पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो, पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो... ये पंक्तियां है सफदर हाशमी की. वही सफदर हाशमी, जिसे राजधानी दिल्ली से महज कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बीच सड़क पर साहिबाबाद के झंडापुर गांव में एक जनवरी 1989 को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया था. 2 जनवरी को इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया था. दिल्ली के मंडी हाउस के पास सफदर हाशमी मार्ग से गुजरते हुए अगर कोई पूछे कि ये सफदर हाशमी कौन थे तो अगर एक शब्द में जवाब देना हो तो जवाब हो जाएगा रंगकर्मी. लेकिन अगर वो विस्तार से जानना चाहे तो क्या जवाब होगा?
सफदर हाशमी कौन थे?
सफदर हाशमी एक ऐसे शख्स थे जो शोषित और वंचित वर्गों की आवाज़ को बुलंद करने के लिए कला और रंगमंच का उपयोग करते थे. वे हेगेल और मार्क्स की इस धारणा से प्रेरित थे कि वास्तविकता को बदलने के लिए विचार और कर्म दोनों की जरूरत होती है. सफदर हाशमी ने दुनिया को बताया कि कला और राजनीति एक-दूसरे से अलग नहीं है. सफदर से पहले तक भारत जैसे देश में इतने व्यापक स्तर पर इस बात को समझा नहीं गया था.
जिस तरह प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य को राजा रानी के किस्सों से आगे बढ़ाकर जनवाद की तरफ मोड़ा ठीक उसी तरह सफदर ने नाटक के मंच को सड़क तक पहुंचाया और आम लोगों को उससे कनेक्ट किया. वे नुक्कड़ नाटक के पर्याय थे इसीलिए उनका जन्मदिन 12 अप्रैल नुक्कड़ नाटक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
लेकिन क्या सफदर सिर्फ एक थिएटर आर्टिस्ट ही थे? बिल्कुल नहीं...सफदर हाशमी एक प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता भी थे. हाशमी एक प्रतिभाशाली कवि और लेखक भी थे. हाशमी एक प्रभावशाली सांस्कृतिक विचारक थे. वे भारतीय कला और संस्कृति को जनता के लिए सुलभ बनाने में विश्वास रखते थे. उनका मानना था कि संस्कृति केवल अभिजात वर्ग की संपत्ति नहीं हो सकती, बल्कि इसे आम जनता की ज़िंदगी और संघर्ष से जोड़ा जाना चाहिए. हाशमी एक पत्रकार भी थे पत्र पत्रिकाओं में उन्होंने कई लेख लिखे थे.
भारत के पढ़ने लड़ने वाले समाज को जिस स्तर पर सफदर हाशमी ने झकझोरा, शायद ही किसी अन्य ने समाज में ऐसा असर किया होगा.
- महाश्वेता देवी
सफदर हाशमी जिस विचार का प्रतिनिधित्व करते थे वो उसे जीते थे...उनके रहने और उनके जाने दोनों ही हालत में वो आगे बढ़ता रहा. सफ़दर हाशमी की मां क़मर हाशमी ने अपनी किताब, 'दी फिफ्थ फ्लेम: दी स्टोरी ऑफ़ सफ़दर हाशमी' में लिखा कि, "कॉमरेड सफ़दर, हम आपका मातम नहीं करते, हम आपकी याद का जश्न मनाते हैं."
दिल्ली की चौखट पर शहीद होने वाले सफदर ने दिल्ली की सत्ता को हिलाने की ताकत लंबे समय तक के लिए भर दी. हाशमी का दृष्टिकोण इस विचार पर आधारित था कि कला और राजनीति का गहरा संबंध है. उनके लिए रंगमंच केवल मनोरंजन का साधन नहीं था, बल्कि यह एक क्रांतिकारी उपकरण था, जो समाज के शोषणकारी ढांचे को उजागर करने और उसे बदलने की क्षमता रखता है.
