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This Article is From Jun 05, 2015

सर्वप्रिया सांगवान : यूपी में है इंडिया का पहला ग्रीन ढाबा

Sarvapriya Sangwan
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 05, 2015 17:46 pm IST
    • Published On जून 05, 2015 16:38 pm IST
    • Last Updated On जून 05, 2015 17:46 pm IST
ये एक संजोग ही है कि विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हमें लखनऊ से दिल्ली के रास्ते पर गजरौला में ये ग्रीन ढाबा दिख गया। नेशनल हाईवे 24 पर मेकडोनाल्डस और केएफसी के साथ स्थित 'भजन' ढाबे को हिंदुस्तान का पहला ग्रीन ढाबा कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि अभी तक यूपी या देश के किसी और हिस्से में हमें ऐसा ढाबा नहीं मिला है।

किसी ढाबे की या रेस्तरां की ज़्यादा तारीफ़ आपने उसके खाने के बारे में ही सुनी होगी। लेकिन भजन ढाबे की खासियत इसके आर्किटेक्चर से शुरू होती है। 'लॉरी बेकर' स्टाइल आर्किटेक्चर में दीवारों के अंदर स्पेस रखा जाता है, जिससे ये हवा या गर्मी को ट्रैप नहीं करती और इसलिए गर्मियों में कमरे का तापमान ठंडा और सर्दियों में गरम रहता है। इतनी गर्मी में भी इस जगह आप सिर्फ पंखे के सहारे आराम से बैठ सकते हैं।



पूरे ढाबे में कहीं भी सरिये का इस्तेमाल नहीं किया गया है। ईंटों की छतों को कर्व देकर इस तरह बनाया गया है ताकि सारा भार दोनों तरफ 'बीम' पर पड़े और सरिये की ज़रूरत ना पड़े। सीमेंट के कम से कम इस्तेमाल के लिए घड़ों का ढक्कन बीच-बीच में लगाया गया है जो सीमेंट की बचत के साथ-साथ इसे एक खूबसूरत डिज़ाइन भी बनाता है।

हर जगह पुरानी लकड़ी लगायी गयी है। पुराने घरों से निकले दरवाज़े फिट किए गए हैं। पुरानी ईंटे काम में लायी गयी हैं। क्योंकि इसका आर्किटेक्चर भारत में आम नहीं है, इसलिए इसके लिए पहले मज़दूरों को ट्रेनिंग दी जाती थी और फिर बनाना शुरू किया जाता था।

इससे ज़्यादा खालिस खाना आप और कहां खाएंगे, जब ढाबे के पीछे पड़ी खाली ज़मीन पर उगाई सब्जियां सीधे ढाबे के खाने के लिए इस्तेमाल होती हैं। बचे हुए खाने को बायो गैस बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसी बायो गैस से ढाबे की दो-तिहाई गैस की आपूर्ति हो जाती है।


ढाबे के मालिक विक्रमजीत सिंह बेदी का दावा है कि ये बायो गैस प्लांट उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा बायो गैस प्लांट है। बायो गैस से निकली खाद फिर पीछे उगाई सब्जियों के काम आती है। साथ ही एक रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम भी है जो बारिश के पानी का संचय करता है। शौचालयों और सफाई के लिए रीसाईकल किये पानी का इस्तेमाल होता है। अनुमान है कि अगले कुछ सालों में बारिश के पानी के संचय से ज़मीन का ग्राउंड वाटर लेवल 3-4 फ़ीट ऊपर आ जायेगा। ढाबे में सन विंडो लगायी गयी हैं ताकि सूरज छिपने तक यहां छोटा सा बल्ब जलाने की भी ज़रूरत नहीं पड़े और इस तरह तकरीबन 30% बिजली बचा ली जाती है।



विक्रमजीत ने बताया कि इस तरह के उनके 3 और ढाबे हैं। लेकिन वहां पर अभी सिर्फ इस तरह की रसोई ही काम में लायी जाती है। 1969 से उनके पिता के वक़्त से ये ढाबे अस्तित्व में हैं। इस ग्रीन ढाबे का पिछले साल अक्टूबर में उद्घाटन किया गया लेकिन अभी उनका काम पूरा नहीं हुआ है। वो इस ढाबे में अभी कई और नए प्रयोग करना चाहते हैं। विक्रमजीत के पिता का कहना था कि जिस ज़मीन ने इतना दिया है, उसे ज़्यादा से ज़्यादा लौटाया जाये।

विक्रमजीत की मां मधु चतुर्वेदी हिंदी की मशहूर कवयित्री भी हैं। लोगों को अच्छा खाना खिलाने के साथ-साथ ये परिवार लोगों को अपने ढाबे के बारे में ख़ुशी-ख़ुशी बताता भी है और चाहता है कि बाकी लोग भी इस तरह की शुरुआत करें।

भजन ढाबा सिर्फ खाने की जगह नहीं, बल्कि पर्यावरण की एक पाठशाला भी है। विक्रमजीत सिंह बेदी ने कुछ स्कूलों से अनुरोध भी किया है कि वो अपने विद्यार्थियों को यहां लाएं ताकि वो छोटी उम्र से ही पर्यावरण और ऊर्जा संचय के बारे में सीख सकें।

अपनी सोच और लगन से इतना सब करने के बाद भी ये परिवार इस ढाबे में बिजली के लिए बिजली विभाग के चक्कर लगा रहा है। लेकिन पिछले 15 महीने से इन्हें बिजली नहीं मिल पायी है। कारण आप समझ ही गए होंगे। पर्यावरण दिवस पर अब पर्यावरण के लिए सिर्फ सोचना और बोलना ही काफी नहीं बल्कि बेदी परिवार की तरह कुछ नए सकारात्मक कदम उठाने की भी ज़रूरत है।

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