जेएनयू के छात्रों का विरोध प्रदर्शन इतना 'एलियन' क्यों नजर आता है. क्या आपने सच में देश और दुनिया के विरोध प्रदर्शन नहीं देखे हैं या जानबूझकर किसी नीति के तहत ऐसा कर रहे हैं? घेराव को 'बंधक बनाना' कहकर इतना नकारात्मक दिखाने की क्या वजह है? वीसी साहब तो बोलेंगे ही, लेकिन राजनीति और छात्र राजनीति पर लिखने-बोलने वालों को यह कौन सा नया शब्द ज्ञान आया है. क्या यह ज्ञान 2014 के बाद आया है. 2013 में दिल्ली में एक 5 साल की बच्ची के रेप के बाद एबीवीपी, एसएफआई वाले तब के गृहमंत्री शिंदे और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर का घेराव कर रहे थे, तब मंत्री किरेन रिजिजू ने इन छात्रों को पढ़ाई करने की नसीहत क्यों नहीं दी?
जेएनयू के वाइस चांसलर को बंधक नहीं बनाया गया, वे चाहते तो छात्रों पर पैर रखकर निकल जाते. लेकिन शायद उनकी अंतरात्मा उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दे पाई. वर्ष 1989 में चीन सरकार की नीतियों के खिलाफ और लोकतंत्र के लिए जब हजारों छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो एक छात्र युद्ध टैंक के सामने आकर खड़ा हो गया. इस घटना का वीडियो रोंगटे खड़े कर देता है. टैंक में बैठा सिपाही भी उसे कुचलकर आगे नहीं बढ़ सका था. हालांकि इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों छात्र मारे गए थे.
सितंबर 2013 में जादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों ने वीसी, रजिस्ट्रार का 51 घंटे तक घेराव किया था. कालीकट विश्वविद्यालय की छात्राओं ने प्रशासन भवन का 24 घंटे तक घेराव किया था. 2013 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी यही तरीका अपनाया. छात्रों का काम पढ़ना है तो फिर छात्र राजनीति बंद कर दीजिए. सिर्फ जेएनयू की ही क्यों? एबीवीपी और एनएसयूआई कौन सा समाज कल्याण का काम कर रहे हैं? सभी को लगाओ किताबों में.
आए दिन बीजेपी, कांग्रेस किसी के घर का घेराव करती रहती हैं, बंद बुलाती रहती हैं, काम चौपट कर देती हैं. बीजेपी ने कुछ दिन पहले ही ओडिशा विधानसभा का घेराव किया. अभी मनसे मल्टीप्लेक्स के शीशे तोड़ने की बात खुले आम कर रही है. राजनीति तो आपके सेलेक्टिव विरोध में है.
आजाद देश की सरकारों ने देश में शिक्षा को सिर्फ नौकरी पाने की चाबी बना दिया है. शायद यह इसी शिक्षा पद्धति का नतीजा है कि आज लोगों के दिमाग में बड़ी उम्र में पढ़ाई करने का आइडिया चुटकुले बनाने की चीज है. जेएनयू इस बात पर भी लोगों को 'एलियन' नजर आता है जबकि लाखों लोग नौकरी के साथ या उम्र के किसी पड़ाव में किसी ने किसी विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं.
प्रिंसटन विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंट ने इंडियन एक्सप्रेस से एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर छात्र ओसामा बिन लादेन के लिए किसी शोक सभा का भी आयोजन करते तो वे उसे नहीं रोकते. जब इस देश में एक हत्यारे नाथूराम गोडसे की मूर्ति लगने की इजाजत है तो अफजल गुरु का नाम लेने से पूरे देश में इतना रोष क्यों पैदा किया गया जेएनयू को लेकर.
जेएनयू में नजीब अहमद नाम का छात्र सात दिन से लापता है. ऐसे में किसी छात्र के लापता होने पर और कार्रवाई में लापरवाही बरतने पर आवाज उठाना कौन सी राजनीति की बात हो गई. यूं तो हम रोज अपनी समस्या को लेकर लिखते-बोलते हैं तो क्या हम राजनीति कर रहे हैं? विश्वविद्यालयों में पढ़े हों तो पता होगा कि छात्र वॉटर कूलर न लगने से वीसी, रजिस्ट्रार के घर के सामने धरना दे देते हैं. किसी टीचर को हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन करते हैं. किसी को 20 दिन बिना कसूर के जेल भेज दीजिए या 27 साल जेल भेज दीजिए तो कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन एक वाइस चांसलर को अपने ऑफिस में कुछ घंटे रहना पड़े तो खबर लापता छात्र से बदलकर वीसी को बंधक बनाने पर हो गई. यह भी इसी विश्वविद्यालय में हुआ था कि पुलिस ने भारत विरोधी नारों को लेकर वीसी और रजिस्ट्रार से पूछताछ नहीं की, वरना ऐसे मामलों में प्रशासन जवाबदेह होता है. अब यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि जानबूझकर एक संस्थान की प्रतिष्ठा गिराने के लिए यह किया जा रहा है. जब विचार से न लड़ पाओ तो उसे धारा के खिलाफ खड़ा दिखाओ.
(सर्वप्रिया सांगवान एनडीटीवी में एडिटोरियल प्रोड्यूसर हैं)
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This Article is From Oct 21, 2016
विचार से न लड़ पाओ तो उसे धारा के खिलाफ खड़ा दिखाओ!
Sarvapriya Sangwan
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 21, 2016 20:25 pm IST
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Published On अक्टूबर 21, 2016 18:34 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 21, 2016 20:25 pm IST
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