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This Article is From Jan 25, 2017

जेएनयू का फैसला क्या कानूनी तौर पर टिक पाएगा?

Sarvapriya Sangwan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 25, 2017 00:03 am IST
    • Published On जनवरी 25, 2017 00:03 am IST
    • Last Updated On जनवरी 25, 2017 00:03 am IST
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने तय किया है कि अब एम फिल और पीएचडी कोर्स में दाखिले के लिए एक क्वालीफाइंग परीक्षा होगी और उसके बाद उम्मीदवार का चयन इंटरव्यू के आधार पर होगा. विश्वविद्यालय का कहना है कि ये फैसला यूजीसी के नोटिफिकेशन के आधार पर लिया गया है. अब तक जो प्रवेश परीक्षा होती थी उसमें 70% अंक लिखित परीक्षा के लिए रखे गए थे और 30% मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के लिए. लेकिन अब आपको पहला पेपर सिर्फ 50% अंकों के साथ क्वालीफाई करना है और उसके बाद चयन सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर होगा यानी एक तरह से मौखिक परीक्षा के लिए 100% अंक रखे गए हैं. अगर यह यूजीसी का आदेश है तो बाकी केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर भी लागू होगा.

हालांकि जेएनयू यूजीसी के सामने इस फैसले पर दोबारा गौर करने के लिए कह सकता था लेकिन जेएनयू ने इसे अपनाना बेहतर समझा. जेएनयू के इस फैसले को लिए जाने के वक्त जब कुछ छात्रों ने इसका विरोध किया तो नौ छात्रों को सस्पेंड भी कर दिया गया. जेएनयू के शिक्षक संगठन ने भी इसका विरोध किया है. फिलहाल पीएचडी का ही एक छात्र दिलीप यादव भूख हड़ताल पर है क्योंकि उनका मानना है कि इंटरव्यू में भेदभाव होने की काफी गुंजाइश है और यह गरीब और शोषित छात्रों के लिए नुकसानदेह है.

अभी तक यह पता नहीं है कि इस फैसले के खिलाफ सिर्फ विरोध प्रदर्शन ही हो रहा है या कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया गया है. भेदभाव होने की गुंजाइश और इंटरव्यू के लिए इतने अंक तय करने को सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मुकदमों में अनुचित ठहराया है.

अजय हसिया आदि बनाम खालिद मुजीब सेहरावती और अन्य - 13 नवंबर 1980'
इस केस में जम्मू- कश्मीर के एक स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश परीक्षा को लेकर याचिका दाखिल की गई. इस याचिका पर अपने फैसले में कोर्ट ने लिखा जिसका हिंदी अनुवाद कर रही हूं-
"इसमें कोई शक नहीं कि एक उम्मीदवार की क्षमता को मापने के लिए मौखिक परीक्षा कोई संतोषजनक परीक्षा नहीं है. लेकिन किसी के व्यक्तित्व को आंकने का कोई और बेहतर विकल्प अगर नहीं है तो मौखिक परीक्षा को फिलहाल तर्कहीन या व्यर्थ नहीं माना जा सकता हालांकि यह 'सब्जेक्टिव' है और 'फर्स्ट इम्प्रैशन' पर आधारित होता है. इसके नतीजे बहुत सी वजहों से प्रभावित भी हो सकते हैं और इसका दुरुपयोग भी संभव है. किसी कॉलेज में दाखिले के लिए या किसी सरकारी नौकरी के लिए भी मौखिक परीक्षा पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता. हां, इसे अतिरिक्त परीक्षा के तौर पर रखा जा सकता है. साथ ही बहुत ध्यान देना होगा कि जो लोग इंटरव्यू ले रहे हैं वे ईमानदार, सक्षम और योग्य हों. यह देखते हुए कि मौखिक परीक्षा में क्या नुकसान और कमियां हैं और साथ ही देश में जो स्थिति हैं, जहां नैतिकता गिर रही है और भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बढ़ रहा है, ऐसे वक्त में मौखिक परीक्षा के लिए लिखित परीक्षा से ज्यादा अंक रखना 'आरबिटरेरी' है, यानी एक मनमाना फैसला है. 15% से ज्यादा अंक इंटरव्यू के लिए रखना अनुचित है."

