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ब्लॉग राइटर
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राकेश कुमार मालवीय : सातवां वेतन आयोग किसके लिए...?
इस सवाल पर हम बाद में सोचेंगे, लेकिन इस वक्त अदद तो यही है कि आखिर केवल 50 लाख कर्मचारियों को खुश करने की कवायद क्यों, जबकि देश के सात करोड़ किसानों की हालत खस्ता है
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राकेश कुमार मालवीय : क्या पेरिस से मिलेगा भोपाल गैस त्रासदी के सवालों का जवाब
आपदाओं पर हम बेहद आसानी से कह देते हैं कि यह कुदरत का कहर है। जलवायु बदल रही है। बदलती जलवायु पर दुनिया बेहद संवेदनशील है। पेरिस में दुनियाभर के लोगों का जमावड़ा है। पर क्या हम गंभीरता से इस बात को सोच रहे हैं कि जिन्हें हम आपदाएं कह रहे हैं वह त्रासदियां हैं।
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राकेश कुमार मालवीय : 'असहिष्णुता' पर भारी हैं, कुछ और भी शब्द... हम उन पर कब सोचेंगे ?
देश में सहिष्णुता है, नहीं है, खत्म हो रही है... अनुपम खेर से लेकर आमिर खान तक की बहस जाने किस नतीजे पर पहुंचेगी...? पहुंचेगी भी या नहीं...! लेकिन इस देश में कुछ और भी शब्द हैं जो समाज के असहिष्णु हो जाने सरीखे ही भयंकर और खतरनाक हैं।
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राकेश कुमार मालवीय : नवरात्रि और हमारे समाज में लड़कियों की पीड़ा...
साल 2014 में हमारे देश में नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार के 13,766 मामले दर्ज हुए। जिस देश में नारी को देवीस्वरूपा मानते हुए पूजा जा रहा हो, उसी समाज के ये आंकड़े हमें हिला देते हैं।
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राकेश कुमार मालवीय : पनीर नहीं चाहिए, लेकिन प्याज़ और दाल मेरी ज़रूरत है, रहम करो...
...तो क्या संत कबीर बाज़ार में खड़े होकर इसलिए सबकी खैर मांग रहे थे...? क्या उन्हें पता था कि एक दिन ऐसा आएगा, जब बाज़ार में आम आदमी 'दाल' तक खरीदने के लिए तरस जाएगा।
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राकेश कुमार मालवीय : प्रसव को बीमारी, गर्भवती 'मां' को मरीज बना दिया है व्यवस्था ने
जब सरकार सर्कुलर जारी कर टारगेट दे, डॉक्टर अपने हिसाब से सीजेरियन ऑपरेशन तय कर ले, और व्यक्ति अपनी इच्छा से प्रसव के लिए कोई शुभ दिन, शुभ घड़ी या कैलेंडर की तारीखों में कोई दुर्लभ मौका मुकर्रर करने लगे, तो स्थिति कैसे ठीक हो सकती है।