स्मृति ईरानी के बारे में एक बात निर्विवाद कही जा सकती है कि वह जब बोलती हैं और जब कुछ बातें नहीं बोलती हैं, दोनों ही स्थितियों में आत्मविश्वास से लबालब होती हैं। अब यह कहना मुश्किल है कि यह उनके आत्मविश्वास का कमाल है या हमारी पत्रकारिता का कि पत्रकारों के सवाल अधूरे सुनाई पड़ते हैं।
बुधवार को स्मृति ईरानी ने मीडिया को बुलाकर दावा किया कि वे सिर्फ 'तथ्य' पेश कर रही हैं। स्मृति जी ने सबसे पहले 4 अगस्त को दर्ज हुई एक एफआईआर का जिक्र करते हुए बताया कि अम्बेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन के छात्रों ने एक दूसरे छात्र पर हमला किया। अपनी पूरी कांफ्रेंस में वे बताना भूल गईं कि जिस छात्र पर हमला हुआ, वह किस छात्र संगठन का है। सुशील कुमार के फेसबुक पेज पर आपको सबसे पहले नजर आएगा कि वे आरएसएस के लिए काम करते हैं। आरएसएस के लिए काम करना कोई अपराध नहीं है, लेकिन आपका इस बात को उजागर न करने के पीछे क्या कारण रहा होगा, यह शायद सब समझते हैं।
आप बार-बार जोर देकर बता रही हैं कि पीड़ित छात्र सुशील कुमार 'ओबीसी' यानी पिछड़ी जाति से आता है। क्या आप इससे यह साबित करना चाहती हैं कि पिछड़ा और दलित में कोई सामाजिक फर्क नहीं होता और राजनीति ने दोनों को एक ही श्रेणी में रखकर अपनाया है?
आपने सिर्फ और सिर्फ 'तथ्य' रखने की बात कहते हुए रोहित का आखिरी खत सबको दिखाया और कहा कि उसने किसी पर इलज़ाम नहीं लगाया है। ठीक है, क्या आपने वह याचिका पढ़ी है जो रोहित ने सब इंस्पेक्टर को लिखी है और कहा है कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है? क्या आपने वह खत भी पढ़ा है जो रोहित ने कुलपति को लिखा है और दलितों के साथ भेदभाव की बात लिखी है? क्या आपने वह रिपोर्ट भी मांग ली है जिसके आधार पर 5 छात्रों को सजा हुई। एक रिपोर्ट है जिसमें विश्वविद्यालय का बोर्ड नकार रहा है कि पिटाई का कोई गवाह या सबूत नहीं, मेडिकल रिपोर्ट का भी उससे कोई लिंक नहीं। दूसरी रिपोर्ट दो महीने बाद आती है और एकदम से सब बदल जाता है। क्या आपने देखा है कि दोनों रिपोर्ट में क्या अंतर है और क्यों है? क्या यह सब "तथ्य" की श्रेणी में नहीं आता है? आपने शुरुआत में ही कहा है कि यूनिवर्सिटी ने आपको यह जानकारी दी है, तो फिर आपने एकतरफा जवाब को तथ्य कैसे मान लिया?
अभी पुलिस की जांच-रिपोर्ट नहीं आई, आपकी भेजी हुई फैक्ट-फाइंडिंग टीम भी वापस नहीं आई और उससे पहले ही आपने कह दिया कि आपके पास तथ्य हैं और यह कोई दलित शोषण से जुड़ा केस नहीं है।
एक पत्रकार के पूछने पर आपने कहा कि आप वहां इसलिए नहीं गईं ताकि कोई यह न कहे कि आप हस्तक्षेप कर रही हैं। फिर वह स्मृति ईरानी कौन थीं जो हरियाणा में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहीं थी और पुलिस के बस में नहीं आ रही थीं। वहां आपका हस्तक्षेप कैसे जरूरी था?
कांग्रेस सांसद हनुमंत राव की चिट्ठी का जिक्र भी आपने किया और बताया कि उन्होंने भ्रष्टाचार, विश्वविद्यालय की कानून व्यवस्था पर शिकायत लिखी थी। अगर किसी विश्वविद्यालय के बारे में चारों ओर से शिकायतें आ रही हैं तो उसके लिए जांच के आदेश कौन देगा? क्या आपने इसकी जांच के मामले में भी कहीं पत्र-व्यवहार किया है?
पत्रकारों का जोर रहा कि वह किसी तरह राहुल गांधी पर ईरानी जी की टिप्पणी ले लें। राहुल गांधी की टिप्पणियां और स्मृति ईरानी की राहुल गांधी पर टिप्पणियां इन सवालों से ज्यादा महत्वपूर्ण कैसे हैं? हालांकि कई सवालों को स्मृति ईरानी ने पूरा ही नहीं होने दिया और कुछ सवाल उनके आत्मविश्वास के आगे ढहते नज़र आए। यह कोई नई बात नहीं है। ऐसी कांफ्रेंस यह देश पिछली सरकारों में भी देखता आ रहा है। मीडिया को डपटने से सवाल नहीं खत्म होंगे, बस सत्ता चरित्र उजागर होता रहेगा। बाकी, ईरानी में ई लगता है या इ लगता है, मुझे पता नहीं। स्मृति जी मुझे इसके लिए जरूर माफ कर देंगी।
(सर्वप्रिया सांगवान एनडीटीवी में एडिटोरियल प्रड्यूसर हैं)
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This Article is From Jan 20, 2016
स्मृति ईरानी की प्रेस-कांफ्रेंस : मीडिया को डपटने से सवाल खत्म नहीं होंगे
Sarvapriya Sangwan
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 21, 2016 12:43 pm IST
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Published On जनवरी 20, 2016 22:34 pm IST
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Last Updated On जनवरी 21, 2016 12:43 pm IST
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