प्रवीण सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य - 10 नवंबर 2000
इस केस में पब्लिक सर्विस कमीशन ने पंचायत अधिकारी के चुनाव के लिए एक 'क्वालीफाइंग' पेपर रखा जिसमें उम्मीदवार को कुल 45% नंबर लाने थे और उसके बाद चयन के लिए इंटरव्यू के 50 नंबर को तरजीह दी गई. यानी इंटरव्यू के आधार पर उम्मीदवार को चुना जाना था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा, "मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू को चयन का एकमात्र जरिया बनाए जाने में हमेशा संदेह की गुंजाइश होती है. आपने 400 नंबर का क्वालीफाइंग पेपर क्यों रखा जब इंटरव्यू के 50 नंबर ही चयन का आधार हैं. कोर्ट की नजर में यह उचित नहीं है."

कानूनी तौर पर इस फैसले के टिक जाने की गुंजाइश कम ही है. लेकिन इंटरव्यू में भ्रष्टाचार होने की बात को प्रधानमंत्री भी मान चुके हैं. अक्टूबर 2015 में अपने मन की बात कार्यक्रम में उन्होंने केंद्र सरकार के ग्रुप ‘डी’, ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘बी के पदों में इंटरव्यू की प्रक्रिया को खत्म करते हुए बताया,"मैंने 15 अगस्त को लाल किले से यह कहा था कि कुछ बातें हैं जहां भ्रष्टाचार घर कर गया है. गरीब व्यक्ति जब छोटी-छोटी नौकरी के लिए जाता है, किसी की सिफारिश के लिए पता नहीं क्या-क्या उसको कष्ट झेलने पड़ते हैं और दलालों की टोली कैसे-कैसे उनसे रुपये हड़प लेती है. नौकरी मिले तो भी रुपये जाते हैं, नौकरी न मिले तो भी रुपये जाते हैं. सारी खबरें हम सुनते थे...और उसी में से मेरे मन में एक विचार आया था कि छोटी-छोटी नौकरियों के लिए इंटरव्यू की क्या जरूरत है. मैंने तो कभी सुना नहीं है कि दुनिया में कोई ऐसा मनोवैज्ञानिक है जो एक मिनट, दो मिनट के इंटरव्यू में किसी व्यक्ति को पूरी तरह जांच लेता है...और इसी विचार से मैंने घोषणा की थी कि क्यों न हम ये छोटी पायरी की नौकरियां है, वहां पर, इंटरव्यू की परम्परा खत्म करें.''

कम से कम 18 राज्यों ने जूनियर लेवल पोस्ट के लिए इंटरव्यू को खत्म कर दिया है. यूपीएससी की परीक्षा में भी क्वालीफाइंग पेपर होता है लेकिन उसके बाद लिखित परीक्षा और इंटरव्यू भी होता है. इंटरव्यू के लिए लिखित परीक्षा से कम अंक रखे गए हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी खास पद के लिए इंटरव्यू को तरजीह दी जाती है जहां उस पद के लिए व्यक्तित्व का आकलन बेहद जरूरी हो. लेकिन जेएनयू प्रशासन और यूजीसी को यह साबित करना होगा कि एम फिल और पीएचडी में दाखिले के लिए व्यक्तित्व को आंकने की आखिर क्या जरूरत है. इंटरव्यू के आधार पर एक कोर्स में दाखिले के लिए इतने अंक तय करना बेशक सवाल खड़े करता है.


(सर्वप्रिया सांगवान एनडीटीवी में एडिटोरियल प्रोड्यूसर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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