'बींग ह्यूमन' आपने क्या किया सलमान

नई दिल्‍ली:

कलीम कहता है कि सलमान खान को जेल हो या फांसी हो, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मुझे मुआवज़ा चाहिए बस। कलीम उन पीड़ितों में से एक है जिसे 2002 में सलमान खान ने अपनी गाड़ी से कुचल दिया था जब वो रात को फुटपाथ पर सो रहे थे। इस दुर्घटना में 4 लोग घायल हुए थे और एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी। कलीम की बात से ज़ाहिर है कि लोगों के लिए इन्साफ के कितने अलग-अलग मायने हैं या शायद कोर्ट की तारीखें बदलते-बदलते ये मायने भी बदल जाते हैं।

सलमान खान के लिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ग़मगीन है। लोगों की भावनाएं फेसबुक, ट्विटर पर उमड़ रही हैं। फिल्म में हीरो का किरदार करने वाले व्यक्ति को लोग असल में भी हीरो ही मानते हैं। हमारे लिए वो इन्साफ से भी ऊपर है। जब छवि टूटती है तो अपने अंदर भी कुछ टूटता है। शायद इसलिए हम कोई छोर तलाशते रहते हैं जिसको पकड़ कर हम उस छवि को टूटने से बचा लें। अपने मन को तसल्‍ली देते रहें।

कितने ही लोग सलमान के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, उनके बचाव में पीड़ितों को गाली देकर कह रहे हैं कि फुटपाथ पर सोने वाले ऐसी ही मौत मरते हैं। फुटपाथ सोने के लिए नहीं है तो गाड़ी चढ़ाने के लिए भी नहीं होता है। हमारे हीरो को ये क्यों नहीं पता होता है कि शराब पीकर गाड़ी चलाना कानूनन जुर्म है। आप इतने रईस हैं, क्या आपके घर एक ड्राइवर भी नहीं था! फुटपाथ पर सोने वालों से सवाल करने वाले अपनी सरकारों से सवाल कीजिये कि बेघरों के लिए वो क्या करती है?

गलती तो हीरो से भी हो सकती है। लेकिन गलती करके बचने के रास्ते खोजने वाला किसका हीरो है? सलमान खान ने शराब पीकर गाड़ी चलायी, बिना लाइसेंस के गाड़ी चलायी और नशे में कुछ लोगों को घायल कर के भाग गए। फिर 13 साल तक मानसिक तनाव के साथ बचने के रास्ते खोजते रहे।  आखिर में ड्राइवर को भी फंसाने की कोशिश की।

सोचिये, अगर सलमान खान वहां से ना भागते, घायलों को अस्पताल पहुंचा देते और खुद को पुलिस के हवाले करके कोर्ट के सामने अपनी गलती क़ुबूल करते हुए पीड़ितों की ज़िम्मेदारी उठाते तो क्या होता? आज कोर्ट ने उन्हें अधिकतम सज़ा ना देते हुए केवल 5 साल की सज़ा दी है। ये कम हुई सज़ा भी उन्हें अपनी 2007 में बनी 'बींग ह्यूमन' संस्था के कामों को मद्देनज़र रखते हुए दी गयी है।

ये भी ध्यान रहे कि ये संस्था 2007 में बनी थी और तब तक 'काले हिरण' का मामला और 'हिट एंड रन' मामलों पर उन पर मुक़दमे पहले से चल रहे थे। इंडस्ट्री में भी अपने साथी कलाकारों के साथ बदसलूकी के किस्से भी सुर्खियां बन चुके थे। अगर 2002 में उन्होंने अपनी गलती मान ली होती तो कोर्ट शायद उन्हें 3 साल की सज़ा ही देता और उन्हें जेल ना जाना पड़ता। इस भयंकर मानसिक तनाव को 13 साल तक ना ढोते। मीडिया और मेरे जैसे कई लोगों के वो हीरो होते। लेकिन हम लोग अपने ज़मीर से ज़्यादा अपने वकीलों पर भरोसा करते हैं।

इस पूरे मामले में एक गवाही थी कमाल खान की। गायक होने के साथ-साथ वो सलमान खान के रिश्तेदार भी हैं। हादसे की रात वो सलमान के साथ थे और उन्होंने अब तक सिर्फ एक ही बार गवाही दी है जिसमें उन्होंने क़ुबूल किया है कि उस रात सलमान खान गाड़ी चला रहे थे। अपने भाई के खिलाफ सच बोलने वाले कितने हैं? क्या सलमान खान उनसे बड़े हीरो हैं?

आपने पसंदीदा शख्स के लिए हमदर्दी होना कोई बुरी बात नहीं है। मीडिया ने जिस तरह की कवरेज इस फैसले के दिन को दी है, उससे तो सलमान खान को पसंद ना करने वाले के दिल में भी हमदर्दी पैदा हो जाएगी। जो दिखेगा वही तो बिकेगा। उन पीड़ितों को कौन जानता है। वो फटेहाल लोग हमारी हीरो की इमेज में फिट नहीं बैठते। वो बेचारे तो खुद भी इन्साफ को पैसों से तोलते हैं जैसे कि हमारे नेता। लेकिन मैं और आप किसी कसूरवार को माफ़ करने वाले कौन होते हैं? ये हादसा हमारे साथ नहीं हुआ है। खुदा ना खास्ता ऐसा कोई हादसा हमारे  मां-बाप, भाई के साथ हो तो क्या अपने हीरो को माफ़ कर पाएंगे आप?

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जहां तक कड़े सन्देश जाने की बात है तो इस पॉइंट को छोड़ ही दिया जाए तो बेहतर है। निचली अदालतों में बड़े-बड़े नेताओं और अभिनेताओं के खिलाफ भी फैसले आए हैं। कुछ ज़मानत पर बाहर बैठे हैं और कुछ पेरोल या तबियत के बहाने अंदर-बाहर तो होते रहते हैं। जैसा कि मैंने कहा.…तारीखों के साथ इन्साफ के मायने भी बदल जाते हैं। सब थक जाते हैं। सलमान बींग ह्यूमन गलतियां होती रहती हैं, पर बींग ह्यूमन आपको अपने ज़मीर की सुनकर गलती वक़्त रहते सुधार लेनी चाहिए थी।