तपती दोपहरी में लालमुनि अपनी देहरी पर अपने सांसद को हाथ जोड़े खड़ा पाता है। उसे कोई अचंभा नहीं होता। पता है चुनाव की तारीख नज़दीक आ गई है। ऐसे में नेताजी तो आएंगे ही। कुट्टी (मवेशी का चारा) काटने के काम थोड़ी देर के लिए रोक कर वो नेताजी से मुखातिब होता है। नेताजी वोट के लिए कहते हैं।
लालमुनि अपनी शिकायतों का पुलिंदा खोल देता है। पहली शिकायत तो यही है कि पूरे पांच साल पर आए हैं। बीच में कभी हालचाल पूछने नहीं आए। इस बीच आसपास के घरों के लोग भी बाहर निकल आते हैं। इनमें महिलाएं भी हैं। बच्चों का कौतुहल शोरगुल पैदा करता है। बुजुर्ग उन्हें डांट कर चुप कराते हैं। फिर शिकायतों का सिलसिला आगे बढ़ता है। साड़ी के पल्लू से सिर ढंकी महिला की तेज़ आवाज़ में कहती है चापाकल (हैंडपंप) अभी तक नहीं गड़ा। दूसरे की देहरी पर जाना पड़ता है। कई बार पानी भरने को लेकर झगड़ा होता है।
सांसद समझाने की कोशिश करते हैं कि उन्होने अपने भरसक हर समस्या को सुलझाने की कोशिश की है। अपराध पर क़ाबू और अमन चैन की बहाली उनके एजेंडे पर सबसे उपर था। ये काम पूरा होचुका है। बाक़ी कामों में कमी रह गई है तो इस बार पूरा कर देंगे। इसके लिए उनके वोट की दरकार है।
सांसद के साथ सवाल जवाब का ये नज़ारा बिहार के नालंदा संसदीय क्षेत्र के तेल्हारा का है। 2009 में यहां से जेडीयू के कौशलेन्द्र कुमार सांसद चुने गए थे। इस बार पार्टी ने उन्हें फिर टिकट दिया है। उनका मुक़ाबला आरजेडी के आशीष रंजन सिंह और एलजेपी के सत्यानंद शर्मा से है। मुकाबला कड़ा है क्योंकि एक तरफ मुद्दा विकास का है, वहीं दूसरी तरफ हर पार्टी ने जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार तय किया है। ऐसे में हर वोटर तक पहुंचना ज़रुरी है।
इस दौरान शिकायत के साथ साथ लोगों की नाराज़गी भी सर माथे पर। सादिकपुर गांव में जूट के रेशे से रस्सी बुन रहे जगपरवेश अपने सांसद को कहते हैं कि वैसे तो सब ठीक है लेकिन महंगाई ने क़मर तोड़ दी है। कौशलेन्द्र समझाने की कोशिश करते हैं कि कैसे इसके लिए केन्द्र सरकार की ग़लत नीतियां ज़िम्मेदार है। एक जागरूक नौजवान बीच में टोकता है कि राज्य में सरकार तो आपकी है आपने महंगाई कम करने के लिए क्या किया।
सांसद बताते हैं कि कैसे किसानों को उनके उपज की उचित क़ीमत मिले इसके लिए राज्य सरकार ने क़दम उठाए हैं। बातचीत हो ही रही है भीड़ ने से एक ने स्कूल की समस्या उठा दी कि अव्वल तो स्कूल नहीं और एक स्कूल जो है भी उसमें भी टीचर को विद्यालय लिखना नहीं आता। जनवरी फरवरी लिखना नहीं आता। वो बच्चों को क्या पढ़ाएगा। सांसद कहते हैं कि हो सकता हो एकाध शिक्षक ऐसा हो। वे मामले को देखेंगे।
सादिक पुर गांव में टूटी फूटी और आधी बनी सड़क की समस्या भी है। पांच पांच ठेकेदार बदल गए लेकिन सड़क नहीं बनी। सांसद की सफाई है कि ठेकेदार रेट में गड़बड़ी कर देता है तभी काम वापस लेना पड़ता है। चुनाव की वजह से अभी सड़क बनायी नहीं जा सकती। फिर से चुन कर आते है सबसे पहले वो सड़क के काम को पूरा कराएंगे।
ये एक बानगी भर है। देश के ज़्यादातर संसदीय क्षेत्र में लोगों की ये आम शिकायत है कि उनके सांसद चुन के जाने के बाद मुड़ कर देखते नहीं। कौशलेन्द्र कुमार को ज़्यादा सवाल इसलिए भी झेलने पड़ रहे हैं क्योंकि राज्य में उन्हीं की पार्टी जेडीयू की सरकार है।
नालंदा से नीतीश कुमार भी सांसद रह चुके हैं। अब वे नौ साल से मुख्यमंत्री हैं। नालंदा संसदीय क्षेत्र में क़रीब 20 लाख वोटर हैं और ये देश के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्रों में शुमार है। आरजेडी और एलजेपी दोनों ही पार्टियां लोगों की हर छोटी बड़ी नाराज़गी को अपने वोट में बदलने की कोशिश में हैं।
आशीष रंजन जो कि पिछले साल तक बिहार के डीजीपी हैं, लोगों को कहते हैं कि राज्य में अमन चैन लाने वही लेकर आए हैं। सांसद बने तो पंचायती राज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश से लेकर नौजवानों को रोज़गार तक हर दिशा में काम करेंगे। एलजेपी के सत्यानंद सिंह बीजेपी के साथ गठबंधन को अपनी जीत के आधार पर देख रहे हैं। वे जेडीयू पर विकास की जगह सिर्फ प्रोपेगंडा करने का आरोप लगा रहे हैं। कुल मिला कर ऐतिहासिक खंडहरों की विरासत वाले नालंदा में मुकाबला त्रिकोणीय नज़र आता है।
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