मजदूर आंदोलन को वैचारिक तौर पर बनाया मजबूत
सफदर हाशमी के नाटक केवल संवाद नहीं थे. वे विचारधारा का माध्यम थे. उन्होंने मजदूर आंदोलनों और जनसंघर्षों में एक नई ऊर्जा का संचार किया. कुछ प्रसिद्ध नाटकों, जैसे "मशीन," "हल्ला बोल," ने आम लोगों को झकझोर कर रख दिया. सफदर हाशमी के नाटकों की स्क्रिप्ट सामूहिक चेतना को जगाने वाली होती थी.ये जो पसीने से भीगी मिट्टी है, इसमें हमारे खून की गंध है...तुम्हारी ये फैक्ट्रियाँ, तुम्हारे ये औजार, तुम्हारे बिना सब बेकार
सफ़दर हाशमी प्रतिरोध की वो ज़िंदा आवाज़ थे जिसे मिटाने की कोशिश पूरी तरह नाकामयाब रही. उनके निधन के बाद वो आवाज और अधिक व्यापक बनकर उभरी. दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई करने वाले सफदर हाशमी ने प्रतिरोध के साहित्य को भी नुक्कड़ नाटक की ही तरह मजबूत किया.
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालों
क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो ...
पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?
पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा
पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा
लंबे समय तक दूरदर्शन पर सफदर हाशमी की यह कविता प्रसारित होती थी. हल्ला बोल' उनका ऐसा नाटक था जिस शीर्षक से बाद में उनकी जीवनी लिखी गयी. सफदर ने टेलीफ़िल्म स्क्रिप्ट लिखी, रंगमंच और फिल्मों के लिए कई लेख लिखे, क्रांतिकारी कविताओं और नाटकों का उन्होंने हिंदी अनुवाद किया. जर्मन कवि ब्रेख्त कि कविताओं का सफदर हाशमी ने बेहतरीन अनुवाद किया था. बच्चों के लिए उन्होंने कई कविता लिखीं. "किताबें करती हैं बातें, बीते ज़माने कीं, दुनिया की इंसानों की'' उनकी बेहद लोकप्रिय हुई.
सफदर भी लोकप्रिय थे उनके काम भी लोकप्रिय हैं
जननाट्य मंच की स्थापना करके आम मजदूरों की आवाज़ को सिस्टम चलाने वालों तक पहुंचाने के उनके सांस्कृतिक आंदोलन ने देश भर में उन्हें लोकप्रिय बनाया. दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनके निधन के बाद जब उनकी शव यात्रा निकली थी तो सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ गया था. इनमें थिएटर कलाकार, लेखक, कवि, मजदूर, किसान, और राजनीतिक कार्यकर्ता थे. देश के विभिन्न हिस्सों से आए ये लोग सफदर के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनके विचारों को समर्थन देने के लिए एकत्र हुए थे. सफदर की हत्या के विरोध में, उनकी अंतिम यात्रा के दौरान उसी नाटक "हल्ला बोल" का प्रदर्शन किया गया, जिसे वे अपनी मृत्यु के समय मंचित कर रहे थे.
उनकी शहादत के बाद पूरे देश में नुक्कड़ नाटक आंदोलन को आंदोलनात्मक आवेग मिला. हिंदुस्तान भर में सफ़दर हाशमी के नाम पर ढ़ेरों संगठन बने. सफदर हाशमी की हत्या के बाद उनकी पत्नी माला हाशमी ने व्यक्तिगत शोक को एक सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति में बदल दिया. उनकी पत्नी ने सफदर की हत्या के ठीक 48 घंटे बाद उसी जगह पर जाकर उस अधूरे नाटक को मंचित किया था.
सफदर हाशमी की हत्या के 36 साल हो गए. लेकिन सफदर हाशमी की मौत उनके विचारों को रोक नहीं सकी. उनकी हत्या ने उन्हें अमर बना दिया, क्योंकि उनके विचार, उनकी कला, और उनके संघर्ष आज भी लोगों की लड़ाई में प्रेरणा बनकर मौजूद हैं. हर बार जब कलाकार सड़क पर उतरकर नाटक करता है, जब किसी फैक्ट्री में मजदूरों के लिए "हल्ला बोल" मंचित होता है, जब कलाकार अपने नाटकों से शोषण और भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हैं, तब ऐसा लगता है कि सफदर हाशमी खुद वहां खड़े हैं. उनकी आवाज़ हर प्रदर्शन, हर नाटक, और हर गीत में गूंजती है.
(सचिन झा शेखर NDTV में कार्यरत हैं. राजनीति और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लिखते रहे हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.