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    रक्षा से लेकर अंतरिक्ष तक... तकनीकी कुलांचे भरता भारत

    भारत आज केवल तकनीकी प्रगति का प्रतीक नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है. उस साहस, सोच और नेतृत्व की जो सीमाओं को नहीं मानता.

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    किसकी 'उम्मीद' बनेगा नया वक्फ कानून!

    असदुद्दीन ओवैसी ने भी वक्फ संशोधन बिल पर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा. इतना ही नहीं ओवैसी ने लोकसभा में यह कहते हुए बिल को फाड़ दिया कि गांधीजी के सामने जब एक ऐसा कानून लाया गया, जो उनको कबूल नहीं था. इसलिए मैं भी इस कानून को नहीं मानता.

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    विरासत और बदलाव के बीच झूलता नेपाल

    दोनों देशों के बहुसंख्यक लोग समान आस्था और दर्शन साझा करते है. देवी देवता भी एक ही है. बोलचाल की भाषा भी एक जैसी ही है. करीब 80 लाख नेपाली लोग भारत में रहते है तो 6 लाख भारतीय लोग नेपाल में रहते है. भारत की नेपाल के साथ 1850 किलोमीटर की सीमा है जो पांच राज्यों से लगती है. भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा है

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    मणियों के प्रदेश को चाहिए शांति की मजबूत डोर

    मणिपुर के हालात बिगड़ने और उसे संभाल नहीं पाने का ठीकरा उस वक्त  के मणिपुर के  मुख्यमंत्री बीरेन सिंह  पर फूटा. जातीय हिंसा के 21 महीने बाद फरवरी के दूसरे हफ्ते में उनको इस्तीफा देना पड़ा.

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    पाकिस्तान पर भारी पड़ रहा है नासूर बना बलूचिस्तान

    यह ठीक है कि अब पाकिस्तानी हुक्मरानों ने अगवा ट्रेन को बीएलए से छुड़ा लिया है, लेकिन इस बार इसने पूरी दुनिया  का ध्यान अपनी ओर खींचा.  ऐसे हमलों की रणनीति राजनीतिक मकसद साधना होता है.  इसने यह भी साबित किया कि बलूचों के आंदोलन को हल्के में नहीं लिया जा सकता.

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    कोरोना संकट में भारतीय कंपनियों का संकटमोचक चेहरा

    पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स (PPE) किट को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं. चीन से आए लगभग 63,000 किट खराब गुणवत्ता के हैं. असम ने चीन से मंगाए 50,000 PPE किट का इस्तेमाल तब तक नहीं करने का फैसला किया है, जब तक इनकी गुणवत्ता प्रमाणित नहीं हो जाती. PPE किट के महत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बिना इसे पहने अगर कोई डॉक्टर या नर्स कोरोना मरीज़ का इलाज करता है तो उसके संक्रमित होने का खतरा ज़्यादा होता है. ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि आखिर यह परीक्षण कैसे होता है और कौन करता है.

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    POK...वोटों की फसल पर उगता एक ख्वाब

    जब 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से भारत आज़ाद हुआ तो देश का दो भागों में बंटवारा हुआ. एक हिस्सा भारत कहलाया और दूसरा पाकिस्तान. उस समय ज़्यादातर मुस्लिम बहुल इलाका पाकिस्तान में शामिल हो गया और हिन्दू बहुल इलाका भारत का हिस्सा बना रहा.

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    कॉमेडियन की ‘राजनीति’ कहीं दुनिया को मजाक न बना दे!!

    डोनाल्ड ट्रंप से ज़ेलेंस्की की इस गरमागरम मुलाकात के बाद क्या अमेरिका अब भी यूक्रेन के साथ आएगा? रूस और यूक्रेन की इस लड़ाई का आखिरकार क्या अंत होगा या ज़ेलेंस्की के लिए चुनौतियां और बढ़ेंगी.

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    डिनर विथ डीसी..सरकार की जनता तक पहुंचने की अनूठी पहल

    आम लोगों तक पहुंचने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत डीसी ने की है, जिसमें लोग सीधे अपनी बात डीसी से कहते है . जमीन पर सभी बैठते हैं और सामने माइक पर डीसी केंद्र सरकार और राज्य की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताते हैं.

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    हम किसे शहीद कहें!

    सेना ने दो फरवरी को जारी अपने पत्र में यह भी कहा है कि देश की सुरक्षा और एकता के लिए कुर्बानी देने वाले सैनिकों को लिए छह शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है. इन शब्दों में किल्ड इन एक्शन (कार्रवाई के दौरान मृत्यु) ,लेड डाउन देयर लाइफ्स (अपना जीवन न्यौछावर करना), सुप्रीम सेक्रिफाइस फॉर नेशन ( देश के लिए सर्वोच्च बलिदान), फॉलन हीरोज  (लड़ाई में मारे गए हीरो), इंडियन आर्मी ब्रेव्स (भारतीय सेना के वीर) , फॉलन सोल्जर्स (ऑपरेशन में मारे गए सैनिक) शामिल है .

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    अपनी ही महिला अफसरों से क्यों बच रही है फौज?

    सेना में शामिल इन महिला अफसरों को शुरू से ही अपनी काबिलियत साबित करनी पड़ी है । ये 21 से 23 साल की उम्र में सेना में शामिल हुई. ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी, चेन्नई में कड़ी ट्रेनिंग के बाद सेना की वर्दी पहनी और कसम खाई कि देश सबसे पहले, उसके बाद देशवासी और सबसे आखिर में वे स्वयं.

