम क्या होता है और कितनी मात्रा में होता है। राजनीति के लिए धर्म और राष्ट्रवाद तो हथियार रहा है, दुनिया का इतिहास इसका गवाह है। जब बात सत्ता की आती है तो अपराधियों से भी समझौते कर लिए जाते हैं। हम लोग नासमझी में किसी का एजेंडा पूरा करने लगते हैं। इतना ही प्रेम राजनीति ने देश से किया होता तो घोटाले और अन्याय जैसे शब्द हमें याद ना रहते। अगर कानून की नज़र में कोई दोषी है तो उसे सज़ा ज़रूर मिले लेकिन आप देश के प्रति कम-ज़्यादा भावना होने के नाम पर मत बंट जाइये।
(सर्वप्रिया सांगवान एनडीटीवी में एडिटोरियल प्रोड्यूसर हैं)
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