कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां लिंगायत वोट पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी बीते रविवार को लिंगायत समुदाय के संस्थापक गुरू बसवन्ना की जंयती में शामिल होने बागलकोट जिले पहुंचे.
पहाड़ी प्रदेश में पढ़ने की संस्कृति बढ़ रही, इसी का परिणाम है लगातार तीसरे किताब मेले का आयोजन होना. टनकपुर, बैजनाथ के बाद यह पुस्तक मेला 20 व 21 मई को चंपावत में आयोजित होगा.
राहुल गांधी की प्राथमिकता इस वक्त इस लोकसभा की सदस्यता बचानी नहीं है. उनकी प्राथमिकता है कि सेशन कोर्ट में इस मामले को निरस्त करने की जो अपील डाली है और जिस पर 20 मई को सुनवाई है उस पर फोकस करना है.
पिता-पुत्र, पिता-पुत्री, भाई-भाई, ससुर-बहू - सूची बेहद लम्बी हो सकती है, लेकिन फिर भी सम्पूर्ण नहीं है. कर्नाटक में जब राजनेता कहें कि पार्टी ही उनका परिवार है, तो यह सच भी हो सकता है.
छात्रों का उत्पीड़न उसके प्रारंभिक समय से ही शुरू हो जाता है. निजी स्कूलों की लूट से त्रस्त अभिभावक अपने बच्चों से अपनी लागत का परिणाम चाहता है. परिणाम न मिलने पर अपनी खीझ किसी न किसी रूप में बच्चों से भी निकालता है.
दरअसल, आठ मुख्यमंत्री - गैर-BJP और गैर-कांग्रेस - कुछ दिन पहले से ही सरकार चलाने की नीतियों को लेकर एक दूसरे के संपर्क में हैं, जिनमें केरल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं.
सचिन पायलट के साथ दिक्कत है कि वह बीजेपी में जा नहीं सकते क्योंकि वहां वसुंधरा हैं, गजेन्द्र सिंह शेखावत हैं. दूसरा उनका धरना भी वसुंधरा के खिलाफ ही है तो विकल्प क्या है उनके पास?
जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी, जिसकी वजह से शिवसेना का विभाजन हुआ. शिवसेना के विभाजन ने भाजपा को मौका दिया और वो शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर महाराष्ट्र में सत्ता में लौट आई.
बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा का कार्यकाल 2024 तक बढ़ा दिया गया है. नड्डा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 2024 से पहले नौ चुनाव होने हैं और बीजेपी को उन सभी को जीतना है. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि पीएम पर "व्यक्तिगत हमलों" के साथ विपक्ष ने स्वीकार किया है कि वह बीजेपी की सफलता की कुंजी हैं.
कमाल साहब, हम दोनों को जो चीज़ जोड़ती थी, वह भाषा भी थी- लफ़्ज़ों के मानी में हमारा भरोसा, शब्दों की नई-नई रंगत खोजने की हमारी कोशिश और अदब की दरबानी का हमारा जज़्बा. पत्रकारिता के सतहीपन ने आपको भी दुखी किया और मुझे भी.
27 साल के कच्ची उम्र में उम्र में वो संसद में चुनकर पहुंचे थे. वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी प्रस्ताव लेकर आई थीं कि लोकसभा के कार्यकाल को 6 साल किया जाए तब दो सांसदों ने इस्तीफा दिया था उसमें शरद यादव शामिल थे.
बेशक, यह स्थिति भी स्थायी नहीं रहेगी. सूर्य कुमार यादव या ऐसे दूसरे खिलाड़ियों का उदय बता रहा है कि पुरानी शक्ति-संरचनाएं टूट रही हैं और नई सामाजिक शक्तियां अपनी आर्थिक हैसियत के साथ अपना हिस्सा मांग और वसूल रही हैं. यह स्थिति सिर्फ किसी खेल में नहीं, हर क्षेत्र में देखी जा सकती है.
उच्च शिक्षा के निजीकरण के बाद उसके भूमंडलीकरण की इस कोशिश के कुछ निहितार्थ तो स्पष्ट हैं. उच्च शिक्षा अब ग़रीबों की हैसियत से बाहर होने जा रही है. क्योंकि वे जिन सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करते हैं, वे धीरे-धीरे आर्थिक और बौद्धिक रूप से विपन्न बनाए जा रहे हैं. यह सच है कि भारत के विश्वविद्यालय कभी भी बहुत साधन-संपन्न नहीं रहे.
यह सच है कि हिंदी और उर्दू को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली दृष्टि बिल्कुल आज की नहीं है. उसका एक अतीत है और किसी न किसी तरह यह बात समाज के अवचेतन में अपनी जगह बनाती रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की.