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    जांबाज सैनिक कभी नहीं मरता

    ये बात है एक ऐसे योद्धा की जिसने आतंकियों  को लड़ाई में कई बार धूल चटाई और हमेशा ही जीत हासिल की और कैंसर जैसी घातक बीमारी भी उसका हौसला नही तोड़ सकी. उन्होंने कैंसर के खिलाफ न केवल लंबी लड़ाई लड़ी बल्कि मैराथन तक में जौहर दिखाए. अंतिम क्षण तक उनके चेहरे पर शिकन का नामोनिशान नहीं था. अब वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारे बीच है उनकी बहादुरी के किस्से और जांबाजी की कहानी अब इतिहास में दर्ज हो चुकी है.

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    कोरोना की त्रासदी में फंसा आम आदमी

    कोरोना के कहर से बचने के लिये हम सबकी जिंदगी घर की चारदीवारियों में कैद हो गई है. लेकिन नींद कोसों दूर है. अलग तरह की बेचैनी और छटपटाहट है. दिल्ली से भागलपुर तक जिस किसी से बात हो रही है वो यही कह रहा है कि ऐसा नहीं होना चाहिए. सबको अंदर से झकझोर दिया है. मुद्दे की बात करूं तो सबसे पहले तीन तस्वीरें आपके सामने रखना चाहूंगा. मुंबईवासी के जिगर के टुकड़े  ब्रिटेन में कोरोना की वजह से फंस गये तो उसे लाने के लिये उसके परिवार ने विशेष विमान भेज दिया. खर्च आया मात्र 90 लाख. ऐसे ही जब वुहान, इटली, ईरान और मलेशिया जैसे देशों में सैकड़ों लोग कोरोना की वजह से फंस गये तो सरकार विशेष यात्री विमान भेजकर उनको सुरक्षित वापस ले आई.

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    संकट में भी अपराजेय सरकारी डॉक्टर और निजी अस्पतालों की खुलती पोल

    कोरोना से आज दुनियाभर में सरकारी एजेंसियां ही मुकाबला कर रही हैं, कहीं भी कोई भी निजी संगठन योगदान देता नज़र नहीं आ रहा है. यही हाल अपने देश में भी है. कोरोना संक्रमण की पहचान से लेकर उपचार की बात हो या संदिग्ध मरीजों को अलग-थलग रखने की, हमेशा सेना और अर्द्धसैनिक बल ही सामने आए.

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    कश्मीर : कार्रवाई या कोरी अफवाहें...

    दिल्ली से लेकर मुंबई तक आज आप किसी से भी कश्मीर के बारे में पूछें तो वह यही कहेगा कि वहां कुछ होने वाला है. कश्मीर में रहने वाले लोगों से बात करें तो वे भी यही कहेंगे कि कुछ बड़ा होने वाला है. सुरक्षा बलों से बात करें तो उनका कहना है कि हमें तो जैसा ऊपर से आदेश मिलेगा हम उस पर अमल करेंगे. रही सही कसर अमरनाथ यात्रा को 15 दिन पहले खत्म करने और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की हिदायत देने से पूरी हो गई है.

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    यदि आज भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ जाए तो...!

    चीन तो क्या, यह बात हर कोई जानता है कि अब लड़ाई किसी देश के बूते की बात नहीं है. हां, बस इसके नाम पर दबाव जरूर बनाया जा सकता है. सच्चाई यह है कि भारत, अमेरिका और जापान की दोस्ती चीन को रास नहीं आ रही है, लिहाजा वह दबाव बनाने के लिए यह सब कर रहा है.

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    क्या नोटबंदी की तरह ही अचानक होंगी सैन्य प्रमुख समेत अहम पदों पर नियुक्तियां?

    देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब 31 दिसंबर को थलसेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह, वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा, रॉ प्रमुख राजेन्द्र खन्ना और इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख दिनेश्वर शर्मा एकसाथ रिटायर हो रहे हैं, लेकिन सुरक्षा से जुड़े इन अहम पदों के उत्तराधिकारी कौन होंगे, यह अब तक तय नहीं हो पाया है.

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    सेना की 'रणनीति' के कारण लंबा चला पंपोर ऑपरेशन

    पंपोर में तीन आतंकियों के खात्मे में सेना को तीन दिन लग गए. इस ऑपरेशन में सेना का एक जवान मामूली तौर पर घायल हुआ. इसके अलावा सेना को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. ऐसे में कई लोग सवाल उठाने लगे है कि आखिर सेना की क्षमता या फिर ताकत इतनी कम हो गई जो उसे चंद आतंकियों को मार गिराने इतना वक्त लग गया!

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    सेना को राजनीतिक रोटियां सेंकने का जरिया न बनाएं...

    सर्जिकल आपरेशन न हुआ मानो किसी राजनीतिक दल का घोषणा-पत्र हो गया जिस पर हर ‘ऐरा-गैरा नत्थू खैरा’ सवाल खड़े कर रहा है. अलग-अलग अंदाज में पूरे ऑपरेशन पर प्रश्नचिह्न लगाए जा रहे हैं और उस पर जुमला यह कि ‘हम पूरी तरह से सरकार और सेना के साथ हैं.’ क्या साथ ऐसा होता है जिससे विश्वास से ज्यादा अविश्वास की बू आए?

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    #युद्धकेविरुद्ध : इतने अधीर क्यों हैं हम?

    उरी में आतंकवादी हमला हुए तकरीबन एक हफ्ते का वक़्त बीत चुका है. ऐसा नहीं है कि इस हमले में 18 जवानों की शहादत के बाद सेना या सरकार चुप बैठे हैं. बावजूद इसके देश में हर तरफ से ढेरों बातें आने लगी हैं. कोई कह रहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक कीजिए तो कोई युद्ध न किये जाने का पैरोकार है.

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